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टोक्यो ओलिंपिक से पहले खिलाड़ियों को मिली सुविधाएं तो मिले सबसे ज्यादा सात पदक

भारत ने इस बार एक स्वर्ण दो रजत चार कांस्य सहित कुल सात पदक अपनी झोली में डाले लेकिन यह नंबर और भी आगे बढ़ सकता था। इस बार के ओलिंपिक इसलिए भी खास थे क्योंकि खेल मंत्रालय सभी खेलों के महासंघों ने अपने-अपने खिलाड़ियों को पूरा समर्थन किया।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Sun, 08 Aug 2021 07:39 PM (IST)Updated: Sun, 08 Aug 2021 07:39 PM (IST)
टोक्यो ओलिंपिक से पहले खिलाड़ियों को मिली सुविधाएं तो मिले सबसे ज्यादा सात पदक
टोक्यो ओलिंपिक में भारत के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ी (फाइल फोटो)

जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। टोक्यो ओलिंपिक में खिलाड़ियों ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करके भारत को पहली बार इस खेल महाकुंभ में सात पदक दिलाए। भारत ने इस बार एक स्वर्ण, दो रजत, चार कांस्य सहित कुल सात पदक अपनी झोली में डाले, लेकिन यह नंबर और भी आगे बढ़ सकता था। इस बार के ओलिंपिक इसलिए भी खास थे क्योंकि खेल मंत्रालय, सभी खेलों के महासंघों ने अपने-अपने खिलाड़ियों को पूरा समर्थन किया। खिलाड़ियों ने विदेश में अभ्यास करने की मांग रखी तो पूरी की गई जिसमें स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा, बजरंग पूनिया जैसे खिलाड़ियों ने अपना ज्यादातर समय विदेश में ही तैयारियों में व्यतीत किया। खिलाड़ियों ने फिजियो, विदेशी कोच जैसी अहम सुविधाएं खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण और महासंघों से मांगी तो उन्हें वो दी गई जिससे खिलाड़ियों की तैयारियों के हालात सुधरे तो अब पदक की संख्या सात हो गई। उन सभी ने खिलाड़ियों से यही कहा कि हम सुविधाएं देंगे और आप देश के लिए पदक लाएं।

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इस बार खिलाड़ी टोक्यो में पदक के संख्या का नंबर दो नंबरों में लेकर गए थे और यह लक्ष्य सफल भी हो जाता अगर कुछ अहम मौकों पर हमारे खिलाड़ी पदक से नहीं चूकते। भारतीय पहलवान दीपक पूनिया कांस्य पदक का मुकाबला आखिरी 10 सेकेंड में हार गए। महिला गोल्फर अदिति अशोक चौथे स्थान पर रहकर पदक से चूक गई। महिला हाकी टीम भी कांस्य पदक के मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन से हार गई। छह बार की विश्व चैंपियन मुक्केबाज मेरी कोम, विश्व नंबर एक मुक्केबाज अमित पंघाल और महिला तीरंदाज दीपिका कुमारी भी पदक नहीं जीत पाई। वहीं, स्वर्ण पदक की दावेदार महिला पहलवान विनेश फोगाट भी पदक नहीं जीत पाई। ये पदक आते तो संख्या दो नंबर में होते हुए 14 हो जाती और अगर तीरंदाज व निशानेबाज निराश नहीं करते तो यह संख्या 11 से भी ज्यादा होती।

टोक्यो में पदकों को दोगुनी करने की शुरुआत 2014 से हुई थी। जब खेल मंत्रालय ने टारगेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम (टाप्स) का आगाज किया था। इस स्कीम में उन खिलाड़ियों को शामिल किया जाता है तो ओलिंपिक में पदक के दावेदार होते हैं और यह स्कीम खिलाड़ियों को आर्थिक मदद करती है। इसके अलावा एनुअल कैलेंडर ट्रेनिंग एंड कंपटीशन (एसीटीसी) ने खिलाड़ियों के ट्रेनिंग और टूर्नामेंट में हिस्सा लेने में मदद की। हालांकि कोरोना और लाकडाउन ने खिलाड़ियों की तैयारियों पर भी असर डाला था। लेकिन तब भी खिलाड़ियों ने अपना दमखम दिखाया और देश को गर्व करने के कई मौके दिए। अगर खिलाड़ियों को इसी तरह और इससे भी ज्यादा मदद और विदेशों में खेलने का मौका मिलता रहेगा तो उम्मीद की जा सकती है कि जब 2024 में पेरिस ओलिंपिक होंगे तो पदकों की संख्या दोगुनी होगी।

