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हिजाब पहनकर भी रिंग पर उतर सकती हैं मुस्लिम लड़कियां : निकहत जरीन

निकहत जरीन के कहा कि आखिरकार इतने साल बाद मैंने अपने भारत देश के लिए विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल कर लिया है। कोशिश रहेगी कि आगे भी मैं ऐसे ही देश का प्रतिनिधित्व करूंगी और देश के लिए पदक जीतूंगी।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Sat, 21 May 2022 09:10 AM (IST)Updated: Sat, 21 May 2022 09:10 AM (IST)
हिजाब पहनकर भी रिंग पर उतर सकती हैं मुस्लिम लड़कियां : निकहत जरीन
महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में निकहत जरीन ने गोल्ड मेडल जीता (एपी फोटो)

भारतीय मुक्केबाज निकहत जरीन ने महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 52 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर देश को जश्न मनाने के साथ ही गौरवान्वित होने का मौका दिया। निकहत ने ना सिर्फ जीत हासिल की बल्कि वह उन चुनिंदा भारतीय महिला मुक्केबाजों में शामिल हो गई जिन्होंने विश्व चैंपियनशिप में देश को स्वर्ण दिलाया है। तेलंगाना की इस मुक्केबाज को कभी शा‌र्ट्स (छोटे कपड़े) पहनने पर सवालों का सामना करना पड़ता था। निकहत का कहना है कि जिन लड़कियों का परिवार उनके पीछे खड़ा है उन्हें मुक्केबाजी में जरूर आना चाहिए और विश्व मुक्केबाजी संघ के नियम के अनुसार अब लड़कियां हिजाब पहनकर भी रिंग पर उतर सकती हैं। अभिषेक त्रिपाठी ने निकहत जरीन से छह बार की विश्व कप चैंपियन एमसी मेरी कोम के साथ चली रार से लेकर पेरिस ओलिंपिक की संभावनाओं पर बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश-

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-आपने इतना सहा है, अब विश्व चैंपियन बनकर कैसा लग रहा है?

- बहुत अच्छा महसूस हो रहा है। आखिरकार इतने साल बाद मैंने अपने भारत देश के लिए विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल कर लिया है। कोशिश रहेगी कि आगे भी मैं ऐसे ही देश का प्रतिनिधित्व करूंगी और देश के लिए पदक जीतूंगी।

-कभी आपको मेरी कोम से ट्रायल के लिए लड़ना पड़ा था, लेकिन आज आप ट्विटर पर ट्रेंड हो रही हैं और घर-घर आपकी बात हो रही है?

- हर चीज का एक सही वक्त आता है। मेरे खयाल से ऊपर वाले ने मेरे लिए यही वक्त चुना है। अभी मैंने स्वर्ण जीता है लेकिन यह शुरुआत है और आगे इससे भी ज्यादा मेहनत करनी है। मुझे पेरिस ओलिंपिक के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी होगी, जहां मेरा सपना स्वर्ण पदक जीतने का है। इतने से काम नहीं चलेगा। विश्व चैंपियनशिप से बढ़कर प्रतिस्पर्धा ओलिंपिक में होती है क्योंकि वहां सर्वश्रेष्ठ में से श्रेष्ठ खिलाड़ी आते हैं। वहां ऐसी बाउट नहीं होगी कि पहली कठिन रही तो दूसरी आसान मिल गई। ओलिंपिक में पहले दिन से लेकर आखिरी दिन तक सभी मुकाबले कठिन ही पड़ेंगे। उस हिसाब से हमें फिटनेस और खेल बरकरार रखकर आगे बढ़ना होता है और इसके लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत होती है।

-जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने आपको बधाई दी थी और अभी जब आप आराम कर रही थीं तो मेरी कोम का ट्वीट आया?

