ये भेड़-बकरी नहीं, पैरा एथलीट हैं, बेंगलुरु में चल रही राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप की अव्यवस्थाओं से परेशान हैं खिलाड़ी
पद्मश्री और टेनजिंग नॉर्गे अवॉर्ड से सम्मानित पर्वतारोही व इस टूर्नामेंट में पैरा एथलीट के तौर पर भाग ले रहीं अरुणिमा सिन्हा ने दैनिक जागरण से कहा कि यह टोक्यो पैरालंपिक का क्वालीफिकेशन टूर्नामेंट कहा जा रहा है लेकिन यहां की स्थितियां बेहद खराब हैं।
अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। भारतीय पैरालंपिक समिति (पीसीआइ) की छतरी तले गुरुवार से बेंगलुरु में शुरू हुई राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग ले रहे पैरा (दिव्यांग) एथलीटों के साथ भेड़-बकरियों की तरह व्यवहार हो रहा है। इसमें भाग ले रहे एथलीट पर पहली मार तब बड़ी जब अचानक से आयोजन स्थल चेन्नई से बेंगलुरु कर दिया गया और दूसरी मार चेन्नई पहुंचकर अव्यवस्थाओं का सामना करने पर सहनी पड़ी। पीसीआइ ने पहले इस प्रतियोगिता को चेन्नई में आयोजित करने की घोषणा की थी और बाद में कोरोना वायरस के कारण अनुमति नहीं मिलने का हवाला देकर उसे बेंगलुरु स्थानांतरित कर दिया गया।
पद्मश्री और टेनजिंग नॉर्गे अवॉर्ड से सम्मानित पर्वतारोही व इस टूर्नामेंट में पैरा एथलीट के तौर पर भाग ले रहीं अरुणिमा सिन्हा ने दैनिक जागरण से कहा कि यह टोक्यो पैरालंपिक का क्वालीफिकेशन टूर्नामेंट कहा जा रहा है लेकिन यहां की स्थितियां बेहद खराब हैं। खिलाडि़यों के साथ भेड़-बकरी की तरह व्यवहार किया जा रहा है। काफी शोर मचाने के बाद खिलाडि़यों को खाना मिला। ये दिव्यांग एथलीट हैं जिनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान जाने पर जाना भी दुरूह कार्य है।
पहले गरीब एथलीटों को चेन्नई बुला लिया गया। किसी तरह एथलीटों ने उधार लेकर चेन्नई का टिकट कराया था फिर उन्हें बेंगलुरु तक पहुंचने का अतिरिक्त खर्च भी वहन करना पड़ा। मेरी जानकारी यह है कि पीसीआइ ने चेन्नई में आयोजन स्थल बुक ही नहीं किया था। ऐसे में उन्हें एथलीटों को पहले ही बता देना चाहिए था जिससे उन पर दोहरी मार नहीं पड़ती। बेंगलुरु में मौजूद अरुणिमा ने कहा कि कई एथलीटों के टिकट का खर्चा तो मैंने उठाया है। पीसीआइ ने इस आयोजन के लिए हर एथलीट से दो-दो हजार रुपये लिए लेकिन कोई सुविधा नहीं मिली।
वहीं एक और एथलीट ने कहा कि बेंगलुरु में ट्रैक एंड फील्ड की स्पर्धाएं दो अलग-अलग स्टेडियम में हो रही हैं जिनकी आपस में दूरी 25 किलोमीटर है। जिन लोगों को दोनों जगह पर भाग लेना है वे कैसे नए शहर में आयोजन स्थल खोजते रहेंगे? दैनिक जागरण के पास ऐसे कई वीडियो मौजूद हैं जिसमें एथलीट चेन्नई से बेंगलुरु जाने के लिए ट्रेन के नीचे से खुद और बाद में व्हीलचेयर को निकाल रहे हैं क्योंकि व्हीलचेयर होने के कारण जब तक वह सीढि़यों से जाकर प्लेटफॉर्म बदलेंगे तब तक ट्रेन छूट जाएगी।
इसके अलावा दैनिक जागरण को कई वीडियो भेजे गए हैं जिसमें एथलीट स्टेडियम में जमीन पर बैठकर खाना खाने और विश्राम करने को मजबूर हैं। वहीं एक और एथलीट वीना ने कहा कि मैं चेन्नई स्टेशन में पहुंची। मेरी मां एक घर में काम करती हैं, वहां से उन्होंने उधार लेकर टिकट कराई और 2000 रुपये मुझे जमा करने के लिए दिए। चेन्नई में होटल बुक कराया जो कैंसिल करना पड़ा। उसके पैसे भी वापस नहीं मिले। मैं कैसे बेंगलुरु जाऊंगी कुछ समझ नहीं आ रहा है। मेरे पास पैसे भी नहीं हैं वहां जाने के।
इस प्रतियोगिता को लेकर उठ रहे सवालों पर पूर्व एथलीट और पीसीआइ की अध्यक्ष दीपा मलिक से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कहा कि मैं बहुत व्यस्त हूं, आप मुझे ईमेल पर सवाल भेज दीजिए। उन्हें दो ईमेल भेजे गए और वाट्सएप पर भी जवाब देने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने जवाब देना उचित नहीं समझा। अध्यक्ष के जवाब नहीं देने पर सचिव गुरुशरण सिंह से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनका फोन भी नहीं उठा।
उधर भारतीय खेल प्राधिकरण ने पीसीआइ से तुरंत मामला सुलझाने को कहा है। साई ने कहा कि हमें पता चला है कि बेंगलुरु में व्हीलचेयर वाले खिलाडि़यों के लिए सुविधाएं नहीं हैं और कोरोना प्रोटोकॉल के तहत दी गई मानक संचालन प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया जा रहा है।