स्वच्छता व स्वास्थ्य की देवी शीतला माता
गर्मी की प्रखरता से संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है, इससे पूर्व ही शीतलाष्टमी [15 मार्च] पर हम इनसे बचने के उपायों पर अमल करना शुरू कर देते हैं..
हमारे ऋषि-मुनियों ने पूजा-उपासना के जितने भी प्रावधान बनाए हैं, वे लोक-कल्याण के लिए ही हैं। हर देवी-देवता किसी न किसी मानवीय गुण और शक्ति का प्रतीक है और उसी के अनुकरण के लिए वे पूजे जाते हैं। उन्हीं में से एक हैं सफाई की प्रतीक आरोग्यता देने वाली शीतला माता।
ये देवी शीतलता अर्थात ज्वर, ताप या अग्नि उत्पन्न करने वाले रोगों से मुक्ति के उपाय बताती हैं। चेचक, बुखार और हैजा जैसे संक्रामक रोग गर्मी के मौसम में अधिक फैलते हैं। इन रोगों से मुक्त रहने के लिए लोग शीतला माता की पूजा ही नहींकरते, बल्कि उनके उपायों को भी मानते हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने स्वस्थ व रोग मुक्त करने का जिम्मा शीतला माता को दिया था। शीतला अष्टमी के दिन घर में अग्नि का प्रयोग नहीं किया जाता। इसलिए एक दिन पूर्व ही भोजन बना लिया जाता है। इसीलिए इसे राजस्थान एवं उत्तर भारत में बसौड़ा के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक पहलू है। शीतलाष्टमी के बाद से गर्मी शुरू हो जाती है, इसलिए इस दिन एक दिन पुराना [बासी] खाना खाने के बाद बासी खाने पर रोक लग जाती है। लोग जानते ही हैं कि गर्मी के मौसम में ज्यादातर संक्रमण बासी खाने से ही होते हैं।
शीतला माता के स्वरूप के भी प्रतीकात्मक अर्थ हैं। इनके वस्त्रों का लाल रंग खतरे एवं सतर्कता का प्रतीक है। चार भुजाओं में झाड़ू, सूप, घड़ा और कटोरा सफाई के प्रतीक चिह्न हैं। इनकी सवारी गधा गंदे स्थान पर जाने के लिए है, तो झाड़ू उस स्थान को साफ करने के लिए। सूप कंकड़-पत्थर को अलग करने के लिए है, तो गंगाजल उस स्थान को विषाणु मुक्त करने के लिए। माता इन प्रतीक चिन्हों से पर्यावरण को शुद्ध कर विषाणुओं से बचने का संदेश देती हैं।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर