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मिल्खा सिंह : आजाद भारत के लिए पहला गोल्ड जीतने से 'फ्लाइंग सिख' बनने तक का सफर

Milkha Singh died उड़न सिख के नाम से मशहूर पद्मश्री पूर्व एथलीट मिल्खा सिंह ने भारत को कई पदक दिलाए लेकिन 1960 रोम ओलंपिक में पदक से चूकने की कहानी आज भी लोगों के जेहन में ताजा है।

By TaniskEdited By: Published: Fri, 04 Jun 2021 05:12 PM (IST)Updated: Sat, 19 Jun 2021 01:02 AM (IST)
मिल्खा सिंह : आजाद भारत के लिए पहला गोल्ड जीतने से 'फ्लाइंग सिख' बनने तक का सफर
मशहूर पद्मश्री पूर्व एथलीट मिल्खा सिंह ।

नई दिल्ली, जेएनएन। उड़न सिख के नाम से मशहूर पद्मश्री भारत के महान एथलीट मिल्खा सिंह चंडीगढ़ पीजीआइ के कोविड की जंग लड़ रहे थे। उन्हें ऑक्सीजन लेवल काफी नीचे गिरने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शुक्रवार 18 जून को रात 11 बजकर 30 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। बीते 17 मई को मिल्खा सिंह कोरोना पाजिटिव पाए गए थे। तब उन्हें मोहाली के फोर्टिस अस्तपाल में भर्ती कराया गया था।

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हालांकि, इलाज के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 91 साल के दिग्गज से बात कर स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी। इस महान धावक वे भारत को कई पदक दिलाए, लेकिन 1960 रोम ओलंपिक में पदक से चूकने की कहानी आज भी लोगों के जेहन में ताजा है।

आइए जानते हैं मिल्खा सिंह के आजाद भारत के लिए पहला गोल्ड जीतने से फ्लाइंग सिख बनने तक की कहानी

सेना ने जिंदगी बदल दी

मिल्खा सिंह का जन्म साल 1929 में पाकिस्तान के मुजफरगढ़ के गोविंदपुरा में हुआ था। उनका जीवन काफी संघर्ष भरा रहा। बंटवारे के दौरान हिंसा में उन्होंने 14 में से आठ भाई बहनों और माता-पिता को खो दिया। इसके बाद वे भारत आ गए और सेना में शामिल हुए और उनकी जिंदगी बदल गई। एक क्रॉस-कंट्री रेस ने उनके प्रभावशाली करियर की नींव रखी। इस दौड़ में 400 से अधिक सैनिक शामिल थे और इसमें उन्हें छठा स्थान हासिल हुआ। इसके बाद उन्हें ट्रेनिंग के लिए चुना गया। उन्होंने तीन ओलंपिक 1956 मेलबर्न, 1960 रोम और 1964 टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने हिस्सा लिया।

1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड हासिल किया

साल 1956 मेलबर्न ओलंपिक में उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। 200 मीटर और 400 मीटर की स्पर्धाओं में उन्होंने भाग लिया था। इस दौरान उनमें अनुभव की कमी साफ दिखी। इस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद उन्होंने अपनी कमियों को सुधारा और 1958 में हुए एशियन गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इसके बाद 1958 के कार्डिफ कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने भारत को गोल्ड दिलाया। इसके बाद कॉमनवेल्थ गेम्स में एथलेटिक्स का गोल्ड जीतने में दूसरे भारतीय खिलाड़ी को 52 साल लग गए। साल 2014 तक कॉमनवेल्थ गेम्स में वे इकलौते भारतीय एथलीट गोल्ड मेडलिस्ट (पुरुष) थे। 1959 में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

1960 ओलंपिक खेलों में ब्रॉन्ज मेडल से चूके

1960 ओलंपिक खेलों में उनसे काफी उम्मीद थी। क्वार्टरफाइनल और सेमीफाइनल में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और दूसरा स्थान हासिल किया। हालांकि, फाइनल में वे ब्रॉन्ज मेडल से चूक गए और चौथा स्थान हासिल किया। वह 250 मीटर तक सबसे आगे थे, लेकिन इसके बाद उनकी गति धीमी हो गई और अन्य धावक उनसे आगे निकल गए। उन्होंने इस रेस को 45.73 सेकंड में पूरा किया। यह भारत का 40 साल तक नेशनल रिकॉर्ड रहा था।

करियर का मुख्य आकर्षण 1964 एशियन गेम्स

मिल्खा सिंह के करियर का मुख्य आकर्षण 1964 एशियन गेम्स रहा। इस दौरान उन्होंने 400 मीटर रेस और 4x400 मीटर रिले रेस में गोल्ड जीता था। 1964 टोक्यो ओलंपिक में उनका प्रदर्शन यादगार नहीं रहा। इस दौरान उन्होंने केवल एक ही इवेंट 4x400 मीटर रिले रेस में हिस्सा लिया था।

कैसे पड़ा फ्लाइंग सिख नाम

मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख कहा जाता है। उन्हें यह नाम पाकिस्तान के दूसरे राष्ट्रपति अयूब खान ने दिया था। पाकिस्तान में आयोजित जिस रेस के बाद उन्हें यह नाम मिला उसमें वे हिस्सा नहीं लेना चाहते थे। हालांकि, बाद में वो इसमें हिस्सा लिए और इसे जीते भी। असल में वो बंटवारे की घटना को भूल नहीं पाए थे। यह वजह थी कि वो पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। देश के तत्कालिन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर वे गए। उन्होंने अब्दुल खालिक को हराया था। पाकिस्तान के तत्कालिन राष्ट्रपति अयूब खान ने उन्हें फ्लाइंग सिख के खिताब से नवाजा था। इसके बाद वे फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर हो गए।


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