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दुख पंछी बन जाएगा

जीवन सुख-दुख का मेल है, इसलिए दुख को हमें स्वीकार कर उसका सामना करना चाहिए। जो इस चुनौती को स्वीकार करता है, वही सुख प्राप्त कर सकता है..

By Edited By: Published: Tue, 14 Feb 2012 07:06 PM (IST)Updated: Tue, 14 Feb 2012 07:06 PM (IST)
दुख पंछी बन जाएगा

जीवन सुख-दुख का मेल है, इसलिए दुख को हमें स्वीकार कर उसका सामना करना चाहिए। जो इस चुनौती को स्वीकार करता है, वही सुख प्राप्त कर सकता है..

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हमारे जीवन में बहुत-सी विपरीत स्थितियां आ जाती हैं, जिनके लिए हम आमतौर पर दूसरों को दोषी ठहराते हैं। कभी किसी व्यक्ति को, कभी किसी स्थिति को, तो कभी भगवान को। इसका अर्थ यह है कि दूसरों के साथ हमारे संबंधों का असर हमारी अपनी स्थितियों पर पड़ता है। यदि हम दूसरों को दोषी न ठहराकर दूसरों के प्रति अपने व्यवहार और संबंधों को जांच लें, तो हमारा दृष्टिकोण बदल जाएगा। लोगों से हमारे संबंध कैसे हैं? मित्रों, परिवारजनों या सहकर्मियों के साथ हमारा कैसा व्यवहार है? हम दूसरों के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखते हैं? जब हम इन प्रश्नों के उत्तर जान लेते हैं, तब जीना सीख लेते हैं। तब हम किसी और को दोषी नहीं ठहराते।

जीवन का हर रास्ता कठिन एवं दुष्कर होता है, यह मानकर चलना चाहिए। जो हिम्मत से इसे पार कर लेता है, वह फौलाद के समान सुदृढ़ एवं सशक्त हो जाता है। जीवन में हर चुनौती एकदम नई एवं रोमांचक होती है। यह चुनौती हौसला पस्त कर देती है, परंतु सब का नहीं। कुछ होते हैं, जो हारने के लिए पैदा ही नहीं हुए होते। जीवन को खेल मानकर उसके सुख-दुख के दोनों पहलुओं को अंत तक खेल लेते हैं। इसे खेलने की तकनीक यह है कि कैसे दुख को, पीड़ा को और कठिनाइयों को सहजता से लिया जा सके, ताकि दु:ख के पल के अवरोध को न्यूनतम किया जा सके।

जीवन में सुख और दुख धूप-छांव के समान सतत परिवर्तित होते रहते हैं। कभी सुख की शीतल सुगंध की फुहारें उड़ती हैं, तो कभी दुख की जलती-बिखरती चिनगारियां फैलती हैं। सुख के पल यों फिसल जाते हैं कि पता ही नहीं चलता। सुख की सदियां भी कम लगती हैं, परंतु दुख के पल काटे नहीं कटते। जो दुख के दरिया को पार कर लेता है, वही शूरवीर कहलाता है। कमजोर इसमें डूब जाते हैं और बहादुर डूबकर पार चले जाते हैं। मनीषी कहते हैं कि दुख के क्षण में वाणी का प्रयोग कम कर देना चाहिए। बुरे समय में व्यक्ति इतनी घुटन एवं असहजता अनुभव करता है कि उसकी अभिव्यक्ति वाणी के क्रूर प्रयोग के रूप में प्रकट होती है। दुख से दूर होने का एक महत्वपूर्ण उपाय यह है कि हम दूसरों के दुख दूर करने में प्रवृत्त हो जाएं। इससे दूसरों के दुख के आगे हमें अपनी पीड़ा छोटी लगने लगती है। तब दूसरों के साथ अपना दुख भी पक्षी की तरह पंख फैलाकर उड़ जाएगा।

[लाजपत राय सभरवाल]

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