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पवित्र बैल की हत्या से जुड़ी 98 ईसाइयों के हिंदू बनने की कहानी!, ऐसा पहली बार हुआ है

त्रिपुरा में धर्म परिवर्तन करने वाले ईसाई 9 साल पहले तक हिंदू ही थे। अंधविश्वास में इन्होंने तब धर्म बदला था। अब इनके दोबारा हिंदू धर्म अपनाने की वजह भी थोड़ी अजीब है।

By Amit SinghEdited By: Published: Tue, 29 Jan 2019 05:38 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 10:09 AM (IST)
पवित्र बैल की हत्या से जुड़ी 98 ईसाइयों के हिंदू बनने की कहानी!, ऐसा पहली बार हुआ है
पवित्र बैल की हत्या से जुड़ी 98 ईसाइयों के हिंदू बनने की कहानी!, ऐसा पहली बार हुआ है

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पिछले सप्ताह त्रिपुरा से एक खबर आई, जिसमें हिंदू जागरण मंच ने दावा किया कि वहां के 98 ईसाइयों ने हिंदू धर्म अपना लिया है। खास बात ये है कि ईसाई से हिंदू बनने वाले सभी लोग आदिवासी समुदाय के हैं और इन्होंने करीब 9 साल पहले तक ये हिंदू ही थे। वर्ष 2010 में इन लोगों ने हिंदू धर्म से ईसाई धर्म अपना लिया था।

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दोबारा हिंदू धर्म अपनाने पर इनमें से कुछ लोगों ने कहा कि तब इन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए लालच दिया गया था। हालांकि धर्म परिवर्तन के बाद उनका ईसाई समुदाय में तिरष्कार होने लगा। उनसे किए गए वादे पूरे नहीं हुए। इस वजह से उन्होंने अब दोबारा हिंदू धर्म अपनाने का फैसला लिया है। वहीं इनमें से कुछ लोगों ने एक पवित्र बैल से जुड़ी हुई कहानी बताई है, जो उनके दोबारा धर्म परिवर्तन करने की एक चौंकाने वाली वजह है।

सार्वजनिक कार्यक्रम में हुई घर वापसी
पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा के उनाकोटि जिले के राची पाड़ा गांव में बीते रविवार (20 जनवरी 2019) को 23 आदिवासी परिवार के 98 लोगों ने अचानक से हिंदू धर्म अपना लिया। इसके लिए वहां हिंदू संगठनों की तरफ से बकायदा सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। धर्म परिवर्तन के इस कार्यक्रम से विश्व हिंदू परिषद (विहिप) भी जुड़ी हुई थी। इस कार्यक्रम में पुजारियों द्वारा पूरे रीति-रिवाज और पूजा-पाठ के साथ ईसाइयों का धर्म परिवर्तन और शुद्धिकरण किया गया था।

बिहार और झारखंड के हैं आदिवासी
इसके बाद हिंदू जागरण मंच ने 21 जनवरी 2019 को प्रेस कॉफ्रेंस कर 98 आदिवासियों के ईसाई से दोबारा हिंदू धर्म में आने की जानकारी मीडिया को दी। दोबारा हिंदू धर्म अपनाने वालों में से ज्यादातर लोग बिहार और झारखंड के हैं, जो उनाकोटी जिले के सोनामुखी चाय बागान में काम करते थे। इनमें से अधिकतर आदिवासी उरांव और मुंडा समुदाय के हैं। बागान बंद होने के बाद इन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रलोभन दिया गया था।

ये है पवित्र बैल से जुड़ी कहानी
ईसाई से हिंदू बने कुछ लोगों का कहना है कि पिछले माह क्रिसमस के मौके पर गांव के कुछ आदिवासी लड़कों ने पास ही एक पवित्र बैल की हत्या कर दी थी। बताया जाता है कि हिंदुओं ने इस पवित्र बैल को भगवान शिव के नाम पर छोड़ा था। इसलिए इस बैल को शिव के वाहन नंदी की तरह पवित्र माना जाता था। उसकी हत्या के बाद यहां बहुत कुछ बदल गया। गांव के ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं थी। हिंदू संगठनों को जैसे ही घटना का पता चला तो उन्होंने गांव में आकर हिंदू से ईसाई बने कुछ आदिवासियों की पवित्र बैल की हत्या करने के आरोप में पिटाई की। हालांकि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि पवित्र बैल की हत्या किसने और क्यों की थी।

