India-Russia Relations: भारत-रूस के हित में है दोनों देशों के बीच बढ़ता व्यापार
युद्ध के दौरान रूस से आयात तीन गुना बढ़ा किंतु भारत से निर्यात में कमी आई है। रूस भारत को अंतरराष्ट्रीय कीमत से 25 प्रतिशत कम दाम पर कच्चा तेल दे रहा है और भुगतान डालर की जगह रुपये में ले रहा है जो दोनों देशों के हित में है।
प्रो. लल्लन प्रसाद। रूस-यूक्रेन युद्ध का विश्वव्यापी प्रभाव अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर पड़ा है। कच्चे तेल की कीमतों में ही नहीं, बल्कि खाद्य पदार्थो की कीमतें भी विश्व स्तर पर तेजी से बढ़ी हैं, जिनका रूस विश्व बाजार में एक बड़ा आपूर्तिकर्ता है। विश्व के कई देशों में पेट्रोल की आपूर्ति बाधित होने एवं कीमत में वृद्धि के कारण दंगे तक हुए हैं। दरअसल रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया तो प्रतिक्रिया स्वरूप अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे रूस के लिए पश्चिमी देशों से व्यापार करना मुश्किल हो गया। रूस से कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने भी अपना नाता तोड़ लिया, जिनमें ब्रिटिश पेट्रोलियम, टोयोटा, सोनी, बीएमडब्ल्यू सहित टेक्नोलाजी क्षेत्र की बड़ी-बड़ी कंपनियां शामिल हैं। इससे रूस का औद्योगिक उत्पादन घटा। लिहाजा रूस की जीडीपी प्रभावित हुई, जिसका आधा हिस्सा कच्चे तेल, पेट्रोलियम पदार्थ एवं प्राकृतिक गैस और शेष कोयला, कच्चा लोहा, रासायनिक खाद और खाद्यान्नों के निर्यात से आता है। रूस की विकास दर, जो जनवरी 2022 में 6.6 प्रतिशत थी वह मई में -4.30 प्रतिशत पर आ गई। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में रूस की रैंकिंग गिरी। विदेशी निवेश में और कमी आई।
इस स्थिति से निपटने के लिए रूस ने नई व्यापारिक रणनीति बनाई। उसने भारत सहित एशिया के कई देशों को कम कीमत पर कच्चा तेल देने का समझौता किया। वह भारत को अंतरराष्ट्रीय कीमत से 25 प्रतिशत कम दाम पर कच्चा तेल दे रहा है और भुगतान डालर की जगह रुपये में ले रहा, जो दोनों देशों के हित में है। यूक्रेन से युद्ध छिड़ने के पहले भारत अपनी जरूरत का मात्र एक प्रतिशत कच्चा तेल ही रूस से आयात करता था, जून 2022 में यह 18 प्रतिशत पर आ गया। पिछले 100 दिनों में भारत रूस का दसवां सबसे बड़ा कच्चे तेल का खरीदार बन गया है। फरवरी 2022 के पहले जहां प्रतिदिन रूस से 1,00,000 बैरल कच्च तेल आयात होता था, वहीं अप्रैल माह में यह 3,70,000 बैरल प्रतिदिन हो गया। भारत विश्व में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है, जो अपनी 80 प्रतिशत कच्चे तेल की आवश्यकता आयात करके पूरी करता है। इराक भारत का कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, रूस दूसरे नंबर पर आ गया है। कच्चे तेल की बाकी जरूरत का अधिकांश हिस्सा भारत खाड़ी देशों से आयात करके पूरी करता है।
कच्चे तेल के अलावा जिन चीजों का रूस से युद्ध के दौरान आयात बढ़ा है उनमें प्रमुख हैं-रक्षा सामग्री, कोयला, रासायनिक खाद एवं सनफ्लावर खाद्य तेल। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 से 2021 के बीच अपनी 23 प्रतिशत रक्षा सामग्री भारत रूस से आयात करता था, जो वर्ष 2022 में 69.6 प्रतिशत पर पहुंच गया है। रूस इस समय भारत का सबसे बड़ा रक्षा सामग्री आपूर्तिकर्ता है। कोयले का आयात पिछले कुछ महीनों में तेजी से बढ़ा है। यद्यपि भारत में विश्व का चौथा सबसे बड़ा कोयले का भंडार है किंतु उत्पादन मांग की अपेक्षा कम है। देश के पावर प्लांट प्रतिदिन औसतन 20 लाख टन कोयला इस्तेमाल करते हैं। गर्मियों के दिनों में देशभर में बिजली की मांग तेजी से बढ़ी किंतु पावर प्लांट के पास कोयले का आवश्यक भंडार नहीं था। 173 बड़े पावर प्लांट के पास आवश्यकता का मात्र एक तिहाई कोयला स्टाक में था। ऐसे समय में रूस से अंतरराष्ट्रीय कीमत से कम पर कोयले का आयात देश के लिए लाभकर हुआ, कोयले की जो कमी थी वह पूरी हुई।
युद्ध के दौरान खेती के लिए आवश्यक रासायनिक खादों की कमी न हो इसके लिए भी रूस के साथ समझौता हुआ है। भारत विश्व का रासायनिक खादों का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा आयातक देश है। लंबी अवधि के लिए 10,00,000 टन डाईअमोनियम फास्फेट (डीएपी) एवं 80,000 टन नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम (एन पी के) खाद प्रतिवर्ष आयात करने का समझौता रूस के साथ हुआ है। समझौते की एक मुख्य बात है भुगतान बार्टर सिस्टम (वस्तुओं के लेनदेन) से होगा। इसकी कीमत भारत चाय, चावल, कृषि पदार्थो, आटो पार्ट्स, मेडिकल उपकरण आदि के निर्यात से चुकाएगा। सूरजमुखी के तेल की खरीद का बड़ा समझौता भी रूस के साथ हुआ है। खाद्य तेलों की कुल खपत देश में 130 लाख टन प्रतिवर्ष की है जिसमें 10 से 12 प्रतिशत सूरजमुखी के तेलों का हिस्सा है। युद्ध के पहले यूक्रेन इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था। भारत प्रतिवर्ष लगभग 25,00,000 टन सूरजमुखी के तेल का आयात करता था जिसमें 70 प्रतिशत यूक्रेन से आता था, 20 प्रतिशत रूस से और बाकी अर्जेटीना से। रूस के साथ हुए समझौते में भुगतान भारत रुपये में करेगा जिससे डालर की बचत होगी।
युद्ध के दौरान रूस से आयात लगभग तीन गुना बढ़ा है, किंतु भारत से निर्यात में कमी आई है। भारतीय व्यापारी इस दौरान रूस को बहुत माल नहीं भेज पाए। इसका एक कारण यह भी था कि कई बड़ी शिपिंग कंपनियों ने युद्ध के चलते बुकिंग लेने से इन्कार कर दिया। स्विफ्ट मैसेजिंग पर अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा लगाए प्रतिबंध के कारण भी भारतीय निर्यात पर बुरा असर पड़ा है। भारतीय निर्यातकों का पेमेंट समय पर नहीं आ रहा था। हालांकि अब रुपया-रूबल व्यापार माध्यम से भारत और रूस दोनों को लाभ हुआ है। एक ओर जहां भारत डालर में भुगतान से बचा, वहीं रूस की करेंसी भी मजबूत हुई है।
[अर्थशास्त्री]