चीन की बीआरआइ परियोजना का विरोध जारी रखेगा भारत
वर्ष 2018 के दौरान भारत और चीन के रिश्तों में तनाव काफी हद तक खत्म तो हुआ है लेकिन मूल मुद्दों पर भारत के रुख में ना तो अंतर आया है और ना ही आगे आएगा।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। वर्ष 2018 के दौरान भारत और चीन के रिश्तों में तनाव काफी हद तक खत्म तो हुआ है लेकिन मूल मुद्दों पर भारत के रुख में ना तो अंतर आया है और ना ही आगे आएगा। यहां तक कि अगले वर्ष चीन की महत्वाकांक्षी बोर्डर एंड रोड इनिसिएटिव (पुराना नाम वन बेल्ट-वन रोड) परियोजना पर प्रस्तावित बैठक का पुरजोर विरोध करने का भी मन बना लिया गया है।
भारत इस परियोजना का विरोध सिर्फ इसलिए नहीं करेगा कि इसका एक हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर से गुजर रहा है बल्कि उसको इस बात पर भी ऐतराज है कि चीन जिस तरह से बेहद आसान शर्तों पर दूसरे देशों को आर्थिक मदद दे रहा है उसकी वजह से भारत के लिए परियोजना हासिल करना मुश्किल हो गया है। भारत इस मुद्दे को खास तौर पर अपने पड़ोसी देशों को समझाने की कोशिश कर रहा है जहां चीन इस योजना के जरिए बड़े स्तर पर पैर जमाने की कोशिश कर रहा है।
उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक भारत का स्पष्ट मत है कि चीन पाकिस्तान आर्थिक कारीडोर (सीपीईसी) हमारी सार्वभौमिकता के लिए चुनौती है। इसका विरोध हम जिस आधार पर कर रहे हैं उसे दुनिया में व्यापक समर्थन मिल रहा है। लेकिन सीपीईसी चीन की बीआरआई का एक हिस्सा मात्र है।
बीआरआई जिस तरह से दूसरे देशों में बेहद आसान शर्तों और भारी-भरकम आर्थिक मदद दे कर परियोजनाओं को हासिल कर रहा है उससे भारतीय कंपनियों के लिए एक नई तरह की चुनौती पैदा हो रही है। भारत के लिए दूसरे देशों में परियोजना हासिल करना बेहद मुश्किल हो गया है क्योंकि वहां चीन पहले से मौजूद है।
खास तौर पर पड़ोसी देशों में देखा जाए तो चीन लगातार अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश में जुटा है। कई देश अब साफ तौर पर स्वीकार करने लगे हैं कि चीन की परियोजनाओं की वजह से वे बड़े कर्ज के बोझ में फंसते जा रहे हैं।
भारतीय विदेश मंत्रालय की इस चिंता के पीछे वजह यह बताई जा रही है कि श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव व नेपाल में जब वहां की सरकारों से भारत ने अपनी परियोजनाओं के बारे में बात करनी शुरू की तो उन्होंने चीन से मिलने वाली मदद से तुलना की।
बड़ी अर्थव्यवस्था होने की वजह चीन जिस दर पर आर्थिक मदद छोटे देशों को देने को तैयार है भारत अभी उसे मैच नहीं कर पा रहा है। हालांकि इनमें से कई देशों में आंतरिक तौर पर भी चीन की मदद से लगने वाली परियोजनाओं का विरोध शुरू हो गया है।
यहां तक कि पाकिस्तान सरकार ने अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष को बताया है कि सीपीईसी के तहत चीन पाकिस्तान में कुल 26.5 अरब डॉलर का निवेश करेगा जिसके बदले पाकिस्तान ब्याज सहित 39.83 करोड़ डॉलर लौटाएगा। ऐसे में भारत की भावी रणनीति के बारे में पूछने पर विदेश मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि यह समस्या सिर्फ भारत की नहीं है बल्कि दूसरे देशों की भी है।
सनद रहे कि वर्ष 2017 में बीआरआइ पर पहली अंतरराष्ट्रीय बैठक का भारत ने भारी विरोध करते हुए हिस्सा नहीं लिया था। भारत ने भौगोलिक संप्रभुता का मुद्दा उठाते हुए इसका विरोध किया था। उसके बाद से अमेरिका, फ्रांस, जापान समेत कई बड़े देश भारत के पक्ष का समर्थन करने लगे है। भारत वर्ष 2019 के ग्रीष्म काल में चीन में होने वाली दूसरी बैठक का भी विरोध करने को तैयार है।