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चुनाव सुधार की दिशा में ठोस पहल, पहचान पत्र को आधार से जोड़े जाने से आएगी और पारदर्शिता

मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़े जाने से चुनावों में और पारदर्शिता आएगी। साथ ही फर्जी मतदान करने और गलत तरीके से मतदाता बनने का रास्ता भी बंद हो जाएगा। इससे मतदाता सूची में शामिल नामों के सत्यापन और इस बात की पहचान करने में मदद मिलेगी।

By Manish PandeyEdited By: Published: Wed, 22 Dec 2021 12:15 PM (IST)Updated: Wed, 22 Dec 2021 12:15 PM (IST)
चुनाव सुधार की दिशा में ठोस पहल, पहचान पत्र को आधार से जोड़े जाने से आएगी और पारदर्शिता
फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र के बाद इसे दूसरा बड़ा सुधार कहा जा सकता है

[डा. सुशील कुमार सिंह] मतदाता पहचान पत्र यानी वोटर आइडी को आधार से जोड़ने सहित चुनाव सुधारों से जुड़ा चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा से पारित हो गया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह अधिनियम बन जाएगा। इससे चुनावों में और पारदर्शिता आएगी। साथ ही फर्जी मतदान करने और गलत तरीके से मतदाता बनने का रास्ता भी बंद हो जाएगा। इससे मतदाता पंजीकरण अधिकारियों को मतदाता सूची में शामिल नामों के सत्यापन करने और इस बात की पहचान करने में मदद मिलेगी कि एक ही व्यक्ति का नाम कई संसदीय या विधानसभा क्षेत्रों में या एक ही संसदीय या विधानसभा क्षेत्र में एक से अधिक बार शामिल तो नहीं है। फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र के बाद इसे दूसरा बड़ा सुधार कहा जा सकता है। हालांकि मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने की व्यवस्था अनिवार्य नहीं, बल्कि स्वैच्छिक रहेगी। पर्याप्त कारण बताने पर अगर कोई व्यक्ति निर्वाचन पंजीयन अधिकारी को आधार नंबर देने में असमर्थ है तो उसका नाम मतदाता सूची में शामिल करने से इन्कार नहीं किया जाएगा और न ही मतदाता सूची से उसका नाम हटाया जाएगा। इसे अनिवार्य नहीं बनाने की वजह सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला है जिसमें उसने आधार के मामले में निजता के अधिकार को सर्वोच्च माना था। विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के आधार पर ही इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं।

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इस विधेयक के अनुसार अब किसी भी नए मतदाता को 18 साल की उम्र पूरी करने के बाद मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए साल पूरा होने का इंतजार नहीं करना होगा। युवाओं को मतदाता पहचान पत्र बनवाने के लिए साल में चार मौके मिलेंगे। अभी तक उन्हें साल में सिर्फ एक मौका मिलता था, क्योंकि उनकी उम्र की गणना एक जनवरी से की जाती थी। यानी कोई 18 साल की उम्र पूरी भी कर लेता था तो उसे अगले साल एक जनवरी तक का इंतजार करना होता था। इस विधेयक के जरिये अब उनकी उम्र की गणना जनवरी के साथ एक अप्रैल, एक जुलाई और एक अक्टूबर से भी होगी। लिहाजा जैसे ही वे 18 साल की उम्र पूरी करेंगे, उन्हें तुरंत ही मतदाता बनने का अधिकार मिल जाएगा। इसके जरिये वर्षो से कायम एक लिंगभेदी व्यवस्था भी खत्म की गई है। अभी सेना या अन्य सरकारी नौकरी करने वाले पुरुष कर्मचारियों के साथ उनकी पत्नी को तो सर्विस वोटर के रूप में जगह दी जाती है, लेकिन यदि कोई महिला कर्मचारी है तो पति को उसके साथ शामिल नहीं किया जाता था। अब उसकी जगह पर जीवनसाथी शब्द जोड़ दिया गया है। यानी अब पत्नी के साथ पति का नाम भी जुड़ सकेगा। इससे बराबरी का हक मिलेगा।