-अच्छा..उन्होंने ट्वीट किया? सच में ऐसा किया मैंने देखा नहीं है। मुझे खुशी हुई कि उन्होंने मेरे लिए ट्वीट किया। मैं उनके ट्वीट का जवाब दूंगी।

-आपने अधिकतर समय मेरी के भारवर्ग (48 किग्रा) में खेला है। एक समय आपको उनके साथ ट्रायल की मांग करने पर ट्रोल होना पड़ा लेकिन अब आप ट्रेंड कर रही हैं?

-काफी कठिन होता है ऐसा समय। हम अपनी बारी का इंतजार करते हैं। मैं फ्लाइवेट में खेलती हुई आई हूं लेकिन मुझे मौका नहीं मिला। मेरी कोम ही नहीं बल्कि पिंकी जांगड़ा भी उसी भार वर्ग में खेलती थीं और दोनों, मेरे से सीनियर मुक्केबाज हैं। यूथ से आते ही मैं यह उम्मीद नहीं रख सकती कि मुझे उस भार वर्ग में मौका मिल जाएगा। मैं मेहनत करती रही हूं और अपनी बारी का इंतजार किया है। जब भी मुझे मौका मिलेगा मैं उसका फायदा उठाऊंगी। मैं किसी भी प्रतियोगिता को अवसर समझकर अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करती हूं। ऐसे बहुत सारे मुक्केबाज हैं जो इस मौके के लिए भी तरसते हैं। मुझे जो मिल रही है मैं उसमें खुश रहना पसंद करती हूं। जितना भी मुझे अब तक मिला है मैं उससे खुश हूं लेकिन अब जाकर मेरा नंबर लगा है और मुझे स्वर्ण मिला है। इसकी खुशी है कि 2011 जूनियर विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीता था और अब 2022 में भी ऐसा हुआ है। इतने लंबे समय बाद जब आपको फल मिलता है तो उसकी खुशी होती है। जब रिंग में मैच के बाद विजेता घोषित करने के लिए मेरा हाथ उठाया गया तो मैं भावुक हो गई क्योंकि इतने वर्षो की मेहनत के बाद मैंने अपने देश के लिए स्वर्ण जीता जो हमेशा मेरे लिए यादगार रहेगा।

-खिलाड़ियों को ट्रेनिंग और टूर्नामेंट के लिए लगातार बाहर रहना पड़ता है। ऐसे में कभी फिल्म देखने या परिवार के साथ किसी कार्यक्रम में जाने का मौका मिलता है?

-कोई प्रतियोगिता होती है तो हम उस हिसाब से तैयारी करते हैं। प्रतियोगिता पास आ रही है तो हम सारा ध्यान उसी में लगाते हैं ताकि दिमाग कहीं और ना जाए लेकिन अगर कोई प्रतियोगिता नहीं है या उसमें समय है तो उस समय हम बाहर घूमने जाते हैं। थोड़ा समय इसके लिए मिल जाता है। अगर आपको फिटनेस स्तर बरकरार रखना है तो आपको खाना भी अच्छा रखना पड़ता है।

- आपके सफर में माता-पिता का काफी योगदान रहा है। आप इस बारे में बताएं?

-हां, मेरे माता-पिता ने काफी संघर्ष किया है। मैंने अपने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। 2017 में मेरे कंधे की सर्जरी हुई थी जिसके कारण एक साल तक मैं मुक्केबाजी से बाहर रही। उस दौरान सिर्फ मुझ पर ही नहीं बल्कि मेरे माता-पिता पर भी काफी कुछ बिता है। उनको चिंता हो गई थी कि मेरा हाथ टूट गया और अगर ओलिंपिक में पदक जीतने का सपना पूरा नहीं हो पाया तो मुझे कितना बुरा लगेगा, यह सब सोच कर उन्हें दुख होता था। मैंने खुद को मजबूत रखा और माता-पिता से कहा कि मैं वापसी करूंगी और देश के लिए पदक जीतूंगी। मेहनत करने वालों का परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता।

-आपके पिता ने कहा कि जब आप खेलने जाती थीं तो कुछ लोग सवाल उठाते थे कि लड़की शा‌र्ट्स पहन रही है। जो लड़कियां बंदिशों के कारण नहीं खेलने जा पातीं, उन्हें क्या संदेश देंगी?

