श्रीलंका: राजपक्षे के पीएम बनने के बाद सत्ता संग्राम, विक्रमसिंघे ने कहा-मैं अभी भी PM
श्रीलंका में राष्ट्रपति सिरिसेन ने महिंदा राजपक्षे को नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिला दी। निवर्तमान प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने असंवैधानिक करार दे दिया।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। पड़ोसी देश श्रीलंका में शुक्रवार को राजनीतिक गतिविधियों ने ऐसी करवट ली कि आने वाले दिनों में हालात भारत के हितों के खिलाफ बन सकते हैं। राजधानी कोलंबो में अचानक बदले सियासी घटनाक्रम में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेन ने पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिला दी।
कुछ घंटे बाद निवर्तमान प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने प्रतिक्रिया में घटनाक्रम को असंवैधानिक करार दे दिया। उन्होंने कहा- वह अभी भी देश के प्रधानमंत्री हैं और संसद में अपनी सरकार का बहुमत साबित करेंगे। विक्रमसिंघे को भारत समर्थक माना जाता है, उन्होंने पिछले हफ्ते ही भारत की यात्रा की थी।
कोलंबो में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेन ने बेहद गोपनीय तरीके से राजपक्षे को पीएम पद की शपथ दिलाई। देर रात तक इसका आधिकारिक वीडियो भी जारी नहीं किया गया। प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक विक्रमसिंघे के नेतृत्व वाली संयुक्त सरकार से सिरिसेन के यूपीएफए गठबंधन ने समर्थन वापस ले लिया है। इसकी वजह से सरकार अल्पमत में आ गई थी।
इसके पहले गठबंधन में शामिल एसएलएफपी पार्टी के सांसदों ने भी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। विक्रमसिंघे की राजनीतिक पार्टी यूएनपी ने सिरिसेन की पार्टी के साथ मिलकर वर्ष 2015 में सरकार बनाई थी। तब राजपक्षे को सत्ता से बाहर होना पड़ा था।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सिरिसेन और विक्रमसिंघे के बीच हाल के महीनों में कई मुद्दों पर विवाद चल रहा था। जिसमें भारत के साथ संबंधों से जुड़े मुद्दे भी थे। पिछले हफ्ते विक्रमसिंघे के भारत आने से एक दिन पहले ही दोनों के बीच का विवाद सामने आ गया था।
राष्ट्रपति सिरिसेन की तरफ से भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ पर आरोप लगाया गया था कि वह उनकी हत्या करवाना चाहती है। बाद में इस मसले पर सिरिसेन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टेलीफोन पर बातचीत हुई और मामला ठंडा पड़ा। श्रीलंका में एक बंदरगाह भारत को देने के मुद्दे पर भी दोनों श्रीलंकाई नेताओं के बीच विवाद बढ़ा था।
अब वहां जो नए हालत बने हैं वे भारत के लिए सुखद नहीं कहे जाएंगे क्योंकि राजपक्षे ने पूर्व में राष्ट्रपति के तौर पर भारत के हितों के खिलाफ जाकर चीन की मदद की थी। उनके कार्यकाल में चीन ने श्रीलंका में तेजी से विस्तार किया।
उनकी वजह से चीन को वहां एक एयरपोर्ट और बंदरगाह मिला। विक्रमसिंघे लगातार सार्वजनिक तौर पर चीन के बढ़ते कर्ज का जिक्र करते रहे हैं। हाल ही में सरकार ने चीन की एक कंपनी का निर्माण ठेका रद करके उसे भारतीय कंपनी को दिया था। इस फैसले को चीन के हितों पर चोट पहुंचाने के तौर पर देखा गया था।