सुंदरगढ़ में गिर रहा भूजल स्तर, गहराएगा पेयजल संकट
सत्तर के दशक में राउरकेला को छोड़कर सुंदरगढ़ जिले में कही कोई चापाकल नहीं था। लोग पानी के लिए नदियों तालाबों और कुएं पर निर्भर थे।
जागरण संवाददाता, राउरकेला : सत्तर के दशक में राउरकेला को छोड़कर सुंदरगढ़ जिले में कही कोई चापाकल नहीं था। लोग पानी के लिए नदियों, तालाबों और कुएं पर निर्भर थे। पचास साल बाद, सुंदरगढ़ की तस्वीर पूरी तरह से उलट गई है। अधिकतर जल के स्रोत अब समाप्त हो गए हैं। यहां तक की अत्याधुनिक नलकूप भी काम नहीं कर रहे है। इसका मुख्य कारण भूजल स्तर का गिरना है। हर कोई इस तथ्य के बारे में चितित है कि भूजल स्तर खतरनाक रूप से घट रहा है। सुंदरगढ़ जिले में हर साल पेयजल की समस्या उत्पन्न होती है। हालांकि जिले में चार प्रमुख नदियां हैं, लेकिन लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है। भूजल स्तर गिर रहा है। सभी चापाकल पिछले 12 वर्षो से पानी देना बंद कर दिया है। पचास साल पहले, सुंदरगढ़ जिले के पहाड़ी इलाकों के अलावा, मैदानी इलाकों में भी पानी 50 फीट की गहराई पर पाया जाता था। लेकिन अब, यदि आप 250 फीट की गहराई तक नहीं खोदते हैं तो आपको पानी नहीं मिलेगा। पहले, हर गांव में एक कुआं था। लोग पूरी तरह से कुएं पर निर्भर थे। अधिकांश कुएं अब सूख गए हैं। बरसात के दिन को छोड़कर अन्य समय में इनमें पानी नहीं होता है। तालाब की हालत भी ऐसी ही है। लोग हमेशा तालाबों पर भरोसा नहीं कर सकते। बारिश के दो महीने बाद, तालाब सूख जाते हैं। सुंदरगढ़ जिले में क्रम रूप से जंगल की होती कमी, बढ़ता खनन और औद्योगीकरण को इसका मुख्य कारण कहा जा रहा है। पेड़ पानी को खींच कर रखता है। जंगल की कमी के कारण पानी घट रहा है। खदानों और कारखानों में गहरे नलकूप खोद कर पानी खींचे जाने के कारण आसपास के क्षेत्र के छोटे चापाकल बेकार हो गए हैं। वर्ष 2002 से 2020 के बीच, जिले में 6,000 से अधिक चापाकल बंद हो गए। इसका मुख्य कारण विभिन्न कारखाने और वनों की कटाई है। जिले के विभिन्न कारखानों में सैकड़ों गहरे नलकूप खोदे गए हैं, जिससे आसपास के गांवों में लोग असुविधा झेल रहे है। झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्य में नदियों पर बांध बनाए जाने के कारण, सुंदरगढ़ जिले से प्रवाहित नदियों में पहले की तरह पानी की आपूर्ति नहीं होती है। गर्मी के मौसम के दौरान नदियां पूरी तरह से सूख जाती हैं। किसान रबी की खेती करने में असमर्थ हैं क्योंकि नदी से औद्योगिक संस्थाए पानी पंप के जरिए उठा लेती है। तीन साल पहले, इस्पात शहर में पानी का संकट बढ़ गया था। जिले में जल संकट को कम करने के लिए, वर्षा जल संरक्षण और व्यापक पौधारोपण कि आवश्यकता को महसूस किया जा रहा है। लेकिन प्रशासन द्वारा ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है।