फाइनल में हैम्बर्ग का हिसाब बराबर कर लिया : अमित
अमित पंघाल ने एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था।
हरियाणा के रोहतक जिले के गांव मायना के रहने वाले भारतीय मुक्केबाज अमित पंघाल ने एशियन गेम्स में रियो ओलंपिक के चैंपियन उज्बेकिस्तानी मुक्केबाज को हराकर सोना जीता। अमित का कहना है कि उन्होंने इस उज्बेक मुक्केबाज के साथ हैम्बर्ग विश्व चैंपियनशिप 2017 की हार का हिसाब बराबर कर लिया। अमित पंघाल से अनिल भारद्वाज से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश :
-आप ऐसे लड़े जैसे रियो ओलंपिक के चैंपियन उज्बेक मुक्केबाज नहीं, आप हैं?
- जब मैं हैम्बर्ग से बिना पदक लौटकर आया, तो मेरे गुरु अनिल धनखड़ ने मुझे बताया कि मैं जीत सकता था, लेकिन शायद रेफरी पर रियो चैंपियन के पदक का दबाव था। मैं हैम्बर्ग में भी जोरदार लड़ा था। मेरा मन नहीं मान रहा था कि मैं हार गया। फिर भी मेरे गुरु ने मुझे कुछ खामियां बताईं और उसे दूर कराया। मुझे पता था कि जकार्ता में उज्बेक का मुक्केबाज फाइनल में मिलेगा। मैंने अपनी तैयारी उसी को ध्यान में रखकर की थी। फाइनल फाइट से पहले मैंने अपने गुरु को फोन किया, तो गुरु ने कहा कि जकार्ता में दुनिया को बताओ, कि हैम्बर्ग में भी तुम जीत रहे थे। तब मैंने प्लान कर लिया था उज्बेक मुक्केबाज पर पंचों की बरसात करनी है और मैं कामयाब रहा।
-आप अपने पहले एशियन गेम्स में हर मुकाबला चैंपियन की तरह खेले। कैसे मुमकिन हो पाया?
- जकार्ता आने से पहले बीएफआइ ने विदेशी कोच सहित अन्य सुविधाएं दीं। यहां उसी का परिणाम मिला और मेरे सीनियर मनोज कुमार व विकास कृष्णन का बड़ा योगदान रहा। हर फाइट के लिए मानसिक तौर पर तैयार किया।
-आपकी सफलता के पीछे की वजह कौन है?
- मेरे बड़े भाई अजय मुक्केबाजी करते थे,जो भारतीय फौज में हैं। जब वह प्रैक्टिस करने जाते थे, मैं उनके साथ कभी-कभार खेलने जाता था। उसके बाद मुझे भी खेलने का मन किया। किसान पिता ने कोई कमी नहीं रहने दी, लेकिन मेरे गुरु अनिल धनखड़ ने मुझे इस लायक बनाया। जब उनका तबादला रोहतक से गुरुग्राम में हुआ, तो मैं भी साथ गुरुग्राम चला गया। उसके बाद मैंने पीछे मुडकर नहीं देखा। मेरी कामयाबी में मेरे पिता के साथ गुरु का बड़ा त्याग है।
- अब अगला लक्ष्य क्या है?
मेरे लिए अगले दो वर्ष बड़े संघर्ष व मेहनत करने करने वाले हैं। 2019 में विश्व चैंपियनशिप है और उसके बाद 2020 में टोक्यो ओलंपिक होंगे।