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जानिए भारत के लिए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों की अहमियत

नुपूर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल की विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर जिस तरह से भाजपा ने कार्रवाई की है उससे स्पष्ट है कि भारत के लिए खाड़ी देश बहुत अहम हैं। न सिर्फ हम उन देशों के कच्चे तेल पर निर्भर हैं बल्कि उनके साथ हमारे सदियों पुराने संबंध हैं।

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Published: Tue, 07 Jun 2022 02:14 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jun 2022 03:03 PM (IST)
जानिए भारत के लिए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों की अहमियत
खाड़ी देशों से भारत के संबंधों की गहराई को नापने के कई पैमाने हैं।

ब्रजबिहारी, नई दिल्ली। विदेश मंत्रालय भले ही खाड़ी देशों सहित इस्लामी मुल्कों को दी गई सफाई में भाजपा के पूर्व प्रवक्ताओं नुपूर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के खिलाफ की गई कार्रवाई का हवाला देते हुए उन्हें हाशिए की चीज बताकर विवाद को ठंडा करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन एक बात तो तय है कि मामला काफी गंभीर है। खाड़ी देशों के साथ बरसों की मेहनत से संवारे गए दोस्ती के रिश्ते काफी मजबूत तो हैं, साथ ही साथ नाजुक भी। सदियों पुराने इतिहास और संस्कृति की कड़ियों के अलावा भारत और खाड़ी देश आर्थिक रूप से भी एक-दूसरे से गहरे जुड़े हैं। वैश्विक मंच पर भी दोनों को एक दूसरे की जरूरत पड़ती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान जिस तरह से खाड़ी के देशों ने कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर पाकिस्तान की अनदेखी की है, उससे भारत के लिए इन देशों के महत्व को समझा जा सकता है।

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खाड़ी देशों का महत्व

वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खाड़ी देशों के साथ संबंधों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने पर विशेष जोर दिया है। वर्ष 2015 में उन्होंने यूएई की यात्रा की थी। उसके बाद से वे 2018 और 2019 में वहां की यात्रा पर जा चुके हैं। अबू धाबी के क्राउन प्रिंस 2017 और 2018 में भारत की यात्रा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी 2016 में कतर और इरान गए थे और 2016 और 2019 में सऊदी अरब के दौरे पर गए थे। वर्ष 2018 में वे न सिर्फ फलस्तीन गए बल्कि रामल्ला की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने। अपने दौरे में पीएम खाड़ी देशों की कई मशहूर मस्जिदों में भी गए। उनमें अबू धाबी की शेख जाएद ग्रांड मास्क और मस्कट की सुल्तान कबूस ग्रांड मास्क शामिल हैं।

अब भी नहीं आ रही समझ

नुपूर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल प्रकरण के बाद भी भाजपा के कुछ नेताओं के बयान समझ से परे हैं। हालांकि ऐसे बड़बोले नेताओं को टेलीविजन एवं सोशल मीडिया के कारण अनावश्यक महत्व मिल रहा है। बिना सोचे-समझे भारत के साथ इन देशों के रिश्तों को जनसंख्या के आधार पर परिभाषित करना समझदारी नहीं है। एक टीवी डिबेट में भाजपा नेता साध्वी प्राची कह रही थीं कि 29 लाख की आबादी वाला खाड़ी का एक देश भला भारत का क्या बिगाड़ लेगा। ऐसे लोगों की आंखें तो नहीं खोली जा सकती हैं लेकिन नीचे दिए गए आंकड़े किसी सामान्य पाठक को बताने के लिए पर्याप्त हैं कि खाड़ी देशों की नाराजगी का क्या अर्थ होता है।

बहुत गहरे हैं संबंंध
खाड़ी देशों से भारत के संबंधों की गहराई को नापने के कई पैमाने हैं। मसलन, देश से बाहर एक बड़ी भारतीय आबादी खाड़ी देशों में निवास करती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की एक तिहाई से ज्यादा जनसंख्या भारतीय है। सभी खाड़ी देशों को मिला दिया जाए तो जल्दी ही भारतीयों की आबादी एक करोड़ के आंकड़े को छूने वाली है।

भारत को रोज 50 लाख टन बैरल कच्चे तेल की जरूरत होती है और इसमें से 60 प्रतिशत के लिए वह खाड़ी देशों पर निर्भर है। भारत को न सिर्फ अपनी ऊर्जा जरूरतों बल्कि सामरिक एवं रणनीतिक आवश्यकताओं के लिए भी कच्चे तेल का आयात करना पड़ता है क्योंकि घरेलू क्षमता न के बराबर है।

यह ठीक है कि खाड़ी के देशों को हमारी भी जरूरत है लेकिन अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मामले में उन पर हमारी निर्भरता भी कम नहीं है। संयुक्त अरब अमीरात हमारा तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है।

खाड़ी के देशों में भारतीय कामगार भारी संख्या में काम करते हैं। इनमें अप्रशिक्षित मजदूर से लेकर अति प्रशिक्षित पेशेवर भी शामिल हैं। ऐसे ही अप्रवासी कर्मियों की वजह से भारत दुनिया में सबसे ज्यादा remittance पाने वाला देश है। हर साल विदेशी कामगार देश में 80 अरब डालर से ज्यादा की राशि भेजते हैं। एक अनुमान के मुताबिक इसमें आधी से ज्यादा रकम इन पांच खाड़ी देशों से आती है।

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