वास्तव में चुनाव में निष्पक्षता और पारदर्शिता के बगैर किसी भी लोकतंत्र की सफलता सुनिश्चित नहीं की जा सकती। देश में भी समय-समय पर इसके लिए प्रयास किए गए हैं। 1980 की तारकुंडे समिति, 1989 की दिनेश गोस्वामी समिति, 1999 की विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट और टीएन शेषन की सिफारिशों के तहत चुनाव सुधार के पूर्व में कई काम हुए हैं। वैसे हर चुनाव अपनी एक चुनौती रखता है। सरकार और संसद की यह जिम्मेदारी है कि ऐसे नियमों और विनियमों का निर्माण किया जाए जिससे लोकतंत्र के संरक्षक चुनाव आयोग के पास चुनावी चुनौतियों से निपटने के लिए कानूनी ताकत उपलब्ध रहे। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और आदर्श आचार संहिता में इसीलिए बदलाव हुए। चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 को इसी क्रम में देखा जाना चाहिए।

आज आधार की महत्ता जगजाहिर है। वोटर आइडी को जोड़ने से पहले आधार को कई अन्य योजनाओं से लिंक किया जा चुका है। वहां इसके बेहतरीन परिणाम देखे गए हैं। भ्रष्टाचार को रोकने और पारदर्शिता कायम करने में आधार ने अहम भूमिका निभाई है। कार्ड एक, फायदे अनेक की तर्ज पर आधार अपनी पहचान रखता है। वोटर आइडी लोकतंत्र में अहम भूमिका निभाती है। पासपोर्ट बनवाते समय दो पहचान पत्रों में वोटर आइडी को भी प्रमुखता दी जाती है। अब आधार से लिंक करने पर इसकी प्रासंगिकता में इजाफा होगा। आधार और वोटर आइडी जोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार के फैसले को भी ध्यान में रखा जाएगा। निजता का अधिकार संविधान के भाग-तीन के अंतर्गत अनुच्छेद 21 में निहित है। मौजूदा समय में देश में 90 करोड़ मतदाता हैं। दिनेश गोस्वामी समिति ने पहली बार मतदाताओं को वोटर आइडी उपलब्ध कराने की सिफारिश की थी। फिर अगस्त 1993 में इसकी शुरुआत हुई थी।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनाव संपन्न कराना हमेशा एक बड़ा काम रहा है। निरंतर बढ़ती मतदाताओं की संख्या इसकी राह में बड़ी चुनौती रही है। आधार से वोटर आइडी को जोड़ने के पीछे लोकतंत्र की मजबूती छिपी है। इस तरह सरकार चुनाव आयोग को ज्यादा अधिकार देकर लोकतंत्र की गरिमा और प्रतिष्ठा को और बढ़ाना चाहती है। चुनाव आयोग के पास जितने अधिकार होंगे लोकतंत्र की सुरक्षा उतनी ही मजबूती से की जा सकेगी। 136 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में सब कुछ एकाएक नहीं हो सकता, मगर सजग प्रहरी की भूमिका में निर्वाचन आयोग को रहना होता है। हालांकि वोटर आइडी को आधार से जोड़ने का फैसला स्वैच्छिक होगा। यदि इसे पूरी तरह संभव करना है तो मतदाताओं में विश्वास को बढ़ाना होगा। राजनीतिक स्थिति को देखते हुए बड़ी तादाद में मतदाता मतदान करने से भी स्वयं को वंचित कर लेते हैं।

कुल मिलाकर मतदान किसी भी लोकतंत्र में नागरिकों का सर्वोच्च अधिकार है। ऐसे में यह आवश्यक है कि उसके वोट की सर्वोच्चता बनी रहे। इसके लिए जरूरी है कि उसका वोट कोई और व्यक्ति न डाल सके। नए चुनाव सुधार में भी इसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

(निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन)


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