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मोदी सरकार ने कसी कमर, दुष्कर्म मामलों की सुनवाई के लिए देश भर में बनेंगी 1023 विशेष अदालतें

लंबित मुकदमों के निपटारे के अलावा दुष्कर्म और बाल यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच पर भी सरकार निगाह रखेगी और गृह मंत्रालय जांच की निगरानी करेगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 11 Jul 2019 09:39 PM (IST)Updated: Thu, 11 Jul 2019 09:39 PM (IST)
मोदी सरकार ने कसी कमर, दुष्कर्म मामलों की सुनवाई के लिए देश भर में बनेंगी 1023 विशेष अदालतें
मोदी सरकार ने कसी कमर, दुष्कर्म मामलों की सुनवाई के लिए देश भर में बनेंगी 1023 विशेष अदालतें

माला दीक्षित, नई दिल्ली। महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कमर कस ली है। इसके लिए सरकार महिलाओं और बच्चों से दुष्कर्म व यौन उत्पीड़न के मामलों की त्वरित सुनवाई और त्वरित जांच सुनिश्चित करने के इंतजाम कर रही है। इस सिलसिले में देश भर में 1023 विशेष अदालतें गठित की जाएंगी जिनमें न सिर्फ महिलाओं से दुष्कर्म के मुकदमों की सुनवाई होगी बल्कि बाल यौन उत्पीड़न निरोधक कानून (पोक्सो) के तहत बच्चों के यौन उत्पीड़न के मुकदमों की भी सुनवाई होगी।

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लक्ष्य एक वर्ष मे इन सभी अदालतों को गठित करने और एक वर्ष में ही यौन उत्पीड़न के मुकदमों को निपटाने का है। अभी तक 18 राज्यों ने इन विशेष अदालतों के गठन को सहमति दे दी है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की प्रवक्ता ने योजना की जानकारी देते हुए बताया कि महिलाओं बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और जल्द न्याय दिलाने के लिए गृह, कानून और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय मिल कर काम कर रहा है। क्रिमनल ला एमेंडमेंट बिल 2018 में विशेष अदालतों के गठन की बात थी। इनके गठन के लिए पैसा निर्भया फंड से जाना है।

निर्भया अधिकार प्राप्त समिति ने इन अदालतों के गठन की संस्तुति भेज दी है। 1023 अदालतों के गठन में कुल 700 करोड़ रुपये का खर्च आएगा जिसमें से 474 करोड़ रुपये केन्द्र सरकार देगी बाकी पैसा राज्य सरकारों को देना होगा। प्रत्येक कोर्ट पर सालाना 75 लाख रुपये का खर्च आएगा। ये अदालतें अभी राज्यों में ऐसे मुकदमों की सुनवाई कर रही विशेष अदालतों से अलग होंगी।

इनके गठन का उद्देश्य अदालतों में लंबित मुकदमों के ढेर को देखते हुए न्यायपालिका में ढांचागत संसाधन बढ़ाना है ताकि जल्द न्याय सुनिश्चित हो। इन अदालतों के कामकाज की निगरानी कानून मंत्रालय करेगा और तिमाही रिपोर्ट लेगा।

अधिकारी का कहना है कि लंबित मुकदमों के निपटारे के अलावा दुष्कर्म और बाल यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच पर भी सरकार निगाह रखेगी और गृह मंत्रालय जांच की निगरानी करेगा। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बाल यौन उत्पीड़न के ज्यादातर मामले जानने वालों द्वारा होते हैं।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एनसीआरबी के साथ बैठक करके इन आंकड़ों के और पहलू तैयार करने को कहा है ताकि जानने वालों का भी विश्लेषण हो सके, कि वे लोग परिवार के हैं या पड़ोस के या फिर दूर के परिचित होते हैं।

बाल यौन उत्पीड़न रोकने के लिए कानून में किये जा रहे हैं सख्त प्रावधान

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय पाक्सो कानून में संशोधन करके बच्चों का यौन उत्पीड़न करने वालों को सख्त सजा देने का प्रावधान कर रहा है। बिल अगले सप्ताह संसद में पेश होगा। कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाया जा रहा है ताकि सिर्फ बच्चियों को ही नहीं बल्कि बालकों को भी यौन उत्पीड़न से बचाया जा सके।

यौन उत्पीड़न करने वालों को कड़ी सजा यहां तक कि मौत की सजा का भी प्रावधान किया गया है। इसके अलावा कानून में चाइल्ड पोर्नोग्राफी की परिभाषा तय की गई है जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी की फोटो, वीडियो, कार्टून या फिर कंप्यूटर जेनेरेटड इमेज को इसके तहत दंडनीय अपराध की जद मे लाया गया है।

ऐसी सामग्री रखने तक को 5000 से लेकर 10000 तक के जुर्माने के दंड की व्यवस्था की गई है, लेकिन अगर कोई ऐसी सामग्री का व्यवसायिक इस्तेमाल करता है तो उसे जेल की सख्त सजा होगी। कानून में बच्चों का यौन उत्पीड़न करने के उद्देश्य से उन्हें दवा या रसायन आदि देकर जल्दी युवा करने को गैर जमानती अपराध बनाया गया है जिसमें पांच साल तक की कैद का प्रावधान है।


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