चीन से अमेरिका और जापान जैसे देशों की 'कारोबारी दूरी' बनेगा भारत के लिए मौका, जानिए कैसे
पीएम नरेंद्र मोदी और जापान के पीएम शिंजो आबे के बीच शुक्रवार को हुई टेलीफोन वार्ता का साझा सहयोग के अलावा इस महामारी के बाद के माहौल में साझा आर्थिक सहयोग के मुद्दों पर महत्व है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कूटनीतिक व वैश्विक कारोबार के सर्किल में जो बात पहले धीरे- धीरे कही जाती थी, अब वह खुलेआम कही जा रही हैं। जापान ने तीन दिन पहले चीन से कारोबार समेटने वाली अपनी कंपनियों के लिए आर्थिक पैकेज का ऐलान कर दिया है। कोविड-19 के खिलाफ बड़ी लड़ाई में उलझे अमेरिका के बड़े राजनेता और कांग्रेस सदस्य धमकी दे रहे हैं कि अब चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी ही होगी। ऐसे में भारत के लिए चीन के विकल्प के तौर पर स्थापित होने का एक सुनहरा अवसर आता दिख रहा है।
आम बजट 2020-21 में वित्त मंत्री ने पहले ही यह मंशा जता दी है कि भारत चीन पर तमाम रोजमर्रा के उत्पादों के लिए अपनी निर्भरता खत्म करेगा। इस बारे में दुनिया में चल रही कवायदों को देख भारत सरकार आगे भी नीतियों में बड़े बदलाव की तैयारी में है। चीन के साथ व्यापारिक दूरी बनाने वाले देशों को अपने यहां निवेश के लिए आमंत्रित करने और उनके लिए अनुकूल वातावरण बनाना प्राथमिकता होगी।
चीन से कारोबार समेटने पर जापान ने की पहल, अमेरिकी कंपनियां पहले से तैयार
ऐसे में भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी और जापान के पीएम शिंजो आबे के बीच शुक्रवार को हुई टेलीफोन वार्ता का अपना महत्व है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक दोनो नेताओं के बीच कोविड-19 के खिलाफ साझा सहयोग के अलावा इस महामारी के बाद के माहौल में साझा आर्थिक सहयोग के मुद्दों पर भी चर्चा हुई। दोनो देशों में पहले ही जापान को एक लाख प्रशिक्षित श्रमिक देने को लेकर समझौता हुआ है। सनद रहे कि इस हफ्ते की शुरुआत में चीन में काम करने वाली जापानी कंपनियों को वहां से अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर जापान में उत्पादन शुरू करने के लिए आबे सरकार ने 2 अरब डॉलर का फंड दिया है। जापान ने चीन से बाहर किसी अन्य देश में जाकर उत्पादन करने पर उन जापानी कंपनियों को 21.5 करोड़ डॉलर की मदद का प्रस्ताव रखा है।
यूएस इंडिया स्ट्रैटेजिक एंड पार्टनरशिप फोरम (यूएसआईएसपीएफ) के मुताबिक अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वार के चरम पर चीन में उत्पादन करने वाली 200 अमेरिकी कंपनियां पिछले साल ही भारत में निवेश की इच्छा जता चुकी है। अब कोरोना वायरस की उत्पत्ति के लिए चीन के जिम्मेदार होने से ये कंपनियां भारत में निवेश के लिए औऱ भी जल्दीबाजी दिखा सकती है।
दुनिया में चीन के खिलाफ माहौल
सीआइआइ के नेशनल आइसीटीई कमेटी के चेयरमैन विनोद शर्मा कहते हैं कि निश्चित रूप से भारत के लिए निवेश लाने का बड़ा अवसर है क्योंकि दुनिया में चीन के खिलाफ हवा बह रही है। इलेक्ट्रॉनिक, मोबाइल जैसी जापानी और अमेरिकी कंपनियों को लाने में सफलता इसलिए भी मिल सकती है क्योंकि हाल में ही सरकार ने इन क्षेत्रों में निवेश के लिए 30000 करोड़ से अधिक के पैकेज का एलान किया है। लेकिन यह तभी संभव हो सकता जब केंद्र और राज्य दोनों ही सरकार एकजुट होकर काम करेंगी क्योंकि सिर्फ केंद्र की तरफ से तत्परता दिखाने से काम नहीं बनने वाला है।
हम विशेषज्ञों के मुताबिक चीन के खिलाफ कई बार ऐसे मौके आए हैं, जिसे भारत भुना सकता था। एक उदाहरण वियतनाम का है जिसने सही समय पर कदम उठा कर चीन से बाहर भाग रही इलेक्ट्रोनिक कंपनियों को अपने यहां बुला लिया। वियतनाम अभी 90 अरब डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात करता है जबकि भारत 8.5 अरब डॉलर के आस-पास ही अटका है।
सरकार बना रही है निवेश के लिए नीति
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक सरकार निवेश को लेकर ऐसी नीति बना रही है जो केंद्र व राज्य दोनों जगह मान्य होगी। राज्य सरकार की तरफ से केंद्र के फैसले में राजनीतिक या अन्य वजहों से रोड़े नहीं अटकाये जा सकेंगे। ऐसा करने पर उनके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई होगी। एक तय समय में सिंगल विंडो से निवेश की मंजूरी मिलने पर उस आवेदन को मंजूर समझा जाएगा।