तमिलनाडु में सरकारी स्कूलों के छात्रों को मिलेगा मेडिकल में 10% आरक्षण, अध्यादेश लाने को मंजूरी
तमिलनाडु मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य सरकार के स्कूलों के छात्रों को मेडिकल में 10 फीसद आरक्षण प्रदान करने के लिए अध्यादेश लाने को मंजूरी प्रदान कर दी गई है।
चेन्नई, आइएएनएस। तमिलनाडु (Tamil Nadu) के मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी (Chief Minister K. Palaniswami) की अध्यक्षता में सोमवार को हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य सरकार के स्कूलों के छात्रों को मेडिकल में 10 फीसद आरक्षण प्रदान करने के लिए अध्यादेश लाने को मंजूरी प्रदान कर दी गई। यह आरक्षण मेडिकल कॉलेजों में अंडरग्रेजुएट कोर्स के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (National Eligibility cum Entrance Test, NEET) उत्तीर्ण करने वाले छात्रों को प्रदान किया जाएगा।
यह फैसला मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पी. कलैयारासन वाले एक सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट के आधार पर लिया गया है। एक-दो दिन पहले ही उन्होंने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी है। मालूम हो कि पलानीस्वामी ने मार्च में राज्य विधानसभा को ऐसे छात्रों के लिए आरक्षण देने के फैसले की जानकारी दी थी जिन्होंने कक्षा एक से कक्षा 12 तक राज्य सरकार के स्कूलों में शिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने दावा किया था कि नीट की शुरुआत के बाद से मेडिकल कॉलेजों में सरकारी स्कूलों के छात्रों में कमी आ गई थी।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश में आरक्षण का अधिकार संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार नहीं है। इस टिप्पणी के साथ ही सर्वोच्च अदालत ने तमिलनाडु में मेडिकल सीटों में ओबीसी के लिए अलग से 50 फीसद आरक्षण मांगने वाली विभिन्न राजनीतिक दलों की याचिका को सुनने से इन्कार कर दिया था। 2020-21 सत्र में मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिए अखिल भारतीय कोटे में तमिलनाडु के लिए छोड़ी गई सीटों में अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए 50 फीसद सीटें आरक्षित नहीं करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ यह याचिका दाखिल की गई थी।
माकपा, भाकपा, द्रमुक और तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी समेत राजनीतिक दलों की याचिकाओं पर नागेश्वर राव, कृष्ण मुरारी और एस रवींद्र भट की खंडपीठ ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका (सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर) मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन के मामले में ही दायर की जा सकती है। ऐसे में राजनीतिक दलों के ऐसे किसी अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है। लिहाजा उन्हें यह याचिका उन्हें वापस लेनी होगी। खंडपीठ ने कहा कि भारत के संविधान में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।