पदक जीतने वाले खिलाड़ियों का संक्षिप्त परिचय

नीरज चोपड़ा: स्वर्ण पदक : भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा ओलिंपिक में व्यक्तिगत स्वर्ण जीतने वाले केवल दूसरे भारतीय हैं। नीरज को तीन वर्षो से ओलिंपिक में पदक का सबसे बड़ा भारतीय दावेदार माना जा रहा था और शनिवार को उनके 87.58 मीटर के थ्रो के साथ ट्रैक एवं फील्ड स्पर्धा में भारत को पहला ओलिंपिक पदक विजेता मिला।

दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा में पानीपत के पास खांद्रा गांव के एक किसान के बेटे नीरज वजन कम करने के लिए खेलों से जुड़े थे। एक दिन उनके चाचा उन्हें गांव से 15 किलोमीटर दूर पानीपत स्थित शिवाजी स्टेडियम लेकर गए। नीरज को दौड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और जब उन्होंने स्टेडियम में कुछ खिलाड़ियों को भाला फेंक का अभ्यास करते देखा तो उन्हें इस खेल से प्यार हो गया।

उन्होंने इसमें हाथ आजमाने का फैसला किया और अब वह एथलेटिक्स में देश के सबसे बड़े खिलाडि़यों में से एक बन गए। वह 2016 जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर -20 विश्व रिकार्ड के साथ ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद से लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। वह इस साल (2016) भारतीय सेना में चार राजपूताना राइफल्स में सूबेदार के पद पर नियुक्त हुए। उनकी अन्य उपलब्धियों में 2018 राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक शामिल हैं। उन्होंने 2017 एशियाई चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान हासिल किया था।

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मीराबाई चानू: रजत पदक : मणिपुर की छोटे कद की इस खिलाड़ी ने टोक्यो 2020 में प्रतिस्पर्धा के पहले दिन 24 जुलाई को ही पदक तालिका में भारत का नाम अंकित करा दिया था। उन्होंने 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीतकर भारोत्तोलन में पदक के 21 साल के सूखे को खत्म किया। इस 26 साल की खिलाड़ी ने कुल 202 किग्रा का भार उठाकर रियो ओलिंपिक (2016) में मिली निराशा को दूर किया। इंफाल से लगभग 20 किमी दूर नोंगपोक काकजिंग गांव की रहने वाली मीराबाई छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं। उनका बचपन पास की पहाडि़यों में लकडि़यां काटते और दूसरे के पाउडर के डब्बे में पास के तालाब से पानी लाते हुए बीता। वह तीरंदाज बनना चाहती थीं, लेकिन मणिपुर की दिग्गज भारोत्तोलक कुंजुरानी देवी के बारे में पढ़ने के बाद उन्होंने इस खेल से जुड़ने का फैसला किया।

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रवि दाहिया: रजत पदक : हरियाणा के सोनीपत जिले के नाहरी गांव में जन्में रवि ने पुरुषों के 57 किग्रा फ्रीस्टाइल कुश्ती में रजत पदक जीत कर अपनी ताकत और तकनीक का लोहा मनवाया। किसान परिवार में जन्में रवि दहिया दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में प्रशिक्षण लेते हैं जहां से पहले ही भारत को दो ओलिंपिक पदक विजेता सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त मिल चुके हैं। उनके पिता राकेश कुमार ने उन्हें 12 साल की उम्र में छत्रसाल स्टेडियम भेजा था। उनके पिता रोज अपने घर से 60 किमी दूर छत्रसाल स्टेडियम तक दूध और मक्खन लेकर पहुंचते थे। उन्होंने 2019 विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर ओलिंपिक का टिकट पक्का किया और फिर 2020 में दिल्ली में एशियाई चैंपियनशिप जीती और अलमाटी में इस साल खिताब का बचाव किया।