बैल की हत्या के बाद गांव में बने माहौल का असर ये हुआ कि धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासी डर गए। मामले में कैलाशहर पुलिस ने बैल की हत्या के आरोप में चार लोगों को गिरफ्तार भी किया था, जिन्हें जमानत मिल गई। दोबारा हिंदू धर्म अपनाने वाले लोगों के अनुसार दस साल पहले हम भले ही ईसाई बन गए थे, लेकिन मूल रूप से हम सनातन धर्म के ही हैं। गांव में जब पवित्र बैल की हत्या हुई तो हम लोगों पर काफी मुसीबत आ गई थी। इसके बाद इस पूरे अशांत माहौल को ठीक करने के लिए हम लोगों ने (आदिवासियों ने) एक साथ दोबारा हिंदू धर्म अपनाने का फैसला लिया। ऐसा संभवतः पहली बार हुआ है कि किसी पवित्र बैल की हत्या के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने हिंदू धर्म अपनाया हो।

इसलिए की थी पवित्र बैल की हत्या!
मामले में हिंदू जागरण मंच के नेताओं का कहना है कि पवित्र बैल की हत्या के बाद वह लोग उस गांव में गए थे, लेकिन उनके द्वारा न तो किसी को पीटा गया और न ही किसी पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाया गया। कार्यकर्ताओं ने ग्रामीणों को समझाया था कि आप लोग मूलतः हिंदू हो और आपको ऐसा काम नहीं करना चाहिए। इन लोगों का दावा है कि इसी दौरान उन्हें पता चला कि पास की दारलोंग बस्ती से ईसाई प्रचारक प्रत्येक रविवार को इस गांव में आकर लोगों को गाय खाने के लिए प्रेरित करते थे। उन्हीं से प्रेरित होकर कुछ लोगों ने पवित्र बैल की हत्या की थी। हालांकि इन आरोपों की कोई पुष्टि नहीं है। हिंदू जागरण मंचा का आरोप है कि क्रिश्चियन मिशनरी ग्रामीण इलाकों में रहने वाले गरीब हिंदुओ को भ्रमित कर और लालच देकर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करते हैं।

अंधविश्वास में बने थे ईसाई
10 साल में दो बार धर्म परिवर्तन करने वाले इन आदिवासियों का कहना है कि उन्होंने अंधविश्वास में पड़कर ईसाई धर्म अपनाया था। दरअसल उनके गांव के लगभग हर घर में छोटे बच्चे मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे थे। गांव के लगभग हर घर में एक बच्चा दिमागी बीमारी का शिकार है। कुछ घरों में बड़ी उम्र के लोग भी दिमागी बीमारी से पीड़ित हैं। ईसाई प्रचारकों को जब इसका पता चला तो उन्होंने गांव के लोगों को समझाया कि अगर वह ईसाई धर्म अपना लें और उनके साथ चर्च में प्रार्थना करें तो उनको इस मुसीबत से छुटकारा मिल सकता है। इस वजह से करीब नौ साल पहले इन आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपना लिया था। इसके बाद ईसाई मिशनरी के लोगों ने गांव में एक पक्का चर्च बना दिया, जहां सभी लोग मिलकर प्रार्थना करने लगे। इनके दोबारा से हिंदू बनने के बाद से गांव का वह चर्च सूना पड़ा हुआ है।

हिंदू संगठनों पर आरोप
इस घटना के बाद पूरे मामले ने यहां राजनीतिक रूप ले लिया है। राजनीतिक पार्टियों धर्म परिवर्तन के इस सार्वजनिक कार्यक्रम को लेकर हिंदू संगठनों और भाजपा नेताओं पर आरोप लगा रही है। उनका आरोप है कि हिंदू संगठनों ने बैल की हत्या की कहानी बनाकर लोगों को डरा-धमकाकर और मार-पीटकर धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया है। धर्म परिवर्तन करने वाले इनसे काफी डरे हुए हैं। वहीं स्थानीय भाजपा नेता, हिंदू संगठनों और धर्म परिवर्तन करने वालों ने भी इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है।

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