-अगर वे खेलना चाहती हैं लेकिन उनका परिवार इसकी इजाजत नहीं देता तो इसमें कुछ नहीं कर सकते। माता-पिता का फैसला ही मान्य होता है। उनके खिलाफ जाने के लिए तो मैं बिलकुल नहीं कहूंगी। अगर वे समझदार हैं तो अपने बच्चों की बात समझेंगे लेकिन नहीं समझना चाहते तो इसमें मैं कितना भी बोल लूं वो नहीं समझ पाएंगे। हालांकि, मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे माता-पिता मिले जो मेरे सफर में मेरा समर्थन कर रहे हैं। मुझे कभी उन्होंने नहीं रोका। मैं यही प्रार्थना करती हूं कि सभी को ऐसे माता-पिता मिलें। जो मुस्लिम लड़कियां मुक्केबाजी करना चाहती हैं वो हिजाब पहनकर कर सकती हैं। मुक्केबाजी ऐसा खेल है, जहां आप हिजाब पहनकर भी खेल सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय संघ ने इसकी इजाजत दी थी। हालांकि, यह आपकी व्यक्तिगत इच्छा होगी। कोई आप पर दबाव नहीं डालेगा कि आप हिजाब पहनकर या नहीं पहनकर रिंग में उतरें।

-आपको लगता है कि इस जीत से कुछ फर्क पड़ेगा?

-हां, जरूर आया होगा। मुस्लिम ही नहीं, बल्कि हिंदू लड़की में भी आया होगा। मुक्केबाजी को हमारे देश में मर्दों का खेल माना जाता है क्योंकि उसमें मार खानी पड़ती है। लोगों को लगता है कि पहले ही लड़की कमजोर होती और मार खाएगी तो हाथ पैर टूट जाएंगे, शादी कौन करेगा। लड़कियों पर यह सब जिम्मेदारी आ जाती है लेकिन ऐसा नहीं है, अगर आपको कुछ बनना है तो त्याग करना पड़ेगा। इसके बिना तो किसी को फल नहीं मिलता है। आजकल दुष्कर्म के मामले सुनने मिलते हैं तो मैं लड़कियों से कहूंगी कि खुद की आत्मरक्षा के लिए मजबूत बनाएं।

-2017 में कंधे की सर्जरी, 2018 राष्ट्रमंडल खेल या एशियाई खेलों में चयन नहीं होना। इनमें से कौन सा आपके लिए सबसे कठिन समय था?

- मेरा सबसे कठिन समय 2017 ही रहा है। 2018 में वापसी की थी। हालांकि तब मैं 100 प्रतिशत फिट ही थी तो बड़े टूर्नामेंट में खेलने का सपना कैसे देख सकती थी। वापसी करने के बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और बस प्रदर्शन करती रही।

-कभी एक विश्व चैंपियन ने कहा था, कौन है निकहत जरीन। राष्ट्रमंडल खेल, एशियन गेम्स में क्या आप दोनों फिर आमने-सामने होंगी?

-शायद ओलिंपिक के समय मेरी कोम की उम्र नहीं रहेगी क्योंकि जब अगले साल क्वालीफायर होंगे तो वह 40 साल की हो जाएंगी। ओलिंपिक में 40 साल के ऊपर के खिलाड़ी नहीं खेल सकते। रही बात राष्ट्रमंडल खेलों की तो ऐसे सुनने में आया कि वह वहां 48 किग्रा में खेलेंगी। मैं 50 किग्रा वर्ग में रहूंगी। मुझे नहीं लगता हम राष्ट्रमंडल ट्रायल में भी एक भार वर्ग में होंगे।

-तो..निकहत जरीन कौन हैं?

-मैं यही कहूंगी कि अभी के लिए निकहत 2022 महिला विश्व चैंपियन है।


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