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चार के बराबर दो टांग वाले की अब पूंछ नहीं

ऑटोरिक्शा के बढ़ते प्रचलन के बाद रिक्शावाले मुश्किल में, शहर में पहला रिक्शा बेचने वाला शर्मा स्टोर ने बदला कारोबार।

By Edited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 09:22 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 09:23 PM (IST)
चार के बराबर दो टांग वाले की अब पूंछ नहीं
चार के बराबर दो टांग वाले की अब पूंछ नहीं

संबलपुर, राधेश्याम वर्मा। करीब सात दशक पहले जब देश आजाद हुआ था, तब गांव-शहरों में यातायात के बहुत ही कम संसाधन थे। कोलकाता, मुंबई में ट्राम तो दिल्ली व मद्रास में टैक्सी-तांगा चलते थे। महानगर कोलकाता समेत अन्य कुछ स्थानों पर दो चक्का वाला हाथ रिक्शा लोगों के लिए आने-जाने का साधन था तो अन्य शहर व कस्बों में तीन पहिया रिक्शा चलता था जो आम-ओ-खास के लिए रुआब की सवारी मानी जाती थी। उस समय यह इतना लोकप्रिय था कि इसके नाम पर रिक्शावाला जैसी फिल्में भी बनीं थी और मैं रिक्शावाला, चार के बराबर दो टांगवाला गीत काफी लोकप्रिय हुआ था।

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देश के विकास के साथ यातायात के अन्य साधन प्रचलन में आने के बाद तीन पहिया वाले रिक्शा का प्रचलन कम होता जा रहा है। आलम यह है कि कभी जरा बचके.., कहकर बगल से गुजरने वाले तीन पहिया रिक्शा में सवारी की जगह सामान लादकर आज जोर लगाके, हइसा.., बोलते सड़क पर नजर आते हैं। सन 40 के दशक में संबलपुर में भी कोलकाता की तरह दो चक्का वाला हाथ रिक्शा प्रचलन में था। इसके एक दशक बाद शहर में पहली बार तीन पहिया वाला रिक्शा आया और इसके छह दशक बाद ऑटोरिक्शा का पदार्पण संबलपुर में हुआ।

ऑटोरिक्शा के बढ़ते प्रचलन के साथ ही तीन पहिया रिक्शा का चलन कम होने लगा। अब अधिकांश लोग ऑटोरिक्शा में सवारी करने लगे हैं। जो रिक्शा के मुकाबले समय की बचत करता है तथा किराया भी सस्ता पड़ता है। हजारों की संख्या कुछ सौ में सिमटी स्थानीय टाउन थाना के पास शर्मा स्टोर के मालिक संजय शर्मा बताते हैं कि पहले संबलपुर में एक हजार से अधिक तीन पहिया रिक्शा गली-मोहल्ला तक सवारी लाने व ले जाने का काम करते थे। अब यह संख्या कुछ सौ में ही सिमटकर रह गयी है। रिक्शा में बैठने वालों की संख्या भी नाममात्र होने से मजबूरी में कुछ रिक्शा चालक अन्य काम करने लगे हैं। जबकि कुछ ने पेट भरने के लिए रिक्शा में माल ढोना शुरू कर दिया है।

किराए पर रिक्शा देने का धंधा भी बंद

संजय शर्मा के अनुसार, किराए पर रिक्शा देने वालों का धंधा भी बंद हो चुका है। एक जमाना था जब उनके पिता पूरनमल शर्मा संबलपुर से रिक्शा चक्रधरपुर तक भेजते थे। अब हालात यह है कि रिक्शा की बिक्री नहीं के बराबर रह जाने से उन्हें भी इसका कारोबार बंद कर साइकिल का कारोबार करना पड़ा है। पूरनमल ने बेचा था पहला रिक्शा शर्मा स्टोर के संचालक संजय शर्मा ने बताया कि पचास के दशक में उनके पिता पूरनमल शर्मा ने पहली बार संबलपुर में रिक्शा बेचा था। वह नागपुर से रिक्शा के अलग-अलग पार्ट लाकर संबलपुर में रिक्शा बनाते व बेचते थे। उस समय एक रिक्शा 450 रुपये से भी कम में बिकता था। जबकि आज रिक्शा 17 हजार रुपये से अधिक का हो गया है और नए रिक्शों की बिक्री न के बराबर हो गई है।


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