जय कपीश तिहुं लोक उजागर
रामकथा में हनुमान जी के सेवाभाव और अन्य गुणों ने उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। हनुमान जयंती [25 अक्टूबर] पर क्यों न उनके गुणों को जीवन में उतारकर हम भी सफलता की ओर अग्रसर हों..
रामकथा में हनुमान जी के सेवाभाव और अन्य गुणों ने उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। हनुमान जयंती [25 अक्टूबर] पर क्यों न उनके गुणों को जीवन में उतारकर हम भी सफलता की ओर अग्रसर हों..
पिता केसरी और माता अंजनी के पुत्र हनुमान का चरित्र रामकथा में प्रखर होकर उभरा है। राम के आदर्र्शो को गरिमा देने में हनुमान जी का बड़ा योगदान है। रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन की उन्नति के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। साहसी और वीर हनुमान
हनुमान जी के भीतर अदम्य साहस और वीरता बाल्यकाल से ही दिखती है। वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि बालपन में हनुमान सूर्य को फल समझकर उसे खाने आकाश में उड़ चले। उधर राहु भी सूर्य को ग्रसने जा रहा था, लेकिन हनुमान की जोरदार टक्कर से राहु घबराकर इंद्र के पास पहुंच गया। इंद्र ने वज्र का प्रहार हनुमान की हनु [ठुड्डी] पर किया, तभी से उनका नाम हनुमान पड़ गया। राम के कठिन प्रयोजन को सिद्ध करने में हनुमान जी का साहस ही रंग लाया। सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण को बता दिया कि वह सर्वशक्तिमान नहीं है। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे जला दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत हनुमान लेकर आए।
सेवाभावी और स्वामिभक्त
हनुमान की निष्काम सेवा भावना ने उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। एक दंतकथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया।? उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर चुटकी ताने सेवा को तत्पर रहते। रात्रि में माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। इससे भगवान राम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई। विनम्र और कृतज्ञ
अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहींरहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, माता सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने किए हुए सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया है। नेतृत्व और निर्णय क्षमता
राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व किया। समुद्र के पार जाने पर जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल बैठे थे, तब भी याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तमाम भ्रम होने पर भी उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। इन गुणों को अपनाकर हम कठिनाइयों से पार पा सकते हैं।
[विवेक भटनागर]
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