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जानिए, US के विरोध के बावजूद भारत के लिए क्यों है जरूरी S-400 मिसाइल

भारत और रूस इस औपचारिक वार्ता में एस-400 मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली (ट्रायंफ) पर समझौता कर सकते हैं। यह करार पांच अरब डॉलर से अधिक राशि का होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 05 Oct 2018 09:42 AM (IST)Updated: Fri, 05 Oct 2018 10:10 AM (IST)
जानिए, US के विरोध के बावजूद भारत के लिए क्यों है जरूरी S-400 मिसाइल
जानिए, US के विरोध के बावजूद भारत के लिए क्यों है जरूरी S-400 मिसाइल

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सालाना भारत-रूस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने दो दिवसीय दौरे पर गुरुवार को भारत आ चुके हैं। शुक्रवार को वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे। ये दौरा रणनीतिक संबंधों के लिहाज से महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत और रूस इस औपचारिक वार्ता में एस-400 मिसाइल रोधी रक्षा प्रणाली (ट्रायंफ) पर समझौता कर सकते हैं। यह करार पांच अरब डॉलर से अधिक राशि का होगा।

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क्या है एस-400 मिसाइल
रूस की एस-400 ट्रायंफ दुनिया की सबसे आधुनिक वायु रक्षा प्रणाली है। एक साथ कई तरह के लक्ष्यों की पहचान और उसे मार गिराने में सक्षम है। सभी तरीके के विमानों, मिसाइलों और मानवरहित विमानों और ड्रोन को एक साथ भेद सकती है। यह प्रणाली कई तरह के आधुनिक रडारों, कंट्रोल सिस्टम्स और विभिन्न प्रकार की मिसाइलों से युक्त है। इसके रडार एक हजार किमी दूर से ही किसी लक्ष्य की पहचान कर सकते हैं। साथ ही स्वचालित और नियंत्रित तरीके से दूरी के लिहाज से मिसाइल का संधान कर उसे अचूक रूप से मार गिराते हैं।

नाटो देशों ने इसे एसए 21 ग्रोलर नाम दिया है। 30 किलोमीटर की ऊंचाई और 400 किलोमीटर दूर तक हमला कर सकती है। निर्देश मिलने के चंद पलों के अंदर एक साथ तीन मिसाइलें दागी जा सकती हैं। ये सुपर फाइटर जेट समेत 100 एयरबोर्न लक्ष्यों को ट्रैक करते हुए एक साथ छह पर निशाना साध सकती है।

क्यों अहम है मुलाकात
1953 के बाद भारत लगातार रूस से सैन्य हथियार खरीदता रहा है और कुल सैन्य हथियारों में से 60 फीसद रूस से खरीदे जाते हैं। सेना में परमाणु पनडुब्बी आइएनएन चक्र, सुपरसोनिक ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल, मिग और सुखोई लड़ाकू विमान, आइएल परिवहन विमान, टी-72 और टी-90 टैंक व विक्रमादित्य विमान वाहक युद्धपोत शामिल हैं। अब एस-400 मिसाइल खरीदने के बाद भारत की सैन्य शक्ति बढ़ेगी और न सिर्फ एशिया बल्कि महाद्वीपीय देशों के बीच मजबूत दावेदारी हासिल करेगा। हालांकि अमेरिका का काटसा (काउंर्टंरग अमेरिका एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन एक्ट) कानून इस समझौते में पेंच फंसा रहा है।

एस-400 प्रणाली की जरूरत
भारत में वायु रक्षा प्रणाली अन्य देशों की तुलना में पुरानी है जिनमें ज्यादातर सोवियत युग के मिग जेट हैं। एस-400 रूस की सबसे एडवांस और सबसे शक्तिशाली वायु रक्षा प्रणाली है जो 2007 में रूसी सेना में तैनात की गई थी। ये अमेरिका के सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान एफ-35 को भी समय रहते गिराने की क्षमता रखती है। चीन ने 2015 में सबसे पहले रूस से एस-400 रक्षा प्रणाली खरीदी थी और इस साल जनवरी से ये चीनी सेना में शामिल है। पाकिस्तान और चीन की तरफ से सुरक्षा और दोहरे मोर्चे पर युद्ध के मामले में यह महत्वपूर्ण है। अक्टूबर 2015 में भारत ने 12 मिसाइलों के खरीदने पर विचार किया लेकिन कहा गया कि भारत के लिए पांच मिसाइलें पर्याप्त हैं। हालांकि बाद में ये सौदा टल गया।

काटसा का उल्लंघन
अमेरिका का काटसा कानून कहता है कि अगर कोई देश रूस, ईरान और उत्तर कोरिया के साथ बड़े लेनदेन करता है तो वह अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में आ सकता है। ऐसे में रूस से समझौता काटसा कानून का उल्लंघन होगा जो भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में ले आएगा।

अमेरिका की दुविधा
अगस्त 2017 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस कानून को आधिकारिक तौर पर लागू किया। भारत रूस के साथ इस समझौते के लिए पूरी तरह तैयार है लेकिन अमेरिकी कानून के बीच में आने के बाद चीन, पाकिस्तान और खुद अमेरिका भी भारत के फैसले के इंतजार में है। अगर भारत अमेरिका के दवाब में करार नहीं करता है तो वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को नुकसान होगा। वहीं अमेरिका की दुविधा समझौते के बादभारत से मजबूत रिश्तों के कमजोर होने की है। अमेरिका चीन और पाकिस्तान पर दवाब बनाने के लिए अकेला पड़ सकता है। 


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