चीन की सेना में हुए बड़े बदलाव के पीछे क्या है वजह, कहीं भारत तो नहीं कारण
चीन ने अपनी थल सेना में कटौती कर वायु और नौसेना में इजाफा करने की जो पहल की है उसके पीछे दो बड़ी वजह हैं। भारत भी इसकी ही एक कड़ी है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चीन अपनी सेना में बड़ा बदलाव किया है। इसके तहत उसने अपन थल सेना के आकार में लगभग 50 फीसद तक की कटौती की है। हालांकि, इस कटौती के बाद भी 20 लाख सैनिकों के साथ पीएलए दुनिया की सबसे बड़ी सेना बनी हुई है। चीन की मीडिया ने इसको इतिहास का असाधारण बदलाव बताया है। इस बदलाव के तहत वह अपनी थल सेना में कटौती कर नौसेना और वायुसेना में इजाफा कर रहा है। इसके पीछे एक नहीं बल्कि कई वजह हैं। वहीं यदि इसके दो बड़े कारणों पर गौर किया जाए तो उसमें एक बड़ा कारण भारत है तो दूसरा बड़ा कारण चीन की विस्तारवादी नीति है। आपको बता दें कि दक्षिण चीन सागर पर कब्जे को लेकर अमेरिका और चीन कई बार आमने-सामने आ चुके हैं। इस पर दोनों ही एक दूसरे को अल्टीमेटम भी दे चुके हैं। वहीं दूसरी तरफ यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसपर कई देशों ने अपना हक जताया है। ताजा फैसले के पीछे यहां पर चीन की मौजूदगी की भी एक बड़ी वजह है।
दक्षिण चीन सागर
दरअसल, यह पूरा इलाका प्राकृतिक संसाधनों से भरा पड़ा है। इस इलाके से करीब 335 लाख करोड़ का सालाना कारोबार होता है। दुनियाभर के 33 फीसद व्यापारिक जहाज इसी मार्ग से होकर गुजरते हैं। यही वजह है कि चीन इस जगह को लेकर काफी संजीदा है और वह अमेरिका से भी आर-पार को तैयार है। इस पर मलेशिया, ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम और ब्रुनई भी अपना हक जताता है। समुद्र से पूरी तरह से घिरा होने की वजह से यहां की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी या तो नौसेना के पास है या फिर चीन की वायुसेना के पास। इसके अलावा यह पूरा इलाका आम नागरिकों के लिए पूरी तरह से निषेध है, इसलिए यहां की सुरक्षा की जिम्मेदारी इन्हीं के पास है। यहां पर थल सेना की कोई भूमिका नहीं है।
चीन की विस्तारवादी नीति
थल सेना में कटौती कर नौसेना और वायुसेना में इजाफा करने की वजह के पीछे दूसरी बड़ी वजह चीन की विस्तारवादी नीति भी है। आपको बता दें कि चीन लगातार अपने पांव हिंद महासागर में फैला रहा है। यहां पर वह अपनी कर्ज नीति का दांव खेलकर छोटे देशों को अपनी मुट्ठी में करना चाहता है। इसके तहत वह नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। पाकिस्तान में बनने वाले आर्थिक गलियारे पर चीन खरबों रुपये खर्च कर रहा है। इसके लिए चीन ने पाकिस्तान को अरबों का कर्ज भी दिया है। सीपैक सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि इससे भी कहीं आगे है। चीन पाकिस्तान के लिए कुछ पनडुब्बियां भी बना रहा है। यह सारा खेल चीन ने हिंद महासागर में पांव पसारने और भारत के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए रचा है। इस बड़े इलाके में नजर रखने की भी जिम्मेदारी चीन की वायुसेना और नौसेना की ही है। यहां पर भी चीन की थलसेना की कोई जगह नहीं है।
चीन के सीमा विवाद
चीन के इस बड़े फैसले को समझने के लिए यह भी जानना जरूरी है कि चीन की सीमाएं भले ही सिर्फ 14 देशों के साथ मिलती हैं, लेकिन इसका सीमा विवाद 23 देशों के साथ है। भारत, अफगानिस्तान, कजाखिस्तान, मंगोलियां भी शामिल हैं। इसके अलावा इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि भविष्य में किसी भी युद्ध में वायुसेना और नौसेना की अहम होगी। भविष्य का युद्ध पूरी तरह से तकनीक के आधार पर लड़ा जाएगा, जिसे चीन बखूबी जानता है। इसके लिए चीन काफी समय से तैयारी कर रहा है। उसकी नौसेना और वायुसेना की बात करें तो पिछले वर्ष चीन ने इन्हें और मजबूती देने के लिए अत्याधुनिक लड़ाकू विमान और स्वदेशी पनडुब्बी समुद्र में उतारी है। चीन का पूरा ध्यान अब हिंद महासागर में मौजूद देशों को साधने में लगा है। यही वजह है कि वह अपनी नौसेना और वायुसेना का दायरा बढ़ा रहा है। आपको बता दें कि चीन ने पिछले वर्ष ही अफ्रीकी देश जिबूती में अपना पहला नौसेना का बेस बनाया है। चीन की नौ सेना के पास अभी एक विमानवाहक युद्धपोत है, जबकि दूसरे का परीक्षण चल रहा है और तीसरे युद्धपोत का निर्माण जारी है। सरकारी मीडिया के मुताबिक चीन अपनी नौ सेना में पांच से छह विमानवाहक युद्धपोत को शामिल करने की तैयारी में है।
ये भी हैं वजह
शंघाई के सैन्य मामलों के जानकार नी लेक्सियांग का भी कहना है कि चीन की इस रणनीतिक बदलाव में सीमा से दूर अपने हितों की रक्षा का मकसद छिपा है। साथ ही एक दूसरा उद्देश्य देश की सीमा से दूर के क्षेत्रों में भी अपनी ताकत को मजबूत करना है। उनके मुताबिक मौजूदा वक्त में थल सेना की अहमियत कम हो गई है। अब अंतरिक्ष, हवा और साइबर क्षेत्र में दबदबा कायम करने का समय आ गया है।
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