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समुद्री क्षेत्र में आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए भारत हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को कम करने में जुटा

Indian Ocean Region समुद्री क्षेत्र में आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए भारत हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को कम करने में जुट गया है और इस दिशा में उसे अपेक्षित सफलता भी मिल रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 03 May 2022 12:53 PM (IST)Updated: Tue, 03 May 2022 12:53 PM (IST)
समुद्री क्षेत्र में आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए भारत हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को कम करने में जुटा
हिंद महासागर में निगरानी के लिए तैनात एक भारतीय पोत। फाइल

डा. नवीन कुमार मिश्र। वर्षो से हिंद महासागरीय परिक्षेत्र व्यापार, सुरक्षा, उपनिवेशन और भारतीय संस्कृति के प्रभाव में रहे हैं। मिस्र के एक प्राचीन बंदरगाह बेरेनिके के पास खोदाई में भारत से व्यापारिक संबंधों के प्रमाण मिले हैं। साथ ही भारत का समुद्री वर्चस्व अंग्रेजों के भारत आगमन तक रहा है, जिसे 18वीं और 19वीं सदी में नष्ट कर ब्रिटेन सामरिक महत्व के सभी स्थानों पर नौसैनिक अड्डे बनाकर विश्व की महाशक्ति बना और हिंद महासागर के परिक्षेत्र पर शासन करता रहा है। हिंद महासागर की भौगोलिक स्थिति यहां के समुद्री मार्ग की महत्ता के कारण अधिक अहम है। साथ ही, प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और खनिज तेल के विशाल भंडार भू-राजनीतिक संकट को जन्म देते हैं।

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द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद औपनिवेशिक देशों के स्वतंत्र होने तथा ब्रिटेन की कमजोर स्थिति ने हिंद महासागर में शक्ति शून्यता की स्थिति पैदा कर दी। संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के बीच प्रतिद्वंद्विता से पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक सामरिक महत्व के नौसैनिक अड्डे बनाए गए। परंतु वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन से उत्पन्न अस्थिरता का लाभ उठाकर एशिया व अफ्रीका में अपनी पैठ के बल पर चीन सुपर पावर बनने के सपने देखने लगा।

इसके निमित्त चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपनी सैन्य शक्ति की धौंस दिखाकर काल्पनिक ‘नाइन डैश लाइन’ के सहारे कई द्वीपों पर कब्जे, कृत्रिम द्वीपों के निर्माण और पर्यावरण के विरुद्ध कार्य कर सैन्य अड्डे भी बना लिए हैं। अपनी विस्तारवादी नीति के तहत 19 अप्रैल को सोलोमन द्वीप-समूह में चीन विरोधी स्थितियां होने पर भी सैन्य अड्डा हासिल करने में वह सफल हो गया है। हिंद महासागरीय देशों में ‘डेट-ट्रैप’ की नीति अपनाकर कर्ज न चुका पाने वाले देशों के संसाधनों व बंदरगाहों पर कब्जे कर सैन्य अड्डे स्थापित करने में लगा है।

अपनी तटीय उदासीनता के कारण भारत ने वर्ष 1950 में कोको द्वीप समूह म्यांमार को दे दिया जिसे वर्ष 1994 में चीन ने हथिया लिया और वहां अपना सैनिक अड्डा बना लिया। भारत के पूर्वी तट पर भारतीय मिसाइल परीक्षण व उपग्रह प्रक्षेपण के कारण चीन अब सुरक्षा के संदर्भ में चुनौती पेश कर रहा है। इसके साथ ही म्यांमार के क्यौकप्यू, बांग्लादेश के चटगांव, श्रीलंका के हंबनटोटा और बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर कब्जे व सैन्य अड्डे बनाकर भारत को घेरने की साजिश में जुटा है। परंतु भारत ने चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर नकेल कसने के लिए बड़े स्तर के सैन्य बेस की रणनीति बनाई है। ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर चीन वहां सैन्य अड्डा बना रहा है। इधर ईरान के चाबहार बंदरगाह पर पहले से व्यावसायिक पहुंच होने के साथ ही भारत ने ओमान की खाड़ी में वर्ष 2018 से दुकम बंदरगाह पर सैन्य अड्डा स्थापित कर लिया है तथा एक पनडुब्बी, नौसेना का एक विशाल पोत और दो निगरानी विमानों की तैनाती भी कर दी है। भारत-ओमान सैन्य सहयोग समिति की दसवीं बैठक 30 जनवरी से तीन फरवरी के बीच भारत में संपन्न हो चुकी है।

इसके साथ ही एक विशेष आर्थिक क्षेत्र भी है, जहां भारतीय कंपनियों की ओर से 1.8 अरब डालर का निवेश किया जा रहा है। चीन जिबूती को कर्ज जाल में फांसकर सैन्य अड्डे बना चुका है और मेडागास्कर के उत्तर-पश्चिम में जनवरी में चीन के विदेश मंत्री वांग यी की यात्र का उद्देश्य कामरोस द्वीप समूह में सैन्य अड्डे बनाना ही है। परंतु भारत का पहले से ही दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर व मोजांबिक चैनल पर निगरानी के लिए मारीशस के अगालेगा द्वीप पर सैन्य अड्डा है। सेशेल्स द्वीप समूह के असेंप्शन द्वीप पर भारत 55 करोड़ डालर से सैन्य अड्डा बना रहा है।

इस बीच ‘हार्न आफ अफ्रीका’ के देश चीन के कर्ज जाल में फंस चुके हैं, जिस स्थिति का लाभ चीन भारत को घेरने के लिए करना चाहता है। हालांकि अफ्रीकी देश चीन की कर्ज जाल की साजिश को समझने लगे हैं, जो भारत को एक अवसर प्रदान करता है। मालदीव में भारत के खिलाफ चीन की साजिश नाकाम रही और अपनी सैन्य उपस्थिति के साथ भारत मालदीव की नौसेना को प्रशिक्षित भी करेगा। इसी प्रकार बंगाल की खाड़ी में चटगांव बंदरगाह में चीन को रोकने और युद्ध की परिस्थिति में सिलीगुड़ी कारिडोर के बंद होने की आशंका में वैकल्पिक मार्ग के रूप में कालादान मल्टी माडल ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट को पूरा किया जा रहा है, जो सामरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। कोलकाता से म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह तक के रास्तों को भारत के ही खर्चे पर मूर्त रूप दिया जा रहा है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में थियेटर कमांड की उपस्थिति से कोको द्वीप पर चीन की सैन्य गतिविधियों पर नियंत्रण रखना आसान हुआ है। इस बीच भारतीय हितों के संदर्भ में एक अच्छी बात यह हुई है कि बांग्लादेश चटगांव बंदरगाह के माध्यम से भारत के पूवरेत्तर हिस्सों तक वस्तुओं की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए इसके इस्तेमाल को मंजूरी दे चुका है।

ब्लू इकोनमी पावर बनने के लिए हिंद महासागर पर नियंत्रण आवश्यक है। भारत सरकार द्वारा ‘मेरिटाइम रूट्स एंड कल्चरल लैंडस्केप एक्रास द इंडियन ओशियन’ की रणनीति की शुरुआत की गई है। हिंद महासागर के देशों के साथ भारत के पुराने समुद्री रास्तों को फिर से शुरू कर पूर्वी अफ्रीका, अरब, भारतीय उपमहाद्वीप और पूर्वी एशियाई देशों के साथ अपने व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित कर चीन के विस्तारवादी मंसूबों पर शिकंजा कसने की उम्मीद की जानी चाहिए।

[भू-राजनीतिक मामलों के जानकार]


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