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मालदीव के इन फैसलों ने किया भारत को दूर और चीन को रखा पास, यही बनी चिंता की वजह

मालदीव में मौजूद संकट जहां भारत की निगाह बनी हुई है वहीं चीन भी इस पर लगातार निगाह बनाए हुए है। चीन का यहां पर अपना व्‍यवसायिक और रणनीतिक हित है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 11 Feb 2018 02:05 PM (IST)Updated: Mon, 12 Feb 2018 05:27 PM (IST)
मालदीव के इन फैसलों ने किया भारत को दूर और चीन को रखा पास, यही बनी चिंता की वजह
मालदीव के इन फैसलों ने किया भारत को दूर और चीन को रखा पास, यही बनी चिंता की वजह

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्क]। मालदीव में मौजूद संकट जहां भारत की निगाह बनी हुई है वहीं चीन भी इस पर लगातार निगाह बनाए हुए है। चीन का यहां पर अपना व्‍यवसायिक और रणनीतिक हित है जबकि भारत के लिए इसका हिंद महासागर में होना और हमारा पड़ोसी देश होना काफी अहम है। इस मामले में भारत की दखल से नाराज चीन लगातार भारत को नसीहत दे रहा है। चीन के सरकारी अखबारा ग्‍लोबल टाइम्‍स में छपे एक लेख में भारत को नसीहत दी गई है कि जिस तरह से भारत अपने रिश्‍ते चीन, रूस, अमेरिका आदि से बना रहा है वैसा ही अधिकार मालदीव को भी है। उसने चीन के साथ संबंधो को मजबूत करना स्‍वीकार किया है। लेकिन यही बात भारत को खलती जा रही है।

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मालदीव और भारत पर ग्‍लोबल टाइम्‍स में छपा लेख

इसमें यहां तक कहा गया है कि मौजूदा समय में कोई भी देश किसी अन्‍य देश के कहे पर नहीं चल सकता है। अखबार ने यहां तक लिखा है कि भारत के लिए मालदीव बेहद खास है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल में एक बार भी यहां नहीं गए हैं। इस लेख के मुताबिक भारत और मालदीव के बीच समस्‍या तब शुरू हुई जब वहां की सरकार ने पीएम मोदी को कट्टरपंथी कह डाला था। इसमें यहां तक कहा गया हे यदि भारत को मालदीव से संबंध सुधारने है तो इसके लिए चीन को कम करने की कोई जरूरत नहीं है। भारत को अंतरराष्‍ट्रीय नियमों का सम्‍मान करना चाहिए।

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भारत को दी गई नसीहत

इसमें यह भी कहा गया है दक्षिण एशिया का यह देश काफी पिछड़ा है। इसको मजबूत करने के लिए चीन यहां पर काम कर रहा है। वहीं मालदीव ने कभी भी चीन से राजनीतिक और रक्षा के लिए सहयोग नहीं मांगा है। इस लेख के मुताबिक दक्षिण एशिया में भारत के प्रभुत्‍व को नकारा नहीं जा सकता है। लेकिन मालदीव में चीन उसके लिए आ‍र्थिक मजबूती तैयार कर रहा है। पर्यटन वहां की अर्थव्‍यवस्‍था का एक आधार स्‍तंभ है और मालदीव के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017 में यहां पर करीब 12 लाख पर्यटक चीन से आए थे1 इसमें आरोप लगाया गया है कि मालदीव की समस्‍या काफी छोटी है लेकिन भारत बेवजह ही इसको तूल दे रहा है।

इंडिया फर्स्‍ट से चाइना फर्स्‍ट हुई मालदीव की पॉलिसी

ग्‍लोबल टाइम्‍स में छपे इस लेख के काफी मायने हैं। यह मायने इसलिए भी खास हैं क्‍योंकि मालदीव और चीन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट हो रखा है। इसके अलावा चीन वहां पर काफी निवेश कर रहा है। वहीं जहां तक भारत की बात है तो वह हर मुश्किल समय में मालदीव की मदद करता आया है। चाहे वह राजनीतिक संकट रहा हो या दूसरा कोई संकट रहा हो। पीएम मोदी के ही कार्यकाल में मालदीव में जब पानी का संकट आया था तब भारत ने उसको मदद के तौर पर पीने का पानी मुहैया करवाया था। हालिया संकट को छोड़ दें तो मालदीव में इंडिया फर्स्‍ट की पॉलिसी काम करती रही है। लेकिन मौजूदा सरकार ने इस पॉलिसी को बदल कर चाइना फर्स्‍ट कर दी है। अभी कुछ हफ्ते पहले ही मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के विशेष दूत के रूप में विदेश मंत्री मोौहम्मद असीम भारत आए थे। तब मालदीव की कथित 'इंडिया फर्स्ट नीति' के रूप में इसे देखा गया था। ऐसे में यह स्पष्ट हो गया कि यामीन सरकार के लिए इंडिया फर्स्ट अब चाइना फर्स्ट हो गया है।

