सपा-बसपा से झटके के बाद, कांग्रेस यूपी में अब छोटे दलों को साथ लाने की कसरत में जुटी
कांग्रेस मान रही कि रालोद और राजभर या अपना दल जैसी पार्टियां यदि मिलकर चुनाव लड़ती हैं तो मुकाबले त्रिकोणीय होगा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा से मिले तगड़े झटके के बाद अपनी सियासत संभालने में जुटी कांग्रेस अब छोटे-छोटे दलों को साथ लाने की कोशिश में जुट गई है। पार्टी का मानना है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा और सपा-बसपा को चुनौती पेश करने के लिए दूसरे छोटे दलों के साथ गठबंधन ही कांग्रेस की चुनावी उम्मीदों को जिंदा रखने के लिए जरूरी है। इसी बेचैनी में कांग्रेस के रणनीतिकार अब रालोद के अलावा, अपना दल और राजभर जैसे एनडीए के नाराज सहयोगियों से सियासी दोस्ती की संभावना टटोलने में जुट गए हैं।
रालोद के अलावा राजभर और अपना दल से संपर्क साधने की शुरू हुई कोशिश
समझा जाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तरप्रदेश में सपा-बसपा के बीच हुए गठबंधन के बाद पार्टी के हालातों पर वरिष्ठ नेताओं से चर्चा की है। पार्टी में हुई इस अंदरुनी चर्चा के बाद ही उत्तरप्रदेश के प्रभारी महासचिव गुलाम नबी आजाद को चार दिन के अंदर दोबारा लखनऊ भेजा गया है। जबकि पार्टी के कुछ दूसरे रणनीतिकारों को एनडीए से नाराज दिख रहे अपना दल के आशीष पटेल और राजभर से संपर्क साध गठबंधन की कोशिशों को सिरे चढ़ाने के प्रयास में लगाया गया है। लखनऊ में गुलाम नबी आजाद ने दूसरी पार्टियों के साथ गठबंधन करने का कांग्रेस का विकल्प खुला होने की बात कह पार्टी की इस कोशिश का इजहार भी कर दिया।
सियासत बचाने के लिए चुनाव को त्रिकोणीय बनाने का कांग्रेस का प्रयास
कांग्रेस रणनीतिकारों का कहना है कि भले ही रालोद नेता अभी सपा से तालमेल का प्रयास कर रहे हैं मगर हकीकत यह भी है कि कांग्रेस के साथ भी उनकी बातचीत शुरू हो गई है। रालोद नेता अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी दोनों कांग्रेस के नेताओं के सीधे संपर्क में हैं। कांग्रेस मान रही कि रालोद और राजभर या अपना दल जैसी पार्टियां यदि मिलकर चुनाव लड़ती हैं तो मुकाबले त्रिकोणीय होगा। ऐसी स्थिति उन्हें भी ठीक ठाक संख्या में सीट मिल सकती है।
पार्टी सूत्रों ने कहा कि इन दलों के साथ गठबंधन में सीटों की संख्या को लेकर कोई अड़चन नहीं आने वाली क्योंकि कांग्रेस ने भले 80 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर रखा है। मगर पार्टी अपनी सियासत की जमीनी हकीकत से वाकिफ है। इसीलिए रालोद को चार की जगह छह सीटें देने में दिक्कत नहीं होगी तो दूसरे दलों को भी उनकी मांग के हिसाब से सीट छोड़ने में समस्या नहीं है।
पार्टी का मानना है कि 15-20 सीट छोड़कर भी पार्टी सूबे में तीसरे गठबंधन के रूप में 60 से अधिक सीटों पर अधिक मजबूती से चुनाव लड़ सकेगी।