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कुचिंडा में काले गेहूं की खेती कर चर्चा में दिव्यराज बेरिहा

कुचिन्दा अंचल में काला गेहूं की सफल खेती कर उच्च शिक्षित युवक दिव्यराज बेरिहा चर्चा का विषय बन गए हैं। उन्होंने काले गेहूं की खेती में अन्य और 20 किसानों को भी जोड़ा है। अपने खेत में उत्पादित 10 किलो काला गेहूं को कुचिंडा अनुमंडल अंतर्गत कुसुमी अंचल के 20 किसानों को खेती के लिए आधा-आधा किलोग्राम काला गेहूं का बीज साझा किया था।

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Mar 2021 09:39 PM (IST)Updated: Thu, 18 Mar 2021 09:39 PM (IST)
कुचिंडा में काले गेहूं की खेती कर चर्चा में दिव्यराज बेरिहा
कुचिंडा में काले गेहूं की खेती कर चर्चा में दिव्यराज बेरिहा

संसू, बामड़ा : कुचिन्दा अंचल में काला गेहूं की सफल खेती कर उच्च शिक्षित युवक दिव्यराज बेरिहा चर्चा का विषय बन गए हैं। उन्होंने काले गेहूं की खेती में अन्य और 20 किसानों को भी जोड़ा है। अपने खेत में उत्पादित 10 किलो काला गेहूं को कुचिंडा अनुमंडल अंतर्गत कुसुमी अंचल के 20 किसानों को खेती के लिए आधा-आधा किलोग्राम काला गेहूं का बीज साझा किया था। किसानों की मेहनत रंग लाई और गेहूं का पैदावार भी बढि़या हुआ। इसके बाद से इस अंचल में काला गेहूं की खेती का सिलसिला शुरू हो गया है।

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संबलपुर दलेईपड़ा में रहने वाले दिव्यराज ने बॉटनी में एमएससी और एमफिल किया है। पढ़ाई पूरी करने के बाद डीआर बायोटेक नाम से संबलपुर के नजदीक खंडुआल गांव में अपनी दो एकड़ जमीन में विभिन्न फसलों का ट्रायल खेती कर शोध कर रहे है और उसके बाद अन्य किसानों को खेती के लिए प्रोत्साहित करते है। कुछ साल पहले दिव्यराज ने काला चावल की खेती कर कुचिंडा अंचल के किसानों को काला चावल की खेती से जोड़ा था। बायोफ्लक्स और ट्रेंच पद्धति से मछली पालन में सफलता हासिल किया था। बामड़ा के किसान ज्ञान महन्ती ने दिव्यराज की मछली पालन तकनीक अपना कर सफल हुए थे। पिछले 20 सालों से दिव्यराज शोध कर रहे हैं। इस साल पहली बार ओडिशा में काला गेहूं की खेती कर चर्चित हो गए हैं। उन्होंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से दो किलो कोला गेहूं का बीज 1500 रुपया प्रति किलो के हिसाब से मंगाया था। दिव्यराज ने अपने फार्म में एक डिसमिल जमीन में आधा किलो काला गेहूं के बीज से खेती की और आधा किलो बीज कुचिंडा अनुमंडल भोजपुर गांव के सुशील पटेल को दिया और आधा आधा किलो बीज देवगढ़ और बरगढ़ के दो किसानों को दिया था। चारों जगह खेती से 40 किलो काला गेहूं का उपज हुआ था। कुचिंडा कुसुमी गांव के किसान राजेश पटेल की अगुवाई में दिव्यराज और अन्य किसानों ने आंचलिक आत्मनिर्भर अभियान नाम से एक एनजीओ बनाया है और नई-नई खेती के विकास को अन्य किसानों से साझा कर किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का गुर बताते है और बीज मुहैय्या कराने और अनुसांगिक सहयोग करते है। इसके तहत कुचिन्दा अनुमंडल के 20 किसानों को इस बार काला गेहूं खेती करने को आधा आधा किलो बीज मुहैय्या कराया है। काला गेहूं का बीज 1500 रुपया प्रति किलो में उपलब्ध है और काला गेहूं का आटा 600 रुपया प्रति किलो बिकता है। दिव्यराज ने बताया काला गेहूं की रोटी खाने से मोटापा कम होता है। कैंसर रोग मारक, एंटी ऑक्सीडेंट,जोड़ों के दर्द दूर करता है और पाचन प्रक्रिया को दुरुस्त करता है। औषधीय गुणों के चलते काला गेहूं के आटे की मांग बहुत ज्यादा है। पंजाब और हरियाणा जैसे ठंडे प्रदेशों में सफलता मिलने के बाद ओडिशा जैसे गरम राज्य में काला गेहूं की सफल खेती कर युवा कृषि बैज्ञानिक दिव्यराज आकर्षण का केंद्र बन गए है। युवा कृषि वैज्ञानिक ने इनपर किया है शोध

जैसर हॉट जोन फ्रूट्स, बायोफ्लॉक फिश कल्चर, चिल्ड जोन फ्लावर्स, विलुप्त श्रेणी के पेड़ पौधों का सरंक्षण और बंस बृद्धि, प्लांट टिशू कल्चर, मछली पालन, मशरूम कल्चर, डेरी फार्मिंग, मिक्स्ड एग्रीकल्चर, बायो फर्टीलाइजर, पेस्ट कंट्रोल मेथड, काली हल्दी, स्ट्राबेरी की खेती बिकसित कर चुके है।


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