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अनुच्‍छेद-370 पर ऐतिहासिक फैसले के बाद अब समान नागरिक संहिता की बारी...!

मोदी सरकार ने अनुच्‍छेद-370 को हटाने का फैसला किया है। इस फैसले से समान नागरिक संहिता पर भी उम्‍मीदें जग गई हैं। आइये जानते हैं कि समान नागरिक संहिता की राह में क्‍या बाधाएं हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 09:03 AM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 04:55 PM (IST)
अनुच्‍छेद-370 पर ऐतिहासिक फैसले के बाद अब समान नागरिक संहिता की बारी...!
अनुच्‍छेद-370 पर ऐतिहासिक फैसले के बाद अब समान नागरिक संहिता की बारी...!

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। मोदी सरकार ने अनुच्‍छेद-370 को हटाने का फैसला किया है। इस फैसले से समान नागरिक संहिता पर भी उम्‍मीदें जग गई हैं। अभी देश में विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के लोगों के लिए शादी, बच्चे को गोद लेना, संपत्ति या उत्तराधिकार आदि मामलों को लेकर अलगअलग नियम है। लिहाजा किसी धर्म में जिस बात को लेकर पाबंदी है, दूसरे संप्रदाय में उसी बात की खुली छूट है। इससे देश के बीच एकरूपता नहीं आ पा रही है। आजादी के बाद से ही सभी धर्मों के लिए एक ऐसे कानून बनाए जाने की बात होती रही है जो सब पर एक समान लागू हो। हालांकि अभी तक सहमति नहीं बन सकी है। पूर्व में ह‍िंदू कोड बिल और अब तत्काल तीन तलाक पर बना कानून इस दिशा में बड़े कदम माने जा रहे हैं।

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समान नागरिक संहिता
धार्मिक मान्यताओं से जुड़े कानूनों को समाप्त करने और इसकी जगह पर एक समान कानून लागू करने का प्रस्ताव है समान नागरिक संहिता। फिलहाल भारत में विभिन्न धर्म और संप्रदाय के लोगों के अपने निजी धार्मिक कानून हैं। समान नागरिक संहिता केवल शादी, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार, बच्चा गोद लेने और गुजारा भत्ता जैसे मुद्दों पर लागू होगी।

पर्सनल लॉ पुरानी बात
गोवा देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां गोवा फैमिली लॉ के नाम से समान नागरिक संहिता लागू है। दरअसल पर्सनल लॉ की मांग आजादी से काफी पहले हुई थी। उस वक्त तक इसकी जरूरत भी थी। समान नागरिक संहिता का मसला 20वीं सदी की शुरुआत से जोर पकड़ने लगा। खासतौर पर महिला अधिकारों की मांग तेज होती गई।

मांगी गई जनता की राय
समान नागरिक संहिता पर जनता की राय जानने के लिए साल 2016 में सात अक्टूबर को विधि आयोग ने एक प्रश्नावली जारी की। इसका मकसद विभिन्न समुदायों के लोग खासतौर पर महिलाओं के साथ सांस्कृतिक और धार्मिक रीति-रिवाजों के नाम पर हो रहे भेदभावपूर्ण बर्ताव को खत्म करना और उन्हें समान अधिकार सुनिश्चित कराना था।

मौजूदा स्थिति
फिलहाल विभिन्न धर्म को मानने वाले अपनी धार्मिक मान्यताओं, संस्कृति और रीति-रिवाजों के आधार पर शादी, संपत्ति, तलाक और बच्चा गोद लेने के फैसले कर सकते हैं। यदि इसमें कोई विवाद पैदा हो जाए तो इसके लिए कोई कानून नहीं होता है।

संविधान का हिस्सा
नागरिक संहिता का मुद्दा आज का नहीं है। भारतीय संविधान निर्माताओं ने जब इसकी नींव डाली उसी वक्त समान नागरिक संहिता भी अस्तित्व में आई। संविधान सभा में बाकायदा इस पर चर्चा भी हुई। यह जरूर है कि उस वक्त भी इसे लेकर काफी मतभेद थे। 1949 और फिर 1951 से 1954 के बीच संसद में इस पर तीखी बहस हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तो इस विधेयक के समर्थन में थे पर इसे लेकर सभी को मनाने में वह सफल नहीं हुए। लिहाजा इसे नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 44 में शामिल कर दिया गया।

विवाद क्यों
संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति, धार्मिक रीति-रिवाज के संरक्षण का अधिकार सुनिश्चित करते हैं। वे अपने धर्म के हिसाब से शिक्षण संस्थानों का संचालन कर सकते हैं। अपने धर्म, रीति रिवाज और मान्यताओं का अनुसरण कर सकते हैं। जबकि समान नागरिक संहिता को इन अधिकारों पर खतरे के तौर पर देखा जा रहा है। निजी और नागरिक संहिता खासतौर पर शादी, संपत्ति के अधिकार और बच्चा गोद लेने के मुद्दे को लेकर अलग है। पुरुषों के प्रभुत्व वाला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक मामले में कोई बदलाव नहीं चाहता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसे खत्म करने का फैसला सुनाया और सरकार ने इसके खिलाफ कानून बना सदियों की कुप्रथा का अंत किया। यह मुस्लिम संगठन बहुविवाह की परंपरा को भी जारी रखना चाहता है। 

...तब डॉ. आंबेडकर का हुआ था विरोध 
आजादी के बाद जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पहले कानून मंत्री बीआर आंबेडकर ने समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश की थी तो इस प्रयास को संविधान सभा में भारी विरोध का सामना करना पड़ा। संविधान सभा में जब आंबेडकर ने यूनीफॉर्म कोड अपनाने की बात रखी तो कुछ सदस्यों ने उग्र विरोध किया, लिहाजा मसले को संविधान के अनुच्छेद 44 में नीतिनिर्देशक तत्वों के तहत रख दिया गया। अब जब मुस्लिम महिलाओं के लिए तत्काल तीन तलाक और अनुच्‍छेद-370 को खत्म करने के लिए ‘द मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) एक्ट, 2019’ लागू हो चुका है तो इन महिलाओं को और सशक्त किए जाने को लेकर समान नागरिक संहिता की जरूरत शिद्दत से महसूस की जाने लगी है।

...और डॉ. आंबेडकर को छोड़ना पड़ा था पद
भारी विरोध के कारण जवाहरलाल नेहरू को विवश होकर खुद को हिंदू कोड बिल तक ही सीमित करना पड़ा। नेहरू हिंदू कोड बिल ही लागू करा सके। यह बिल, सिखों, जैनियों और बौद्धों पर लागू होता है। इससे द्विपत्नी और बहुपत्नी प्रथा को समाप्त किया गया। महिलाओं को तलाक और उत्तराधिकार का अधिकार मिला। शादी के लिए जाति को अप्रासंगिक बनाया गया। संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे, लेकिन जब उनकी सरकार यह काम न कर सकी तो उन्होंने पद छोड़ दिया।

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