Move to Jagran APP

Israel Election 2020: इजरायल में साल भर में तीसरा चुनाव, ये होगा प्रभाव; चौथा चुनाव हुआ तो...

Israel Election 2020 यदि सोमवार का चुनाव गतिरोध बढ़ाने की कोशिश करता है तो चौथा चुनाव भी हो सकता है। लेकिन कुछ इजरायली राजनेता ऐसा नहीं मानते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 02 Mar 2020 09:06 AM (IST)Updated: Mon, 02 Mar 2020 09:12 AM (IST)
Israel Election 2020: इजरायल में साल भर में तीसरा चुनाव, ये होगा प्रभाव; चौथा चुनाव हुआ तो...
Israel Election 2020: इजरायल में साल भर में तीसरा चुनाव, ये होगा प्रभाव; चौथा चुनाव हुआ तो...

नई दिल्ली। Israel Election 2020: इजरायल में एक बार फिर चुनाव होने जा रहे हैं। इससे पहले भी पिछले साल दो बार चुनाव हो चुके हैं, लेकिन यह राजनीतिक गतिरोध दूर करने में नाकाम रहा है। इजरायल के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं। नरेंद्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने पहली बार इजरायल की यात्रा की। वहीं इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ उनकी दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। राजनीतिक रूप से भारत स्थिर है और इजरायल अस्थिर। यदि नेतन्याहू की जगह दूसरा कोई प्रधानमंत्री आता है तो यह देखना होगा कि भारत के साथ उसके संबंध कैसे रहते हैं।

loksabha election banner

इसलिए इतने चुनाव

2018 के आखिर में इजरायल की लिकुड पार्टी के अनुभवी नेता बेंजामिन नेतन्याहू शक्ति के सर्वोच्च शिखर पर प्रतीत हो रहे थे। नेतन्याहू इजरायल के सबसे लंबे वक्त तक प्रधानमंत्री बने रहे हैं। हालांकि उन्हें संसद में एक सीट का अनिश्चित बहुमत मिला। 9 अप्रैल 2019 को आकस्मिक चुनाव कराए गए।

दरअसल नेतन्याहू सरकार में रक्षा मंत्री रहे एविगडोर लीबरमैन ने इस्तीफा दे दिया। वे इतने ही तेजतर्रार हैं, जितने नेतन्याहू। लीबरमैन ने प्रधानमंत्री पर गाजा में फलस्तीनी आतंकवादियों पर नर्म रुख अपनाने का आरोप लगाया। हालांकि कई इजरायलियों ने नेतन्याहू के इस कदम को उनके खिलाफ चल रहे रिश्वत, धोखाधड़ी आदि से जुड़े मामलों के जांच अधिकारियों की सहानुभूति हासिल करनी थी।

नहीं मिला बहुमत

इजरायल में कभी भी कोई पार्टी संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी है और नेतन्याहू पर्याप्त सीटें जीतने में विफल रहे। सरकार बनाने के लिए वह हफ्तों तक संघर्ष करते रहे। फिर, अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी, पूर्व सशस्त्र बलों के प्रमुख बेनी गेंट्ज को सरकार बनाने का मौका देने के बजाय नेतन्याहू ने 17 सितंबर 2019 को एक और चुनाव कराने का फैसला किया।

इस तरह जीत सकते हैं नेतन्याहू

नेतन्याहू जीत सकते हैं। लेकिन संसद की 120 सीटों में से 61 के साथ गठबंधन की सरकार बनानी है तो नेतन्याहू को अन्य दलों का समर्थन हासिल करना होगा। अदालत की सुनवाई के दौरान शीघ्र ही प्रतिद्वंद्वी मांग कर सकते हैं कि वे सजा सुनाए जाने से पहले ही इस्तीफा दे दें। हालांकि फैसले के महीनों आगे खिसकने की संभावना है और अपील की प्रक्रिया में सालों भी लग सकते हैं।

फिर नहीं बनी सरकार

इस चुनाव में भी नेतन्याहू की सीटें कम पड़ गई। लिकुड और गेंट्स की ब्लू एंड व्हाइट पार्टी के बीच मुकाबला आभासीय टाई रहा। इसने लीबरमैन को किंग मेकर बना दिया। लेकिन लीबरमैन ने सत्ता से बचने के लिए दोनों के साथ नीतिगत मतभेदों का हवाला दिया। कई महीनों की खरीद-फरोख्त के बाद नेतन्याहू और गेंट्ज दोनों ही पर्याप्त समर्थन जुटाने में विफल रहे। इसके परिणामस्वरूप सोमवार को चुनाव होने जा रहा है।

अलग है समय

यह चुनाव पिछली बार से काफी अलग हैं। पिछले चुनाव के बाद से ही नेतन्याहू के खिलाफ औपचारिक आपराधिक आरोप लगाए गए हैं। चुनाव के सिर्फ दो हफ्ते बाद 17 मार्च को उनके खिलाफ मुकदमा शुरू होने वाला है। साथ ही, दोनों पिछले चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की लंबे समय से टल रही पश्चिम एशिया शांति योजना को बिना मतदाताओं के जाने बिना लड़े गए थे। यह जनवरी में प्रकाशित हुआ था और इसके मुताबिक अमेरिका कब्जे वाले वेस्ट बैंक में इसराइल की बस्तियों को मान्यता प्रदान करेगा। फलस्तीन के लोग इसे लेकर गुस्से में हैं। नेतन्याहू ने चुनाव के बाद बस्तियों को जोड़ने का निर्णय लिया है।

गेंट्स की भी हैं समस्याएं

चुनाव अभियान के आखिरी चरणों में नेतन्याहू के दल को थोड़ी सी बढ़त दिखाते हुए ओपिनियन पोल्स ने ब्लू एंड व्हाइट पार्टी से नजदीकी मुकाबला बताया है। नेतन्याहू की तरह ही गेंट्ज की भी समस्याएं हैं। उन्हें दक्षिणपंथी और इजरायल के अरब अल्पसंख्यक का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों को एक साथ लाना होगा, जो कि दोनों अलग ध्रुवों पर राजनीति करते हैं।

चौथा चुनाव हुआ तो...

यदि सोमवार का चुनाव गतिरोध बढ़ाने की कोशिश करता है तो चौथा चुनाव भी हो सकता है। लेकिन कुछ इजरायली राजनेता ऐसा नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक अस्थिरता के साथ ही इसका अर्थ कार्यवाहक सरकार के तहत आर्थिक परेशानी बढ़ाने वाला होगा। यह गेंट्ज के नेतृत्व वाले गठबंधन में लिकुड पार्टी के भागीदार रहे दलों के दलबदल का कारण बन सकता है। कितने दूर कितने पास: बहुत से इजरायली नेतन्याहू और गेंट्स को साथ देखना चाहते हैं, जिससे कि यह कलह खत्म हो। लेकिन गेंट्ज का कहना है कि वह नेतन्याहू के साझेदार नहीं बनेंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.