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पॉलिसी बदलने के पीछे किसका हाथ

यहां पर यह जानना जरूरी होगा कि मालदीव में चीन की की अहम वजह पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद हैं। उन्‍होंने ही वर्ष 2011 में राजधानी माले में चीन को दूतावास खोलने की अनुमति दी थी। उस वक्‍त भी भारत ने इसको लेकर नाराजगी जताई थी, लेकिन उन्‍होंने भारत की नाराजगी को दरकिनार कर यह फैसला लिया था। इसके बाद यामीन ने इससे एक कदम आगे बढ़कर चीन से रिश्‍तों को तरजीह देनी शुरू की थी। यही वह समय था जब भारत और मालद्वी के बीच संबंधों में खटास आनी शुरू हो गई थी। यामीन सरकार ने जब दिसंबर 2017 में चीन के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट (FTA) किया तो यह दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट का बड़ा कारण बना था। जबकि भारत ने मालदीव के साथ 1981 में ही विशेष व्यापार संधि की थी। इसके मुताबिक मालदीव को सारी जरूरत की चीजें, अग्रीगेट्स और रेत की सप्लाई भारत की तरफ से की जाएगी। वहीं मालदीव अपने यहां बनी किसी भी चीज को बिना किसी बाधा के भारत को बेच सकता था।

मालदीव ने चीन के युद्धक जहाज को दी अनुमति

यहां पर यह भी साफ कर देना जरूरी होगा कि यामीन सरकार भारत के साथ भी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट करना चाहती थी, जिसे भारत ने नामंजूर कर दिया था। अपनी चिंताओं से अवगत करवाने के लिए भारत ने मालदीव के राजदूत से इस संबंध में बात भी की थी। इसी दौरान मालदीव ने चीन से यह समझौता करके उसके लिए सामान बेचने का रास्‍ता साफ कर दिया था। भारत से मालदीव के संबंधों में उस वक्‍त और गिरावट आई जब मालदीव ने अपने यहां चीन के युद्धक जहाज को आने की अनुमति देने की घोषणा की थी। उस वक्‍त भारत ने इस फैसले को अपनी सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक बताया था। लेकिन मालदीव की तरफ से कहा गया कि चीन का युद्धक बेड़ा सद्भावना यात्रा पर है और वह इसे इनकार नहीं कर सकते। मालदीव के इस फैसले के बाद ही भारत ने भी प्रतिक्रिया स्वरूप अगस्त में पूर्व राष्ट्रपति नशीद की पहली भारत यात्रा को अनुमति दी थी।

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चीन का मालदीव में काफी निवेश

यहां पर यह बता देना जरूरी होगा कि मालदीव के दक्षिण हिस्‍से में चीन ने काफी निवेश किया हुआ है। हालांकि भारत भी यहां पर एक प्रॉजेक्ट शुरू करना चाहता था, लेकिन इसकी शर्त थी कि यहां से चीन को दूर रखा जाएगा। बता देंकि iHavan प्रॉजेक्ट भारत के काफी करीब है और 8-डिग्री चैनल को नियंत्रित करता है जिसपर चीन की बारीक नजर है। 2016 में भारत ने यामीन सरकार के साथ डिफेंस सहयोग डील को अंजाम देने के अलावा और भी दूसरे अग्रीमेंट्स किए थे। भारत के लिए एक और खतरनाक और चिंता का विषय यह भी बना हुआ है कि मालदीव के विशेष दूत मोहम्मद सईद ने चीनी निवेशों की सुरक्षा के लिए चीन से सुरक्षा की भी मांग की है। हालांकि चीन ने ऐसा करने से इनकार कर दिया है क्योंकि इससे भारत के और भी भड़कने की आशंका है। इसके बावजूद यह यामीन की बढ़ती बेचैनी का एक और सबूत है। 

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