G-7 Summit: वैश्विक मंचों पर तमाम आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के बावजूद भारत का निरंतर बढ़ता कद
तमाम आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के बावजूद भारत विश्व में समझदारी से विदेश नीति को आगे बढ़ा रहा है। जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गर्मजोशी से मिलते अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन (मध्य में)। साथ में खड़े हैं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो। फाइल
डा. सुशील कुमार सिंह। वर्तमान वैश्विक परिस्थितियां कुछ इस तरह से बदल चुकी हैं कि पश्चिमी देशों की यह चाहत है कि भारत के साथ संबंधों को मजबूत किया जाए। वैसे भारत पश्चिम की ओर हमेशा देखता रहा है। यूक्रेन के संदर्भ में भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह कोई पक्ष नहीं लेगा और गुटनिरपेक्ष बना रहेगा। वैसे पश्चिमी देश यह जानते हैं कि भारत उनका मित्र है, परंतु एक सीमा के बाद उसे दबाया नहीं जा सकता। विश्व के देश भले ही अलग-अलग संगठन के माध्यम से एकमंचीय होते हों, परंतु सभी अपनी प्राथमिकताओं को वरीयता देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। जी-7 में जापान को छोड़कर सभी नाटो के सदस्य हैं और इन दिनों रूस को लेकर नए पेच में फंसे हैं।
यह सर्वविदित है कि भारत रूस का नैसर्गिक मित्र है, किंतु इन देशों के साथ भी उसका गहरा नाता है। जर्मनी में संपन्न इस जी-7 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जलवायु, ऊर्जा और स्वास्थ्य पर की गई टिप्पणी को भी समझना चाहिए। साथ ही भू-राजनीतिक तनाव के कारण विविध प्रकार के ईंधन की कीमतें आसमान छू रही हैं और विश्व लगातार समूहों में बंटता जा रहा है। पर्यावरण सुरक्षा को लेकर भारत ने क्या हासिल किया है, इसे भी वैश्विक मंच पर बताया गया है। पंरतु अनेक संबंधित समस्याओं से भारत अभी बाकायदा घिरा हुआ है। उल्लेखनीय है कि विश्व की 17 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है, जबकि कार्बन उत्सर्जन में भारत का हिस्सा केवल पांच प्रतिशत ही है। जिन विकसित देशों का समूह जी-7 है, विश्व के आधे से अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार वही हैं।
अभी जर्मनी में आयोजित जी-7 सम्मेलन को कई दृष्टि से समझने और समझाने के रूप में देखा जा सकता है, किंतु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि सभी अपनी प्राथमिकताओं को लेकर चिंतित हैं। वर्ष 1975 में छह विकसित देश फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, इंग्लैंड और अमेरिका तथा बाद में कनाडा को जोड़ते हुए जी-7 आज विस्तार की एक नई राह पर खड़ा दिखाई देता है। हालांकि कभी रूस भी इस संगठन का हिस्सा था, जो पिछले कई वर्षो से इस समूह से बाहर है। जी-7 की जब पहली बैठक हुई थी तो इसमें विश्वभर में बढ़ रहे आर्थिक संकट और उसके समाधान की बात कही गई थी। समय के साथ उद्देश्य तो नहीं बदले, किंतु बदलते वैश्विक दौर में कई अन्य देश जी-7 का हिस्सा बन गए।
विशेष यह भी है कि लगभग 14 लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था होने के बावजूद चीन कभी इस संगठन का हिस्सा नहीं रहा और भारत तीन लाख करोड़ डालर से भी कम की अर्थव्यवस्था वाला देश होने के बावजूद इसमें आमंत्रित होता रहा है। वैसे चीन के जी-7 का हिस्सा नहीं होने के पीछे बड़ा कारण जीडीपी के हिसाब से प्रति व्यक्ति आय में कमी का होना है। भारत की वैश्विक पहचान बड़ी है और विदेशी संबंध भी बेहतरी की ओर है। इसी कारण वर्ष 2019 से भारत को अतिथि राष्ट्र के रूप में सम्मेलन में बुलाया जाता रहा है। इसके अलावा, आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका भी अतिथि राष्ट्र के तौर पर आमंत्रित किए जाते हैं। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उस समय जी-7 में भारत को जोड़ने को लेकर वकालत भी की थी।
