सरकार करे मदद तो 'आत्मनिर्भर' बन सकते हैं खेल, भारतीय खेलों में है चीन की गहरी पैठ
भारतीय खेलों में चीन की दखल इस हद तक है कि भारतीय ओलंपिक संघ की मुख्य प्रायोजक खेल सामान बनाने वाली चीनी कंपनी लीनिंग है।
अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। खेलों का सामान बनाने वाली भारतीय कंपनियां चीनी 'अतिक्रमण' को हटाकर 'आत्मनिर्भर' बनना चाहती हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें सरकारी मदद और नीतियों में बदलाव की दरकार है। एलएसी पर चीन की हरकतों ने देश में उसके खिलाफ माहौल भी बना दिया है और भारतीय कंपनियां इसका फायदा भी उठाना चाहती हैं।
भारतीय खेलों में चीन की दखल इस हद तक है कि भारतीय ओलंपिक संघ की मुख्य प्रायोजक खेल सामान बनाने वाली चीनी कंपनी लीनिंग है, जबकि आइपीएल की प्रायोजक उसी देश की मोबाइल निर्माता कंपनी वीवो है। देश में शटल कॉक, टेनिस रैकेट, कुश्ती मैट, टेबल टेनिस की गेंद, बैडमिंटन, जेवलिन (भाला), हाई जंप बार, मुक्केबाजी हेडगार्ड, माउंटेन क्लाइंबिंग से जुड़े सामान, जिम के उपकरण और खेलों के कपड़े तक चीन से आयात होते हैं।
वित्तीय विभाग के 2018-19 के आंकड़ों के अनुसार देश में 50 फीसद से ज्यादा खेल उपकरणों का आयात चीन से होता है। हालांकि, भारत में सबसे ज्यादा खेला जाने वाला खेल क्रिकेट इससे अछूता है। अधिकतर भारतीय क्रिकेटर भारत में बना ही सामान इस्तेमाल करते हैं और देश में उसका आयात नगण्य है। क्रिकेट के बल्ले, गेंद, स्टंप, पैड, ग्लव्स आदि सामान बनाने वाली कंपनियां अगर ऐसा कर सकती हैं तो बाकी भी कर सकते हैं।
भारतीय मुक्केबाज मनोज कुमार ने कहा कि कोई भी एथलीट नहीं चाहता कि वह विदेशी चीजों का इस्तेमाल करे। वह तिरंगे के लिए खेलता है, लेकिन उन्हें मजबूरी में विदेशी चीजें इस्तेमाल करनी होती हैं। जहां तक मेरी बात है तो मैं भारतीय कंपनी की किट पहनता हूं। जो जूते मैं इस्तेमाल करता हूं, भारत में उस क्वालिटी के जूते नहीं बनते। एक भारतीय टेबल टेनिस खिलाड़ी ने कहा कि रैकेट और टेबल भारत में ही बनते हैं, लेकिन गेंद पर चीन का एकाधिकार है। विश्व और एशियन चैंपियनशिप को छोड़कर दुनिया भर के टूर्नामेंट में चीन की गेंद का ही इस्तेमाल होता है। सभी भारतीय खिलाड़ी इसी सेट की गेंद से अभ्यास करते हैं, क्योंकि उन्हें स्पिन और उछाल से सामंजस्य बैठाना होता है।
जालंधर की नोवा फिटनेस के प्रबंध निदेशक सुमित शर्मा ने कहा कि हम बैडमिंटन रैकेट बनाते हैं। चीनी कंपनियों के कारण हमारा काफी नुकसान हुआ है। अगर चीन से रैकेट के आयात पर प्रतिबंध लगेगा या उस पर टैक्स बढ़ेगा तो हमारी इंडस्ट्री आगे बढ़ेगी। केंद्र सरकार कच्चे माल पर कस्टम ड्यूटी कम करे और तैयार वस्तु पर बढ़ाए। अभी इसका उल्टा हो रहा है। चीन के खिलाफ माहौल से अभी ही फर्क आने लगा है। हम पहले उच्च स्तरीय रैकेट नहीं बनाते थे क्योंकि कच्चा माल महंगा पड़ता था। हम कार्बन ग्रेफाइट का प्लांट लगाने की सोच रहे हैं, इसमें उच्च स्तरीय रैकेट बनते हैं जो शीर्ष स्तर के शटलर इस्तेमाल करते हैं। सरकार मदद करेगी तो निर्माता अपनी तकनीक को आधुनिक करेंगे और ज्यादा रिस्क ले सकेंगे।
जालंधर के ही रक्षक स्पोर्ट्स के प्रबंध निदेशक संजय कोहली ने कहा कि भारत में क्रिकेट और हॉकी के सामान के साथ फुटबॉल भी बनती हैं। योगा मैट तक चीन से आ रही है। खेल सेक्टर के लिए किसी भी सरकार ने कभी कुछ नहीं किया। हम अपने बलबूते पर ही काम कर रहे हैं। चीन में सरकार बहुत मदद करती है, बिजली सस्ती है, बैंक लोन सस्ते हैं। चीन को बॉयकॉट करने की जगह उससे प्रतिद्वंद्विता करनी चाहिए। अगर हमारे यहां अच्छी और सस्ती चीज मिलेगी तो कोई क्यों चीनी सामान खरीदेगा। हम हॉकी स्टिक और इस खेल से जुड़े सामान बनाते हैं। उन्हें ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, मलेशिया, जापान व दक्षिण कोरिया को भी निर्यात करते हैं। हमारे सेक्टर में चीनी कंपनियों से टक्कर कम है।