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पीवी सिंधू : कांस्य : टोक्यो 2020 के लिए सिंधू को पहले से पदक का मजबूत दावेदार माना जा रहा था और उन्होंने कांस्य पदक जीतकर किसी को निराश नहीं किया। इस 26 साल की खिलाड़ी ने इससे पहले 2016 रियो ओलिंपिक में रजत पदक जीता था। वह ओलिंपिक में दो पदक जीतने वाली देश की पहली महिला और कुल दूसरी खिलाड़ी हैं। टोक्यो खेलों में उनके प्रदर्शन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सेमीफाइनल में ताई जू यिंग के खिलाफ दो गेम गंवाने से पहले उन्होंने एक भी गेम में हार का सामना नहीं किया था। हैदराबाद की शटलर ने 2014 में विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई।

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पुरुष हाकी टीम: कांस्य पदक : भारतीय पुरुष हाकी टीम ने कांस्य पदक जीतकर इस खेल में 41 साल के सूखे को खत्म किया। यह पदक हालांकि स्वर्ण नहीं था, लेकिन देश में हाकी को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए काफी है। ग्रुप चरण के दूसरे मैच में आस्ट्रेलिया के खिलाफ 1-7 से बुरी तरह हारने के बाद कप्तान मनप्रीत सिंह की अगुआई में टीम शानदार वापसी की। सेमीफाइनल में बेल्जियम से हराने के बाद टीम ने कांस्य पदक प्ले आफ में जर्मनी को 5-4 से मात दी। पूरे टूर्नामेंट के दौरान मनप्रीत की प्रेरणादायक कप्तानी के साथ गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने शानदार प्रदर्शन किया।

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लवलीना बोरगोहाई : कांस्य पदक : असम की लवलीना ने अपने पहले ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह विजेंदर सिंह और मेरी कोम के बाद मुक्केबाजी में पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय खिलाड़ी हैं। 23 साल की लवलीना का खेलों के साथ सफर असम के गोलाघाट जिले के बरो मुखिया गांव से शुरू हुआ जहां बचपन में वह किक-बाक्सर बनना चाहती थी। ओलिंपिक की तैयारियों के लिए 52 दिनों के लिए यूरोप दौरे पर जाने से पहले वह कोरोना वायरस से संक्रमित हो गई, लेकिन उन्होंने शानदार वापसी करते हुए 69 किग्रा वर्ग में चीनी ताइपे की पूर्व विश्व चैंपियन निएन-शिन चेन को मात दी।

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बजरंग पूनिया: कांस्य पदक : इन खेलों से पहले बजरंग को स्वर्ण पदक का सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा था। सेमीफाइनल में हार के बाद वह स्वर्ण पदक के सपने को पूरा नहीं सके, लेकिन कांस्य पदक जीतकर उन्होंने देश का नाम ऊंचा जरूर किया। वह बचपन से ही कुश्ती को लेकर जुनूनी थे और आधी रात के बाद दो बजे ही उठ कर अखाड़े में पहुंच जाते थे। कुश्ती का जुनून ऐसा था कि 2008 में खुद 34 किलो के होते हुए 60 किलो के पहलवान से भिड़ गए और उसे चित कर दिया।

ये पदक से चूके

महिला हाकी टीम : रियो 2016 में आखिरी पायदान पर रहने वाली टीम ने टोक्यो में चौथा स्थान हासिल कर सबको चौंका दिया। महिला टीम कांस्य पदक के प्ले-आफ में ग्रेट ब्रिटेन से 3-4 से हार गई, लेकिन पूरे टूर्नामेंट में उसने गजब का जज्बा दिखाया।

दीपक पूनिया: दीपक पूनिया कुश्ती के 86 किग्रा के सेमीफाइनल में हारने के बाद कांस्य पदक के मुकाबले में अच्छी स्थिति में थे, लेकिन आखिरी 10 सेकेंड में विरोधी पहलवान ने उन्हें मात दे दी।

अदिति अशोक : महिला गोल्फ में 200वीं रैंकिंग की खिलाड़ी अदिति अशोक ओलिंपिक में अपने खेल के आखिर तक पदक की दौड़ में बनी हुई थी, लेकिन वह दो शाट से इसे चूक गई और चौथे स्थान पर रहीं। रियो ओलंपिक में वह 41 वें स्थान पर रही थीं, लेकिन टोक्यो में उन्होंने शानदार खेल के दम पर देश का दिल जीत लिया।


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