ओलंपिक के दरवाजे तक पहुंचे बेहद गरीब परिवार के पहलवान दीपक पूनिया, अब हैं पदक के दावेदार
कोच वीरेंद्र ने बताया कि विश्व कैडेट के बाद दीपक ने मुड़कर नहीं देखा। खास बात यह है कि वह किसी बड़ी प्रतियोगिता में खाली हाथ नहीं लौटा है। वह अपने से तगड़े पहलवान को भी हरा सकता है और उसने अभ्यास में ऐसा किया भी है।
योगेश शर्मा, नई दिल्ली। वर्ष 2014 की बात है जब हरियाणा के झज्जर का छारा गांव का एक अनजान सा लड़का दीपक पूनिया छत्रसाल स्टेडियम में आया। अन्य पहलवानों की तरह उनकी भी चाह थी कि ओलंपिक में पदक जीत लूं लेकिन, वहां तक पहुंचाना ही बड़ा मुश्किल होता है। ओलंपियन बनना भी हर किसी के भाग्य में नहीं होता लेकिन, दीपक के साथ कुछ अलग था। वह 86 किग्रा में फ्री स्टाइल में खेलते हैं और जब वह छत्रसाल में आए तो वहां उन्हें कोच वीरेंद्र कुमार का साथ मिला। वीरेंद्र ने पहचान लिया था कि यह लड़का एक दिन ओलंपिक में पदक जीत जाएगा।
वीरेंद्र ने बताया कि जब वह छत्रसाल आया था तो मुझे उसके अंदर एक सबसे अच्छी बात लगी कि वह हमेशा बोलता था कि कोच जी मुझे कुछ बनना है। वह बहुत ही गरीब परिवार से था। उसके पापा घर-घर दूध बेचने का काम करते थे और इसके बाद वह चाहता था कि मैं कुछ बनकर अपने घर वालों को सभी दुख से मुक्त करा दूं। उसकी एक खास बात यह भी है कि वह ध्यान से सुनता है। जिसका फायदा उसे आगे मिलता है।
2016 में दी अपनी दस्तक : 2016 में दीपक ने अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में दस्तक दे दी थी। वह पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई चैंपियनशिप खेलने गए और विश्व कैडेट चैंपियन बनकर वापस आए। कोच वीरेंद्र ने बताया कि विश्व कैडेट के बाद दीपक ने मुड़कर नहीं देखा। खास बात यह है कि वह किसी बड़ी प्रतियोगिता में खाली हाथ नहीं लौटा है। वह अपने से तगड़े पहलवान को भी हरा सकता है और उसने अभ्यास में ऐसा किया भी है। विश्व चैंपियनशिप और रैंकिंग सीरीज में वह चोटिल हो गया था जिसके बाद उसे ठीक से अभ्यास नहीं मिल पाया। वह अब फिट है।
ओलंपिक के लिए अभ्यास जरूरी : वीरेंद्र ने कहा कि दीपक अपने विपक्षी पहलवान को थकाकर हराता है और मौका मिलने पर अटैक भी करता है लेकिन उसे उस तरह का अभ्यास नहीं मिल पा रहा है। पोलैंड में भी रैंकिंग सीरीज में उसे अपने वर्ग और अपने से भारी वर्ग के पहलवान नहीं मिल पाए जिससे वह ठीक से अभ्यास नहीं कर पाया जो चिंता का विषय है। अब उम्मीद है कि उसे रूस में अभ्यास करने के लिए पहलवान मिल जाएं। ओलंपिक में उसके वर्ग में 15 पहलवान हैं और वह उनके वीडियो देखकर तैयारी कर रहा है लेकिन, असल परीक्षा मैट पर ही होती है क्योंकि ओलंपिक में कोई भी खिलाड़ी कम नहीं होता है।
मां की मृत्यु के बाद मुश्किल से संभले : वीरेंद्र ने बताया कि पिछले साल कोरोना से उसकी मम्मी की मृत्यु हो गई थी और फिर कुछ महीने बाद दादी की मृत्यु हो गई। उसके बाद दीपक टूट गए थे और उसे फिर समझाया गया जिसके बाद वह मैट पर उतरा। दीपक इस बात से परेशान था कि जब मां और दादी को सुख देने का समय आया तो वे छोड़कर चली गई।
इनको हराएंगे तो मिलेगा ओलंपिक पदक
हसन याजदानी (इरान), स्टीफन रीचमथ (स्विट्जरलैंड), आर्टुर नाइफोनोव (रूस), कार्लोस इक्यारडो (कोलंबिया), माइल्स अमीन (अमेरिका), डेविड टेलर (अमेरिका), पूल एंब्रोकिओ (पेरू), अली शाबनाओ (बेलारूस), ओस्मान गोचेन (तुर्की), एकेरेकेम एगिमोर (नाइजीरिया), फतेह बेंफर्डजल्लाह (अल्जीरिया), जावराइल शापिव (उज्बेकिस्तान), लिन जुशेन (चीन), सोसुके तकातनी (जापान), बोरिस माकोजेव (स्लोवाकिया)।
दीपक पूनिया की उपलब्धियां-
पदक, टूर्नामेंट, वर्ष
रजत, विश्व चैंपियनशिप, 2019
रजत, जूनियर विश्व चैंपियनशिप, 2018
स्वर्ण, जूनियर विश्व चैंपियनशिप, 2019
कांस्य, एशियन चैंपियनशिप, 2019
कांस्य, एशियन चैंपियनशिप, 2020
स्वर्ण, विश्व कैडेट चैंपियनशिप, 2016
स्वर्ण, एशियन जूनियर, चैंपियनशिप, 2018