चंद्रमा हुए थे रोग मुक्त
पद्म पुराण के अनुसार प्रयाग में अक्षयवट क्षेत्र के अग्निकोण अर्थात् पूर्व और दक्षिण के कोने पर जहां गंगा-यमुना की धारा संयुक्त होती है, उसके दक्षिणी तट पर लोकविख्यात सोमतीर्थ है। बाल्मीक रामायण के अनुसार अहिल्या के साथ छल करने पहुंचे सोम(चंद्रमा) को गौतम ऋषि के शाप से क्षय रोग हो गया था।
पद्म पुराण के अनुसार प्रयाग में अक्षयवट क्षेत्र के अग्निकोण अर्थात् पूर्व और दक्षिण के कोने पर जहां गंगा-यमुना की धारा संयुक्त होती है, उसके दक्षिणी तट पर लोकविख्यात सोमतीर्थ है। बाल्मीक रामायण के अनुसार अहिल्या के साथ छल करने पहुंचे सोम(चंद्रमा) को गौतम ऋषि के शाप से क्षय रोग हो गया था। इस रोग से निवृत्त होने के लिए चंद्रमा ने प्रयाग की धरती पर सोमेश्र्र्वर महादेव का लिंग स्थापित किया, लंबे समय तक पूजा-अर्चना की। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने प्रसन्न होकर चंद्रमा को रोग मुक्त कर दिया। विद्यापति ने 1400ई. में अपने धार्मिक ग्रंथ भू परिक्रमा में सोमेश्वर तीर्थ का उल्लेख किया है। प्रयाग में यमुना के उस पार इसी नदी के तट पर अरैल में स्थित है सोमेश्र्र्वर महादेव का मंदिर। मंदिर के चमत्कारिक त्रिशूल की विशेषता यह है कि यह प्रत्येक 15वें दिन अपनी दिशा परिवर्तित कर देता है। परिसर में लगे अष्टकोणीय प्रस्तर स्तंभ में 15 पंक्तियों का एक लेख है जो संस्कृत भाषा में लिखित है, इसमें संवत् 1674 का उल्लेख है जिसमें जयपुर के राजा मानसिंह द्वारा जीर्णोद्धार कराने का जिक्र है। मान्यता है कि भोर में चार बजे से पहले दर्शन करने के प्रयत्न को यहां मौजूद सांप निष्फल कर देता है।
इलाहाबाद रेलवे स्टेशन से यमुना के नए पुल के लिए टेंपो अथवा महानगरीय बस सेवा पकड़ कर पहुंचे। यहां से टेंपो बदलनी पड़ेगी जो नैनी होते हुए अरैल तक पहुंचाएगी। अरैल में ही टेंपो स्टैंड से चंद कदम की दूरी पर सोमेश्र्र्वर महादेव का मंदिर स्थित है। इस मंदिर को टूर एंड ट्रैवल्स गाइड में भी प्रमुख स्थान मिला हुआ है। कुंभ मेला अवधि में भी तमाम टूर एजेंसियां इस मंदिर का भ्रमण कराती हैं।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर