India-China Dispute: तनाव के बावजूद चीनी वर्चस्व वाली SCO बैठक में शामिल होगा भारत, ये है वजह
India-China Tension 4 सितंबर को मास्को में होगी एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक। अगले सप्ताह होगी विदेश मंत्रियों की बैठक। रणनीतिक वजहों से एससीओ को नजरअंदाज नहीं करेगा भारत।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। सीमा पर चीन संग तनाव के बावजूद भारत शंघाई सहयोग संगठन (SCO) से किनारा नहीं करेगा। भारत ने ये फैसला व्यापक रणनीतिक हितों को देखते हुए लिया है। हालांकि, बैठक में आमना-सामना होने के बावजूद भारत और चीन के मंत्रियों के बीच कोई मुलाकात या बातचीत नहीं होगी।
एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक चार सितंबर को मास्को में होनी है। बैठक में हिस्सा लेने के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आज रूस के तीन दिवसीय दौरे पर रवाना हो गए हैं। इस बैठक में चीन के रक्षा मंत्री भी होंगे, लेकिन दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय मुलाकात की संभावना खारिज की जा चुकी है। हालांकि, राजनाथ सिंह की मुलाकात रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू से होनी तय है। इस दौरान दोनों देशों के बीच भावी रक्षा सौदों को लेकर भी अहम चर्चा होनी है।
भारत ने दिया पुख्ता संदेश
वैसे चीन के साथ बेहद तनावपूर्ण रिश्ता होने के बावजूद चीन के वर्चस्व वाले एससीओ में भाग लेकर भारत ने यह पुख्ता संकेत दिया है कि वह इस संगठन को लेकर गंभीर बना रहेगा। इसके पीछे एक बड़ी वजह एससीओ में मित्र देश व अहम रणनीतिक साझेदार रूस का होना और मध्य एशिया के कई देशों का सदस्य के तौर पर शामिल होना है। भविष्य में एससीओ व ब्रिक्स को लेकर भारत का रवैया इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन के साथ उसके द्विपक्षीय रिश्ते किस तरफ आगे बढ़ते हैं।
चीन ने इसलिए भारत को किया था शामिल
एससीओ के विदेश मंत्रियों की भी अगले सप्ताह गुरुवार को मास्को में बैठक होनी है। संभवतः इसमें विदेश मंत्री एस जयशंकर भी हिस्सा लेंगे। वहां चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी होंगे। एससीओ के राष्ट्रप्रमुखों की बैठक भी अक्टूबर या नवंबर में आयोजित करने की कोशिश जारी है। रूस अभी एससीओ के साथ ही ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का संगठन) का मुखिया देश है। रूस की कोशिश है कि दोनो संगठनों के राष्ट्रप्रमुखों की बैठक एक साथ आयोजित हो। इन दोनो संगठनों को चीन ने अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देने के उद्देश्य से आगे बढ़ाया और इसमें उसने भारत को भी शामिल किया है। भारत भी इन दोनों संगठनों को अभी तक पूरा महत्व देता रहा है।
2018 में भारत ने जोड़ा था आतंकवाद का प्रावधान
सरकारी सूत्रों का कहना है कि एससीओ और ब्रिक्स के एजेंडे में अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जिसे भारत विरोधी कहा जाए। ब्रिक्स देशों के बीच एक वित्तीय संस्थान गठित किया गया है, जिससे भारत दूसरे देशों से ज्यादा कर्ज ले रहा है। एससीओ राष्ट्र प्रमुखों की वर्ष 2018 की बैठक में आतंकवाद पर एक अहम प्रावधान जोड़वाने में भारत सफल रहा था। एससीओ में मध्य एशिया क्षेत्र के ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान भी सदस्य हैं जिन्हें भारत कारोबार के लिहाज से बहुत उम्मीदों के साथ देखता है।
भारत के हित में होगा एससीओ देशों का कारोबार विस्तार
एससीओ का दायरा बढ़ा कर ईरान, श्रीलंका जैसे देशों को भी शामिल करने की है। भारत मानता है कि एससीओ देशों के बीच अगर कारोबार विस्तार को लेकर कोई समझौता होता है तो यह उसके हित में होगा। एससीओ के बीच सैन्य अभ्यासों में भी भारत लगातार हिस्सा लेता रहा है। इस बार कोविड की वजह से भारत ने सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेने से मना कर दिया है। इसके बावजूद भविष्य में एससीओ और ब्रिक्स को लेकर भारत कितना उत्साहित रहता है, यह पूरी तरह से उसके चीन के साथ द्विपक्षीय रिश्ते पर निर्भर करेगा।
यह भी पढ़ें :-