चोट के कारण मुकाबला छोड़ने का दर्द चोट से ज्यादा : दीपक पूनिया
World wrestling championship 2019 दीपक पूनिया ने चोट के कारण गोल्ड नहीं जीत पाने पर अफसोस जाहिर किया।
टोक्यो ओलंपिक से पहले भारतीय पहलवानों ने दुनिया भर के पहलवानों को नए सिरे से तैयारी करने को मजबूर कर दिया। भारत को 86 किग्रा भारवर्ग में नया स्टार मिला है, जिसने पिछले माह एस्टोनिया में आयोजित जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के साथ कजाखिस्तान में रजत पदक जीता है। आज यह पहलवान किसी पहचान का मोहताज नहीं है। अपनी पहली विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने की तैयारियों को लेकर दीपक पूनिया से दैनिक जागरण के अनिल भारद्वाज से खास बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश :-
-कोई भारतीय पहलवान बड़े वजन में पदक नहीं जीत सकता, आपने इस धारणा को बदल दिया। 86 किग्रा में सबको चौकने में कैसे कामयाब हुए?
-- हां, धारणा बनी हुर्ह है कि ज्यादा वजन वाला भारतीय पहलवान पदक नहीं जीत सकता, लेकिन कड़ी मेहनत के बल पर कुछ भी संभव है। भारत कुश्ती का उभरता हुआ देश है और आने वाले वषरें में देखेंगे कि ईरान व कजाखिस्तान, उज्बेकिस्तान, जापान, रूस, अमेरिका, कनाडा, जॉर्जिया जैसे देशों के पहलवानों को हर वजन में भारत का पहलवान कड़ी टक्कर देगा।
-आप अपनी पहली विश्व चैंपियनशिप में चैंपियन की तरह खेले। यह कैसे संभव हुआ?
-- जूनियर विश्व चैंपियनशिप को लेकर मैंने अच्छी तैयारी की थी। वहां पर स्वर्ण पदक जीतने के बाद सीनियर चैंपियनशिप के लिए चयन हो गया। आपको याद होगा मैंने कजाखिस्तान जाने से पहले कहा था कि पदक का नहीं, अच्छे प्रदर्शन का वादा करता हूं। मैंने अपने हर मुकाबले में अच्छा प्रदर्शन किया। जब मैं मुकाबले के लिए अखाड़े में जाता था तो यह नहीं देखता था कि मुकाबले में कौन है। मेरे जेहन में एक ही बात रहती थी कि अच्छा प्रदर्शन करना है और मैं पदक जीतने में कामयाब रहा।
-फाइनल मुकाबला नहीं खेलने का अफसोस बहुत रहा होगा?
--एक खिलाड़ी जब मंजिल के करीब होता है और फिर मंजिल नहीं मिलती है तो उसका दुख असहनीय होता है। सच पूछोगे तो चोट के दर्द से ज्यादा फाइनल मुकाबला छोड़ने का ज्यादा दर्द है। चैंपियनशिप के पहले ही मुकाबले में मेरे पैर-टखने में चोट लग गई थी। सेमीफाइनल मुकाबले में दर्द बढ़ गया था। मेरा मानना था कि रविवार को फाइनल मुकाबला होगा और तब तक आराम हो जाएगा, लेकिन सुबह चोट की जगह सूजन थी और मैं मुकाबला लड़ने में असमर्थ था।
-कजाखिस्तान में जिन पहलवानों से मुकाबले हुए, वह अगले वर्ष टोक्यो में मिलेंगे। टोक्यो के लिए कोई खास रणनीति ?
-- मुझे कजाखिस्तान के मुकाबलों के अनुभव का लाभ टोक्यो में मिलेगा। जिन पहलवानों के मुकाबले मेरे साथ हुए और अन्य पहलवानों के मुकाबले मैंने देखे हैं, अब मेरी तैयारी उन पहलवानों को ध्यान में रखकर होगी।