वैसे कई मायनों में यह वैश्विक संगठन महत्वपूर्ण अवश्य है, परंतु पिछले कुछ समय से इसे लेकर ये बातें भी उठती रही हैं कि इसे खत्म कर देना चाहिए। जबकि यह संगठन अपने पक्ष में दावा गिनाते हुए पेरिस जलवायु समझौता लागू करने के लिए स्वयं को महत्वपूर्ण मानता है। हालांकि इसी जलवायु समझौते से पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने नाता तोड़ लिया था। विदित हो कि जी-7 का यह सम्मेलन दो दिनों तक चलता है, वैश्विक मुद्दों पर चर्चा होती है, नए तरीके की रणनीतियों पर विचार होता है जिसमें अर्थव्यवस्था, देशों की सुरक्षा, बीमारियों और पर्यावरण पर चर्चा होती है। इस बार यूक्रेन-रूस युद्ध भी इसकी चर्चा की जद में रहा है।
चीन से मुकाबले की तैयारी : उल्लेखनीय है कि इस संगठन में अफ्रीका और लैटिन अमेरिका महाद्वीप का कोई भी देश शामिल नहीं है। आलोचना में यह संदर्भ भी यदा-कदा आता है। जी-7 देशों ने चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बीआरआइ यानी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ की तुलना में छह सौ अरब डालर की एक आधारभूत संरचना की घोषणा की है। इसकी योजना पिछले साल ब्रिटेन में हुई जी-7 की बैठक में बनाई गई थी। स्पष्ट है कि इस संगठन को चीन के मुकाबले खड़ा करना है जिसे पीजीआइआइ यानी पार्टनरशिप फार ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इनवेस्टमेंट के नाम से लान्च किया गया है। अमेरिका और यूरोपीय देश चीन के बीआरआइ की आलोचना इस दृष्टि से कर रहे हैं कि वह इससे विकासशील और गरीब देशों को ऋण जाल में फंसा रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी चिन¨फग बीआरआइ के लाभ के बारे में समूचे विश्व को अवगत करा रहे हैं।
विदित हो कि वर्ष 2013 से आरंभ हुई यह योजना विश्व की सबसे बड़ी आधारभूत परियोजना बन चुकी है। ऐसे में चीन की इस योजना के टक्कर में जी-7 देशों ने अपनी नई योजना की घोषणा की है। क्वाड की बैठक में भी चीन की विस्तारवादी नीति पर सवाल उठाए गए थे, जहां क्षेत्रीय संप्रभुता और हंिदू प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन की बात हुई थी।
उल्लेखनीय है कि जी-7 की शिखर बैठक ऐसे समय में हुई जब यूरोप बड़े संकट से जूझ रहा है। यूक्रेन युद्ध में फंसा है और कई देशों में अनाज और ऊर्जा की आपूर्ति बाधित है, जबकि ब्रिक्स देशों की बैठक में चीन के राष्ट्रपति वैश्विक स्तर पर गुटों में टकराव और शीत युद्ध का मुद्दा भी सुलगा दिया था। हालांकि इसे क्वाड को लेकर चिन¨फग की कूटनीतिक प्रतिक्रिया कही जा सकती है।
भारत की भूमिका : जी-7 की बैठक में जर्मनी पहुंचे भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन और परस्पर सहयोग की बात उठाई और यह भी स्पष्ट किया कि विदेश नीति को लेकर भारत किसी समूह के दबाव में नहीं है। भारत की विदेश नीति सक्रिय रही है अब यह बात दुनिया को पता चल चुकी है। चीन को भी यह स्पष्ट है कि जब तक भारत और चीन के सीमा विवादों का हल नहीं होगा अन्य क्षेत्रों में संबंध को मजबूत करना संभव नहीं है। वैसे कूटनीतिक तौर पर देखा जाए तो क्वाड, जी-7, ब्रिक्स या अन्य किसी प्रकार के वैश्विक मंच पर भारत अपनी प्राथमिकता को पहचानता है। वैसे भारत के लिए सभी विकल्पों को खुला रखना आवश्यक है। दो टूक यह भी है कि भारत की कूटनीति और रणनीति राजनीतिक स्वतंत्रता पर आधारित है और अपने राष्ट्रीय हित को पहले रखते हुए संप्रभुता को कायम रखना उसकी प्राथमिकता है। तमाम आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के बावजूद भारत विश्व में समझदारी से विदेश नीति को आगे बढ़ा रहा है। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर की तर्ज पर भारत आगे बढ़ रहा है, परंतु पाकिस्तान और चीन इसके अपवाद हैं।
[निदेशक, वाइएस रिसर्च फाउंडेशन आफ पालिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन]