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कोरोना संकट में लॉकडाउन के दौरान भी दाल का खेल, आला अफसर पर गिरी गाज

कोविड-19 से बचाव में लागू देशव्यापी लॉकडाउन के गाढ़े दिनों में गरीबों को बांटी जाने वाली दाल के खेल में उपभोक्ता मंत्रालय के एक आला अफसर पर सरकार की नाराजगी की गाज गिरी है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 27 Apr 2020 07:40 PM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2020 08:40 PM (IST)
कोरोना संकट में लॉकडाउन के दौरान भी दाल का खेल, आला अफसर पर गिरी गाज
कोरोना संकट में लॉकडाउन के दौरान भी दाल का खेल, आला अफसर पर गिरी गाज

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कोविड-19 की महामारी से बचाव में लागू देशव्यापी लॉकडाउन के गाढ़े दिनों में गरीबों को बांटी जाने वाली दाल के खेल में उपभोक्ता मंत्रालय के आला अफसर पर सरकार की नाराजगी की गाज गिरी है। इसी मामले में कई और अफसर निशाने पर हैं। सरकार के सख्त रुख को देखते हुए कई मंत्रालयों और सरकारी एजेंसियों में हड़कंप मचा हुआ है। लॉकडाउन से हलकान हो रही देश की गरीब जनता को राहत देने के मकसद से केंद्र सरकार ने राशन प्रणाली के तहत सभी उपभोक्ताओं को मुफ्त अनाज के साथ तीन महीने तक एक-एक किलो दाल भी देने की घोषणा की थी। अनाज में गेहूं व चावल की आपूर्ति तो राज्यों में तेजी से शुरू हो गई, लेकिन दाल की आपूर्ति में विलंब हो रहा है।

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राज्यों के खाद्य मंत्रियों ने दाल न मिलने की शिकायत दर्ज कराई

सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों वीडियो कांफ्रेंसिंग में राज्यों के खाद्य मंत्रियों ने दाल न मिलने की शिकायत दर्ज कराई। इस पर केंद्रीय उपभोक्ता व खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने सख्त नाराजगी जताते हुए नैफेड के प्रबंध निदेशक संजीव कुमार चढ्डा से पूछताछ की, जिसका कोई संतोषजनक जवाब न मिलने पर उपभोक्ता सचिव पवन कुमार अग्रवाल से पूछा गया। सूत्रों के मुताबिक दालों का वितरण अप्रैल, मई और जून में होना है। उपभोक्ता सचिव के नेतृत्व वाली कमेटी ने बफर स्टॉक की दलहन की मिलिंग कराने का फैसला लिया है, जिसमें देर होना लाजिमी है।

अप्रैल के महीने में पहले साबुत दालें बांटने का दिया था प्रस्‍ताव

दरअसल, केंद्र ज्यादातर समय राज्यों को राशन दुकानों से बांटने के लिए दालें साबुत ही देता रहा है। इसीलिए इस बार भी सरकार की घोषणा और दालों के निर्धारित वितरण के बीच समय बहुत कम था। इसी के मद्देनजर एक प्रस्ताव आया था कि अप्रैल के महीने में पहले साबुत दालें बांट दी जाए, फिर आगे से देखा जाएगा। अरहर को छोड़कर चना, उड़द, मूंग और मसूर का साबुत वितरण करना आसान भी है। बफर में चना का पर्याप्त स्टॉक है, जिसका उपयोग कई तरह से किया जाता है। लेकिन इस प्रस्ताव को खारिज कर प्रोसेसिंग का फैसला लिया गया। सूत्रों का कहना है कि दालों की मिलिंग में खेल होने की पूरी गुंजाइश थी, इसीलिए इस विकल्प को अपनाया गया।

नैफेड के पास बफर स्टॉक में 30 लाख टन से अधिक दलहन उपज

बताया गया कि लगभग एक सौ मिलों को दाल प्रोसेसिंग का ठेका दिया गया था। इसमें से एक तिहाई मिलों में दाल का उत्पादन नहीं हो रहा था। सरकारी एजेंसी नैफेड के पास बफर स्टॉक में 30 लाख टन से अधिक दलहन उपज है। प्रत्येक परिवार को एक किलो दाल देने पर हर महीने 1.95 लाख टन दालों की जरूरत होगी। इस तरह राज्यों को कुल 5.85 लाख टन दालों की सप्लाई करनी है। प्रोसेस्ड दालों का पर्याप्त स्टॉक न होने की वजह से हालात बिगड़े।

राशन दुकानों से उपभोक्ताओं को मुफ्त दालों के मिल पाने पर संदेह

मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि अभी तक केवल 62 हजार टन दालों की ही आपूर्ति की जा सकी है। इससे आने महीने में भी राशन दुकानों से उपभोक्ताओं को मुफ्त दालों के मिल पाने पर संदेह है। सूत्रों का कहना है कि उच्च स्तरीय बैठक में राज्यों की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए सरकार ने उपभोक्ता मामले विभाग के सचिव पवन अग्रवाल को यहां से हटाकर वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के लॉजिस्टिक विभाग का विशेष सचिव बना दिया गया है। ब्यूरोक्रेट्स के बीच इसे डिमोशन के रूप में देखा जा रहा है।

पिछले दिनों अग्रवाल के एक विभागीय आदेश पर भी उपभोक्ता मंत्री पासवान सख्त नाराज होते हुए तत्काल प्रभाव से उसे रद्द करा दिया था। इसमें सचिव ने लाकडाउन के दौरान ड्यूटी पर न आने वाले कर्मचारियों को चेतावनी दी थी।


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