18 साल बाद भी बिहार-झारखंड के बीच परिसंपत्तियों और देनदारियों का नहीं थमा विवाद
बिहार से अलग होकर झारखंड को बने 18 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन दोनों के बीच विवादों का निपटारा अब तक नहीं हो सका है। इसमें पेंशन विवाद, सैनिक फंड, बिहार भवन समेत कई मुद्दे शामिल हैं।
पटना [जागरण स्पेशल]। बिहार को विभाजित हुए और झारखंड को बने 18 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी दोनों राज्यों के बीच कई चीजों को लेकर विवाद जारी है। इतना ही नहीं झारखंड के बनने के बाद बिहार की तरफ से बार-बार इस बात का जिक्र कई मंचों पर किया जाता रहा है कि बिहार की कमाई का बड़ा जरिया झारखंड में चला गया है। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह थी कि बिहार के विभाजन के बाद ऐसे क्षेत्र जहां पर कोयले की खान हुआ करती थीं वह झारखंड में चली गईं। वहीं बिहार में खेती की भूमि ज्यादा हाथ आई। बहरहाल, अब इतने वर्ष गुजरने के बाद जिन मुद्दों पर विवाद जारी है हम आपको यहां पर इसकी जानकारी दे रहे हैं। गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था। इसी दिन िबिहार के स्वतंत्रता सैनानी बिरसा मुंडा का जन्म दिन भी था।
पेंशन बंटवारा
झारखंड आज भी छत्तीसगढ़ की तर्ज पर जनसंख्या के आधार पर पेंशन का बंटवारा चाहता है, लेकिन दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों और देनदारियों के बंटवारे के लिए जो फॉर्मूला तय किया गया है, उसके अनुसार इसका फैसला कर्मचारियों की संख्या के आधार पर होना है। इतना ही नहीं, झारखंड का दिल्ली स्थित बिहार भवन पर दावा आज भी बरकरार है। वह इस दावे को छोडऩे को तैयार नहीं है। बिहार पुनर्गठन अधिनियम के तहत भी दिल्ली स्थित बिहार भवन पर झारखंड का दावा बनता है।
केडेस्ट्रल मैप को लेकर विवाद
बिहार और झारखंड के बीच एक विवाद केडेस्ट्रल मैप को लेकर भी कायम है। हालांकि, काफी पहले ही इसपर दोनों राज्यों के बीच सहमति बन चुकी है। अब बिहार को यह नक्शा उपलब्ध कराना है।
सैनिक कल्याण फंड पर किचकिच
इसी तरह सैनिक कल्याण निदेशालय के 22 करोड़ रुपये के फंड को लेकर भी दोनों राज्यों के बीच विवाद कायम है। बिहार पुनर्गठन अधिनियम के तहत इसका बंटवारा 3:1 के आधार पर होना था, जो पिछले 18 वर्षों में नहीं हो सका है।
डेयरी प्रोजेक्ट पर फंसा मामला
रांची, बोकारो, जमशेदपुर, डेयरी प्रोजेक्ट को लेकर भी दोनों राज्यों के बीच विवाद चल रहा है। कैटल फिल्ड प्लांट झारखंड को हस्तांतरित होना था, जो आज तक नहीं हो सका है। इसी तरह, बिहार वन विकास निगम एवं उसकी अनुषांगिक इकाइयों को विवाद भी बरकरार है। बिहार सॉल्वेट एंड केमिकल्स, बिहार स्टेट टैनिन एक्स्ट्रैक्ट के ऐसेट्स लायबिलिटी का बंटवारा भी अबतक नहीं हो सका है।
पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक के निर्णय पर अमल नहीं
बता दें कि वर्ष 2016 में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के बीच परिसंपत्तियों और देनदारियों के पुराने मामलों को निपटाने पर सहमति बनी थी। तब यह भी तय हुआ था कि पहले दोनों राज्यों के मुख्य सचिव स्तर पर वार्ता होगी और उसके बाद दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री आपस में मिलकर सभी विवादित मामलों का निपटारा कर लेंगे, लेकिन दो साल बाद भी उपरोक्त विवादित मामलों में कोई खास प्रगति नहीं हो सकी है।