Move to Jagran APP

स्मृतिगामी-श्रीदत्तात्रेय

श्रीदत्तात्रेय का अवतरण मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था। अत: इसी दिन बड़े समारोह से दत्तजयंती का उत्सव मनाया जाता है। श्रीमद्भागवत (2-7-4) में आया है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महर्षि अत्री के तप करने पर दत्तो मयाहामिति पद् भगवान् स दत:।

By Edited By: Published: Sat, 29 Dec 2012 01:17 PM (IST)Updated: Sat, 29 Dec 2012 01:17 PM (IST)
स्मृतिगामी-श्रीदत्तात्रेय

श्रीदत्तात्रेय का अवतरण मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था। अत: इसी दिन बड़े समारोह से दत्तजयंती का उत्सव मनाया जाता है। श्रीमद्भागवत (2-7-4) में आया है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महर्षि अत्री के तप करने पर दत्तो मयाहामिति पद् भगवान् स दत:।

loksabha election banner

मैंने अपने आपको तुम्हें दे दिया। विष्णु के ऐसा कहने से भगवान विष्णु ही अग्नि के पुत्र के रूप में अवतरित हुए और दत्त कहलाए। अत्री पुत्र होने से यह आत्रेय कहलाते हैं। दत्त और अग्नेय के संयोग से इनका दत्तात्रेय नाम प्रसिद्ध हो गया। इनकी माता का नाम अनसूया है, जो सत्ती शिरोमणि हैं। तथा उनका पति व्रत संसार में प्रसिद्ध है। एक बार की बात है श्री लक्ष्मी जी, सरस्वती देवी व श्री सत्ती देवी को अपने पतिव्रता पर गर्व हो गया। नारद जी ने उनसे कहा कि अत्री पत्‍‌नी अनसूया के समक्ष आपका सतीत्व नगण्य है। तीनों देवियों ने अपने स्वामियों से अनसूया के पति व्रत की परीक्षा करने को कहा। तीनों देव साधुवेश धारण कर अत्रीमुनि के आश्रम पहुंचे। महर्षि अत्री उस समय वहां नहीं थे। अनसूया ने उन अतिथियों का सत्कार फल-फूल व अर्ध प्रणाम से किया किंतु वे बोले, हम तब तक अतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे। जब तक आप निर्वस्त्र हो हमारे समक्ष नहीं आएंगी। अनसूया ने इसे भगवान की लीला समझकर मन में भगवान का स्मरण किया और बोली- यदि मेरा पतिव्रत धर्म सत्य है तो यह तीनों साधु छह-छह मास के शिशु हो जाएं। इतना कहते ही तीनों देव छह-छह मास के शिशु हो गए। देव वापस न आए तो अनसूया के पास तीनों देवियां आई और क्षमा मांगी। अनसूया ने क्षमा कर दिया व तीनों देव-देवियां अपने-अपने लोक चले गए। कालांतर में यह तीनों देव अनसूया के गर्भ से प्रकट हुए। ब्रहृमा के अंश से चंद्रमा, शंकर से दुर्वासा, विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। भगवान दत्तात्रेय कृपा की मूर्ति कहे जाते हैं। परम भक्त वत्सल दत्तात्रेय जी भक्त के स्मरण करते हीं उसके पास पहुंच जाते हैं। इसीलिए उन्हें स्मृति गामी व स्मृतिमात्रानुगन्ता कहा गया हैं। ये विद्या के परम आचार्य हैं। उन्होंने चौबीस गुरुओं से शिक्षा पाई थी। दक्षिण भारत में इनके अनेक मंदिर हैं। इस दिन उनके मंदिर में जाकर दर्शन व पूजन करने का महत्व है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.