Move to Jagran APP

दक्षिण अमेरिकी देश चिली के इस कदम से बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों को सीख लेने की जरूरत

भविष्य को लेकर चिली की चिंता साफ दिखाई देती है। चिली के इस कदम से बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों को सीखे लेने की जरूरत है। एक ऐसे समय में जब इस पर गंभीर होने की जरूरत महसूस की जा रही है तब चिली पूरी दुनिया को रास्ता दिखा रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 04 Jan 2022 12:19 PM (IST)Updated: Tue, 04 Jan 2022 12:23 PM (IST)
दक्षिण अमेरिकी देश चिली के इस कदम से बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों को सीख लेने की जरूरत
संविधान मसौदा समिति इसमें पर्यावरण को बचाने के लिए भी खास प्रविधान करने जा रही है। फाइल फोटो

रिजवान अंसारी। एक ऐसे समय में जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की समस्या से दो-चार हो रही है तब दक्षिण अमेरिकी देश चिली दुनिया के सामने अलग ही नजीर पेश कर रहा है। पिछले कुछ महीनों से चिली में नए संविधान को लिखने का काम जारी है। इसी साल जुलाई तक चिली को नया संविधान मिल जाएगा। हालांकि 40 साल पुराने संविधान को किसी और वजह से पलटने पर सहमति बनी थी, लेकिन एक अन्य कारण के चलते चिली में संविधान के पुनर्लेखन ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। ये दोनों ही कारण अपनेआप में दिलचस्प हैं।

loksabha election banner

2019 में चिली की सरकार ने मेट्रो किराये में चार प्रतिशत वृद्धि का एलान किया था, लेकिन चिली वासियों को उसका फैसला रास नहीं आया। पहले से ही भारी आर्थिक असमानता का सामना कर रही चिली की जनता मेट्रो किराये में वृद्धि के चलते गुस्से से भर गई। लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। वे राजधानी सैंटियागो में जम गए। वहां की गलियों और सड़कों पर करीब दस लाख लोग इकट्ठे हो गए। धीरे-धीरे मेट्रो किराये का मुद्दा पीछे छूट गया। प्रदर्शनकारी पुराने संविधान को बदलने की मांग करने लगे। तर्क दिया गया कि चिली का संविधान पूरी तरह रूढ़िवादी नीतियों पर आधारित है। इसके प्रविधानों के चलते अमीर और अमीर बन रहे हैं तथा गरीब और गरीब। लिहाजा अक्टूबर 2020 में इस मुद्दे पर जनमत संग्रह कराया गया। उसमें हिस्सा लेने वाले 78 प्रतिशत लोगों ने संविधान को बदलने के पक्ष में अपना वोट दिया।

दूसरी बात यह है कि गैर-बराबरी के चलते फिर से लिखे जाने वाले संविधान में अब पर्यावरण को भी प्राथमिकता देने की बात कही गई है। संविधान मसौदा समिति के इस दावे ने दुनिया को चौंका दिया है। दरअसल चिली एक ऐसे खनिज का धनी देश है, जिसकी मदद से कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है और उसी खनिज से जलवायु परिवर्तन के खतरे भी बढ़ सकते हैं। चिली लीथियम रिजर्व के मामले में विश्व में पहले पायदान पर है। वह दुनिया का दूसरा बड़ा लीथियम उत्पादक देश है। लीथियम की विशेषता है कि वह खुद गैर-नवीकरणीय खनिज होने के बावजूद नवीकरणीय ऊर्जा पैदा करता है। लीथियम बैटरी में व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। मौजूदा वक्त में जब दुनिया जीवाश्म ईंधन के विकल्पों की तलाश कर रही है, तब लीथियम सबसे मजबूत विकल्प के तौर पर उभर रहा है। लीथियम बैटरी इलेक्टिक वाहनों की रीढ़ है। ऐसे में प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्टिक वाहन परिवहन के महत्वपूर्ण साधन बन सकते हैं। बड़े-बड़े उद्योग भी ऊर्जा के साथ-सुथरे विकल्प की तलाश में हैं। चूंकि लीथियम का इस्तेमाल ‘ग्रीन फ्यूल’ के रूप में होता है इसलिए इसे मजबूत विकल्प समझा जा रहा है। लीथियम के इसी गुण के कारण इसका मूल्य लगातार बढ़ रहा है।

ऐसे में लीथियम के उत्पादन में वृद्धि होने से नवीकरणीय ऊर्जा के अधिकाधिक स्नेत तैयार होंगे और कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगेगा। चिली खुद 2040 तक ‘नेट जीरो’ कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना चाहता है, लेकिन इसमें दिक्कत यह है कि जिस स्थान पर लीथियम का खनन होता है, वहां की जमीन में नमी की कमी हो जाती है। इससे आसपास के तापमान में वृद्धि हो जाती है। फिर वह क्षेत्र सूख जाता है। लीथियम खनन वाली जगह में भू-जल के खारा होने का भी खतरा है। यानी लीथियम का ज्यादा खनन मनुष्य और वनस्पति, दोनों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। इससे सीधे तौर पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का खतरा है।

चिली की जनता को डर है कि लीथियम की कीमत दिनोंदिन बढ़ने से सरकार इसका अधिकाधिक दोहन कर धन कमा सकती है। लोगों के इसी डर को ध्यान में रखते हुए संविधान मसौदा समिति का कहना है कि वह नए संविधान में पर्यावरण को बचाने के लिए खास प्रविधान करेगी। लीथियम खनन के फैसले में स्थानीय लोगों को ज्यादा शक्ति देने के प्रविधान किए जाएंगे। यानी सरकार सिर्फ अपनी मर्जी से लीथियम का दोहन नहीं कर सकेगी। हो सकता है कि संविधान में खनन पर भारी रायल्टी और प्रतिबंध के प्रविधान भी शामिल किए जाएं।

शायद ही अब तक किसी देश ने संविधान में पर्यावरणीय समस्याओं को तरजीह देने और उस पर गंभीर होने की कोशिश की हो। जिस पुस्तिका में आमतौर पर राजनीति करने के तौर-तरीकों का बखान होता है, उसमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर गंभीर लेखन वाकई दुनिया को हैरान करने वाला है। मौजूदा वक्त में जलवायु परिवर्तन के खतरे से कोई इन्कार नहीं कर सकता। हाल में ग्लासगो में दुनिया भर के देश इसी चिंता को लेकर जमा हुए थे। आर्थिक विकास हर देश की जरूरत है। इसी मोह में दुनिया के विकसित देश कार्बन उत्सर्जन के खतरे को अभी तक नजरअंदाज कर रहे हैं। चिली चाहे तो लीथियम का मनचाहा दोहन कर धन अर्जित कर सकता है, लेकिन इस मामले में उसने पर्यावरण को चुना है। इससे भविष्य को लेकर चिली की चिंता साफ दिखाई देती है। चिली के इस कदम से बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों को सीखे लेने की जरूरत है। एक ऐसे समय में जब इस पर गंभीर होने की जरूरत महसूस की जा रही है, तब चिली पूरी दुनिया को रास्ता दिखा रहा है।

[शोध अध्येता]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.