उधार के धनुष से देश दिलाया था गोल्ड, अब सड़क हादसे में हो गई मौत
दिग्गज तीरंदाज और कोच रहे जयंतीलाल ननोमा की एक सड़क हादसे में मौत हो गई है।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा सोमवार को राजस्थान के डूंगरपुर जिले में स्थित अपने पैतृक गांव में पंचतत्व में विलीन हो गए। शनिवार देर रात एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई। अब उनकी स्मृतियां ही शेष हैं। आदिवासी परिवार के जयंतीलाल के किस्से लोग कहते नहीं थकते। वह अपने खेल के प्रति बेहद गंभीर थे और आधुनिक तीर-कमान के बगैर भी उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेने के दौरान उन्होंने कुछ समय के लिए अपने गुरु से उधार में मिले कमान से ही भारत की झोली में स्वर्ण डाल दिया था। उनके गुरु रहे लिम्बाराम भी अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज रह चुके हैं।
जयंतीलाल का जन्म 35 साल पहले डूंगरपुर जिले के बिलड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता जीवाजीराम किसान थे जबकि माता गृहिणी थी। बालपन से ही खेल के प्रति जयंती की रुचि थी और वह स्कूल में फुटबॉल खेला करते थे। छठवीं कक्षा में आने पर बालक जयंती की रचि तीरंदाजी की ओर बढ़ी और बांस के बनाए धनुष से ही निशाना साधने में जुट गए। कुछ समय में वह बेहतर तीरंदाज बन गए। उनके अचूक निशाने देखकर सहपाठी ही नहीं, गुरुजन भी अचंभित रह जाते थे।
स्कूली शिक्षा के दौरान जयंती ने जिला तथा प्रदेश स्तर पर कई पदक अपने नाम किए। वर्ष 2006 में उन्हें पहली बार भारतीय तीरंदाजी टीम में अवसर मिला और राष्ट्रीय स्पर्धाओं के बाद विश्व चैंपियनशिप में भी अचूक निशाने लगाकर स्वर्ण पदक जीता। राजस्थान सरकार ने स्पोर्ट्स कोटे से जयंतीलाल को जिला खेल अधिकारी पद से सम्मानित किया। पिछले साल हुई मुलाकात में जयंतीलाल ने बताया था कि किस तरह उन्होंने अपने गुरु और अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज लिम्बाराम से उधार में लिए धनुष से भारत की झोली में स्वर्ण पदक डाला।
उन्होंने बताया कि उनके पास आधुनिक धनुष नहीं था और विश्व चैंपियनशिप में भाग लेने के दौरान वह इसकी वजह से खासे डरे हुए थे। तभी गुरु लिम्बाराम से मिले धनुष ने हौंसला ही नहीं दिया, बल्कि देश को जीत दिलाने में मदद प्रदान कर दी। तीरंदाज जयंतीलाल को मलेशिया में कोच का प्रस्ताव मिला लेकिन उन्होंने देश के बच्चों को तीरंदाजी सिखाने के लिए उन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। वह पिछले दो साल डूंगरपुर में देश भर के 44 बच्चों को तीरंदाजी का हुनर सिखाने में जुटे थे। इनमें 22 लड़कियां और 22 लड़के शामिल हैं।