बीस साल बाद भी शहीद परिवार को नहीं मिली जमीन
गांव के चौक पर शहीद जवान की प्रतिमा लगाई गई है। हर साल शहीद दिवस पर ग्रामीण मूर्ति को श्रद्धांजलि देते हैं और गर्व से माटी के बहादुर बच्चे को याद करते हैं।
जागरण संवाददाता, राउरकेला : गांव के चौक पर शहीद जवान की प्रतिमा लगाई गई है। हर साल शहीद दिवस पर ग्रामीण मूर्ति को श्रद्धांजलि देते हैं और गर्व से माटी के बहादुर बच्चे को याद करते हैं। लेकिन शासन-प्रशासन ने देश के लिए अपनी जान देने वाले शहीद जवान के परिवार को भुला दिया है। शहीद के माता-पिता के लिए अनुमोदित भूमि के एक भूखंड के लिए उन्हें 20 वर्षों से एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं। सुंदरगढ़ जिले के टांगरपल्ली ब्लॉक के मुंडागांव के शहीद जवान अशोक माझी के परिवार की यह कहानी है। 21 मार्च 1973 को मुंडागांव में एक गरीब परिवार में जन्मे अशोक माझी, पिता धनु मांझी और माता बसंती के इकलौते पुत्र थे। अभाव के बावजूद, अशोक ने 12वीं तक की पढ़ाई की। पारिवारिक कठिनाइयों के कारण वह आगे नहीं पढ़ सके। फरवरी 1992 को, केंद्रीय सुरक्षा बल (सीआरपीएफ ) की 73 वीं बटालियन में शामिल हो गए और इंफाल, मणिपुर में योगदान दिया था।
आतंकवादी से लड़ते हुए शहीद हुए थे : 30 जनवरी, 1995 को यह वीर जवान आतंकवादी से लड़ते हुए शहीद हो गया। इसके बाद सीआरपीएफ के अधिकारियों ने राष्ट्रीय मर्यादा के साथ अशोक का अस्थि कलश को गांव लेकर आए और उनके माता-पिता को सौंप दिया। उस समय, शहीद के परिवार को मिलने वाली सभी सहायता तत्काल प्रदान करने का वादा किया गया था। माता-पिता, जो अपने इकलौते पुत्र की मौत से टूट चुके थे। उन्होंने अपने बेटे को दी जाने वाली 5 एकड़ जमीन के लिए लेफ्रीपाड़ा तहसील कार्यालय में आवेदन किया। सुंदरगढ़ के जिलापाल के राजस्व विभाग ने 7 मई 1997 को तहसीलदार को एक पत्र लिखा था, इसमें उन्हें तुरंत जमीन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था। लेकिन ऊपर से आदेश आने के बाद भी तहसीलदार से लेकर राजस्व निरीक्षक और लिपिक तक सभी मामले को टालते रहे।
असिस्टेंट कमांडेंट का पत्र गायब : ग्रामीणों द्वारा सीआरपीएफ बटालियन को इस बारे में सूचित करने के बाद, बटालियन के असिस्टेंड कमांडेंट ने अशोक के उत्तराधिकारी धनु माझी को जमीन उपलब्ध कराने के लिए 13 अगस्त 2006 को पत्र लिखा। लेकिन वह चिट्ठी गायब होने की बात कहकर तहसील प्रबंधन अब तक जमीन उपलब्ध नहीं कराई है।
तहसील कार्यालय विभाजन के बाद भी नहीं भेजी गई फाइल : हैरानी की बात है कि लेफ्रीपाड़ा तहसील के विभाजन और नई तहसील के रूप में टांगरपाली की घोषणा के बाद, लेफ्रीपाड़ा तहसील द्वारा सौंपे गए रिकॉर्ड में अशोक मांझी की फाइल शामिल नहीं थी। उधर, फाइल नहीं होने के कारण टांगरपाली तहसील भूमि उपलब्ध नहीं कराने की बात कह रही है। लेफ्रीपाड़ा तहसील कार्यालय द्वारा एनटीपीसी जमीन घोटाले के साथ सैकड़ों एकड़ सरकारी भूमि का घोटाला चर्चा का विषय बना हुआ है। इस तरह के कई भ्रष्टाचार में सरकारी अधिकारी सीधे तौर पर शामिल होने का संदेह किया जा रहा है। कई मामले तो कोर्ट में विचाराधीन है।
क्या संदेश देना चाहता है प्रशासन : ऐसी स्थित में शहीद के परिवार को पांच एकड़ जमीन देने के मामले में तहसील की ओर से किए जा रहे नाटक को लेकर लोगों में रोष है। शाहिद के गांव वालों सवाल कर रहे है कि सुंदरगढ़ जिला प्रशासन उन माता-पिता को क्या संदेश भेजना चाहती है जो अपने बेटे को छाती में पत्थर रखकर सीमा पर लड़ने के लिए भेज रहे हैं।