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चिनफिंग अवतार..क्या चीन का विश्व शक्ति बनने का सपना होगा पूरा

चिनफिंग के सर्वकालिक सर्वशक्तिमान होने के बाद इसमें गुणात्मक इजाफा हो सकता है। जो भारत जैसे प्रतिद्वंद्वी के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 05 Mar 2018 04:13 PM (IST)Updated: Mon, 05 Mar 2018 04:35 PM (IST)
चिनफिंग अवतार..क्या चीन का विश्व शक्ति बनने का सपना होगा पूरा
चिनफिंग अवतार..क्या चीन का विश्व शक्ति बनने का सपना होगा पूरा

नई दिल्ली (जेएनएन)। 1998 में तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीस ने चीन को भारत का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था। हाल में हुए चीन के घटनाक्रम उनकी दशक पुरानी आशंका को बल देते हुए दिख रहे हैं। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के दो बार के सीमित कार्यकाल को असीमित करने की अनुमति दे दी है। सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग असीमित कार्यकाल के मालिक हो जाएंगे। दुनिया उनके इस कदम में तानाशाह का अक्स देख रही है लेकिन असीमित कार्यकाल और अपार ताकत के बूते वे चीन को विश्व शक्ति बनाने के अपने सपने को संजोए हुए हैं।

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पुराने विवादों को छोड़ दें तो उनके महत्वाकांक्षी अभियान सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) और ओबोर (वन वेल्ट वन रोड) में नैसर्गिक भारत विरोध छिपा है। ये तभी सिरे चढ़ सकते हैं, जब वे 2023 के बाद भी राष्ट्रपति रहें। शीर्ष नेतृत्व जितना ताकतवर होता है, देश उतना ही आक्रामक होता जाता है। भारत को लेकर चीन की आक्रामकता जगजाहिर है। चिनफिंग के सर्वकालिक सर्वशक्तिमान होने के बाद इसमें गुणात्मक इजाफा हो सकता है। जो भारत जैसे प्रतिद्वंद्वी के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। ऐसे में चिनफिंग के इस नए अवतार से निपटने के लिए भारत की तैयारियों की पड़ताल सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

13 का तिलिस्म

चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को दुनिया के बाजारों के लिए 1978 में खोला। हम 13 साल बाद यानी 1991 में ऐसा कर सके। यही बढ़त चीन को आज हमसे आगे कर रही है। उदारीकरण के बाद दोनों देशों के आर्थिक विकास के तमाम संकेतक एक सी कहानी कहते हैं। चीनी अर्थव्यवस्था के इंजन को गति मैन्युफैक्र्चंरग ने दी तो भारत ने सेवा क्षेत्र पर भरोसा किया। चीन के रास्ते अगर भारत को आगे बढ़ना है तो सेवा के साथ कम लागत वाली मैन्युफैक्र्चंरग पर दांव खेलना होगा।

कितने दूर

कई मसलों पर एशिया के दोनों देशों के बीच मतभेद हैं।

सीमा विवाद

दोनों देशों के बीच 3488 किमी लंबी सीमारेखा है। ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने 1914 में शिमला समझौते के तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मैकमहोन रेखा निर्धारित की। चीन इस रेखा को अवैध मानता है लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति भी कमोबेश यही है।

नत्थी वीजा

अरुणाचल प्रदेश व लद्दाख के कुछ विवादित क्षेत्रों के लिए चीन नत्थी वीजा जारी करता है।

ब्रह्मपुत्र पर बांध

ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा डैम बना लेने से इस नदी में 200 अरब क्यूबिक मीटर पानी का बहाव कम हो जाएगा। इस मसले को लेकर भी दोनों के बीच तनातनी है।

दक्षिण चीन सागर

चीन को दक्षिण चीन सागर के हिस्से में वियतनाम के साथ मिलकर भारत के प्राकृतिक गैस की खोज का काम करने पर एतराज है। ओएनजीसी की विदेशी शाखा ओएनजीसी विदेश लिमिटेड व वियतनाम की कंपनी पेट्रो वियतनाम मिलकर काम कर रहे हैं। 22 जुलाई 2011 को जब भारतीय नौ सेना का आइएनएस एरावत यहां से होते हुए वियतनाम की मैत्री यात्रा पर गया था, तब भी चीन ने आपत्ति जतायी थी।

तिब्बती शरणार्थी

तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा के भारत में शरण लिए जाने पर चीन आंखें तरेरता रहा है। चीन ने 1950 में तिब्बत को अपने में मिला लिया था।

विदेश में कारोबार

भारत की द. अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में कारोबारी गतिविधियों से चीन सशंकित रहा है।

द्विपक्षीय कारोबार

1978 में व्यापारिक संबंध शुरू हुए। छह साल बाद दोनों ने मोस्ट फेवर्ड नेशन का समझौता हस्ताक्षरित किया। वर्ष 2000 में व्यापार मात्र 2.92 अरब डॉलर था। 2011 में यह 73.9 अरब डॉलर हुआ।

ओबोर परियोजना

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना से बाहर रहकर भारत ने एक तरह से उसे चिढ़ाया है। अब जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की ऐसी ही परियोजना में भारत हिस्सा ले रहा है।

कितने पास

कई ऐसे मसले हैं जिनमें भारत और चीन की रीति-नीति एक सी है। समान हितों, जरूरतों के चलते अहम अंतरराष्ट्रीय मसलों पर दोनों के सुर एक ही होते हैं।

डब्ल्यूटीओ में फूड सब्सिडी

भारत का डब्ल्यूटीओ में पक्ष है कि खाद्य वस्तुओं व खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों पर अनुदान जारी रहना चाहिए। वहीं डब्ल्यूटीओ के प्रस्तावित ट्रेड फेसिलिटेशन एग्रीमेंट के तहत कुल कृषि उत्पादन मूल्य का 10 प्रतिशत से अधिक अनुदान नहीं दिया जा सकता है।

जलवायु परिवर्तन

दोनों देशों की राय रही है कि यूएन क्लाइमेट समिट ऐसा फोरम नहीं है जिससे पूरे विश्व की जलवायु के विषय पर कोई निर्णय सुनाया जा सके। विकसित व विकासशील देशों में अंतर करना ही होगा।

आतंकवाद

चीन के जिनजियांग में ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के आतंकी सक्रिय हैं। ईटीआइएम को अलकायदा का संरक्षण प्राप्त है। हालांकि पाकिस्तान को लेकर उसके रुख से सवाल जरूर खड़े होते रहे हैं।

अफगानिस्तान

शांत, स्थिर और समृद्ध अफगानिस्तान दोनों देशों के हित में है।

अमेरिकी आक्रामकता

भारत-चीन का पक्ष रहा है कि किसी देश की संप्रभुता-एकता पर आंच नहीं आनी चाहिए।

वित्तीय प्रणाली में सुधार

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं के नियम-कानूनों में बदलाव लाते हुए कोटा सिस्टम चाहते हैं।

ब्रिक्स

ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक आइएमएफ में अमेरिका के वर्चस्व को देखते हुए खड़ा किया गया है। 


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