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ओलिंपिक गोल्ड जीत इतिहास रचने वाले नीरज चोपड़ा ने बताया, दबाव से ऐसे करते हैं सामना

नीरज ने बताया मैं बचपन से ही ऐसा हूं। कभी दो विकल्प के बारे में नहीं सोचा। जो अभी कर रहा हूं उस पर सौ प्रतिशत एकाग्र रहना ही मेरी कामयाबी का मंत्र है। परिवार ने कभी नहीं कहा था कि तुम्हें खेलना ही है।

By Viplove KumarEdited By: Published: Fri, 17 Jun 2022 02:57 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jun 2022 02:57 PM (IST)
ओलिंपिक गोल्ड जीत इतिहास रचने वाले नीरज चोपड़ा ने बताया, दबाव से ऐसे करते हैं सामना
ओलिंपिक गोल्ड मेडल विजेता एथलीट नीरज चोपड़ा (फोटो ट्विटर पेज)

सीमा झा। चैंपियन हार या जीत के लिए नहीं, बल्कि अपने प्रदर्शन को और बेहतर करने पर ध्यान देते हैं। ऐसे ही हैं हाल ही में फिनलैंड में पावो नुरमी गेम्स में अपना ही राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ने वाले जैवलिन खिलाड़ी व ओलिंपियन नीरज चोपड़ा। उन्हीं से जानें आखिर कैसे करते हैं वे जीत की तैयारी...

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मैं बचपन से ही ऐसा हूं। कभी दो विकल्प के बारे में नहीं सोचा। जो अभी कर रहा हूं, उस पर सौ प्रतिशत एकाग्र रहना ही मेरी कामयाबी का मंत्र है। परिवार ने कभी नहीं कहा था कि तुम्हें खेलना ही है। पढ़ाई भी बराबर करता था लेकिन जैसे-जैसे खेल में मेरी मेहनत रंग लाने लगी, मेरी इच्छाशक्ति और मजबूत होती गयी। मेरी रुचि इस खेल में बढ़ती गयी और लगातार जुटे रहने के कारण आज मैं यहां तक पहुंचा हूं।

खुद की करें मदद

यदि आप खुद को बेहतर करने पर फोकस करेंगे तो लोग भी आपकी मदद करेंगे। परिवार पर आपका यकीन बढ़ता जाएगा। परिवार का काम है आप जो कर रहे हैं उसमें आपकी सहायता करना। आपका साथ देना। कठिनाइयों को कम करना। पर आपका काम है लक्ष्य प्राप्ति की राह में खुद की मदद करना यानी आप जो कर रहे हैं, उसमें जुटे रहना। परिवार की मदद से अपनी मुश्किलों को दूर करना। हार नहीं मानना। मुझे कई बार चोटें आईं। कई बार मैं जिले या राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में हार जाता। कोई पोजीशन नहीं मिलती थी। इसके बाद भी कभी नहीं सोचा कि मैं यह खेल छोड़ दूं। मुझे हमेशा लगा कि मैं और मेहनत करूंगा तो मेरा प्रदर्शन बेहतर होगा। कुछ अलग तरीके से प्रयास करें तो शायद अगली बार बेहतर परिणाम मिले।

रखें धैर्य

यदि आप खेल के क्षेत्र में आना चाहते हैं तो जल्दी परिणाम के बारे में न सोचें। धीरज रखें। हो सकता है कि आपको लंबे समय के बाद कामयाबी मिले। कुछ खिलाड़ी धैर्य खो देते हैं। कुछ बच्चे तो अपना क्षेत्र ही बदल लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है वह हार रहे हैं या योग्य नहीं हैं। पर यह सही नहीं है। मेरा अनुभव कहता है कि आपको प्रशिक्षण पर फोकस करना चाहिए।

संसाधनों की कमी से न हों परेशान

मैं भी गांव से आया हूं। गांव या छोटे शहर के बच्चे आम तौर पर यही सोचते हैं कि उन्हें सुविधाएं कम मिली हैं। यदि अमुक सुविधा होती तो अच्छा होता। अच्छा स्टेडियम होता, अच्छी जगह, माहौल या दूसरी सुविधाएं होतीं तो वे बेहतर कर पाते। मेरा मानना है कि आप जिस स्थिति में हैं, उससे शिकायत नहीं करें। छोटी जगह में भी अपना हौसला न खोएं। अपना प्रदर्शन बेहतर करें। कभी औरों से तुलना करने में अपना वक्त बर्बाद न करें। याद रखें, कदम दर कदम ही मंजिल मिलती है।

एक दिन पहले की तैयारी

यदि आपको कोई प्रतियोगिता में या परीक्षा देने जाना है तो खुद को अपने जोन में ही रखें यानी अपने काम या विषय के बारे में ही सोचें। भटकाव से बचें। इंटरनेट मीडिया से दूर रहना अच्छा है। मैं भी यही करता हूं। कई अच्छे संदेश भी आते हैं, तुमसे ही उम्मीद, तुम नहीं तो और कौन स्वर्ण दिलाएगा आदि संदेश अच्छे होते हैं पर यह दबाव बढ़ाता है। इससे प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। आपको खुद पता है कि आपने कितनी मेहनत की है और आगे क्या करना है। जरूरी नहीं कि हमेशा अच्छा ही हो। दोबारा मेहनत करने के लिए खुद को प्रेरित करना चाहिए। यह न भूलें कि आपने कहां से शुरुआत की है और कहां तक जाना है, क्या करना है।

प्रतियोगिता से पहले तेज संगीत

मुझे संगीत बहुत पसंद है। मूड के आधार पर मेरे गानों का चयन होता है। यदि अकेला हूं तो हेडफोन लगाकर घूमने निकल जाता हूं। सुकून मिलता है। पर अगले दिन कोई प्रतियोगिता हो तो मैं तेज संगीत सुनता हूं। इससे मुझे एकाग्र रहने में मदद मिलती है।

सभी दें अपना बेस्ट

कई बार ऐसा होता है कि केवल बच्चे ही नहीं, पैरेंट्स भी क्या करें, कैसे करें जैसे सवालों में फंस जाते हैं। पैरेंट्स अपने बच्चों को घर से बाहर भेजते हैं। आस होती है कि बच्चों को बेहतर माहौल व सुविधाएं मिलें तो वे कुछ अच्छा कर दिखाएंगे। दूसरी तरफ उन्हें यह डर भी होता है कि छोटी उम्र या अनुभव की कमी के कारण यह आस टूट न जाए। ऐसी दुविधा मेरे परिवार को भी थी। पर मेरे परिवार को फैसला लेना ही पड़ा। हर परिवार को बच्चों के लिए ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं। इसी तरह बच्चों को भी लगता है कि अकेला पड़ गया हूं, मुझसे होगा या नहीं। यह स्वाभाविक है। पैरेंट्स हों या बच्चे, दोनों को बस अपना बेस्ट देना है। इससे चीजें आसान होती जाएंगी। 


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