संबलपुर में सार्वजनिक पेशाबघरों का टोटा
संवाद सूत्र संबलपुर पश्चिम ओडिशा का प्राणकेंद्र शहर संबलपुर स्मार्ट सिटी बनने की दौड़ में
संवाद सूत्र, संबलपुर : पश्चिम ओडिशा का प्राणकेंद्र शहर संबलपुर स्मार्ट सिटी बनने की दौड़ में है। इतिहास पर नजर डालें तो संबलपुर शहर अंग्रेजों के •ामाने से लेकर अब भी सुर्खियों में है। आजादी से पहले यहां अंग्रेजों का पालिटिकल एजेंट का कार्यालय था और इसी दौरान यहां मंडल जेल, महानदी क्लब, संबलपुर क्लब, नगरपालिका, कचहरी की स्थापना हुई। आजादी के बाद भी यह शहर सु़िर्खयों में रहा। यहां राजस्व आयुक्त, जिलाधीश, पुलिस डीआइजी, पुलिस अधीक्षक, मंडल वन अधिकारी, स्टेडियम, रेल मंडल, बीएसएनएल समेत कई बैंक और बीमा कंपनियों के मंडल कार्यालय, माध्यमिक और उच्च शिक्षा परिषद के आंचलिक और मंडल कार्यालय, आइआइएम, कई कालेज, कई यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई। हर वर्ष करोड़ों रुपये की लागत से यहां के विकासकार्य और सुंदरीकरण कराया जा रहा है। पुराने नगरपालिका को अब महानगर निगम का दर्जा मिल गया है। बावजूद इसके शहर में पेशाबघर जैसी मौलिक और सार्वजनिक सुविधा का घोर अभाव है। करीब चार लाख की आबादी वाले इस शहर में पेशाबघर के अभाव से यहां विभिन्न कार्य से आने वाले पुरुष-महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पांच वर्ष पहले, हिडाल्को कंपनी की ओर से संबलपुर के विभिन्न स्थानों पर 50 से अधिक बायो शौचालय की व्यवस्था की गई, लेकिन किसी वजह से वर्षों तक इनका ताला नहीं खुला। अब उन शौचालयों का कहीं अता पता नहीं है। दो वर्ष पहले, टाटा स्टील के सौजन्य से शहर के सरकारी बस स्टैंड, लक्ष्मी टाकिज चौक समेत कुछ अन्य स्थानों पर अत्याधुनिक बायो शौचालय की व्यवस्था की गयी। लेकिन गंदगी की वजह से उनका भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। हालात यह है कि शहर में अंगुली में गिनने लायक पुराने और वह भी गंदगी वाले पेशाबघर बचे हैं।
ऐसा नहीं कि संबलपुर शहर में पहले पेशाबघर नहीं थे। शहर के गोलबाजार चौक, बैद्यनाथ चौक, लक्ष्मी टाकिज चौक, गेटी टाकिज, गुरुपाड़ा समेत कई इलाकों में नगरपालिका की ओर से सार्वजनिक पेशाबघर बनवाया गया था, लेकिन बाद में सफाई नहीं होने की वजह से स्थानीय लोगों ने उन्हें तोड़ दिया और कई स्थानों से नगरपालिका ने अधिक कमाई की खातिर उन्हें तोड़कर वहां दुकान बनवा दिया।
यहां यह बताना भी उचित होगा कि वर्ष 2004 में संबलपुर के सुंदरीकरण और विकास को लेकर एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई गयी थी, जिसमें संबलपुर के लिए 75 प्रस्तावों पर चर्चा की गयी, लेकिन इसमें कहीं पेशाबघर की कमी पर किसी ने चर्चा नहीं की। आज हालात यह है कि संबलपुर में करोड़ों रुपये की लागत से विभिन्न विकास कार्य कराए जा रहे है, लेकिन शहर में एक पेशाबघर नहीं बनवाया गया। निगम के कई वार्ड में सुलभ शौचालय तो बना लेकिन पेशाबघर नहीं। शहर के प्रवेशपथ अईंठापाली चौक से लेकर सात किमी दूर नेल्सन मंडेला चौक तक एक भी सार्वजनिक पेशाबघर नहीं है।
सरकारी बस स्टैंड में महिला यात्रियों को घोर असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। दो वर्ष पहले यहां बायो शौचालय की व्यवस्था की गई थी, लेकिन देखभाल और साफ-सफाई नहीं होने से वहां कोई नहीं जाता। नतीजा महिला यात्रियों को जहां तहां भटकना पड़ता है। जाने अनजाने लोगों को जहां तहां फारिग होनेवालों को रोकने के लिए कुछ स्थानों पर चेतावनी भरा संदेश भी लिखा गया है, लेकिन लोग इसकी परवाह भी नहीं कर रहे। आश्चर्य तो इस बात का है कि बगैर पेशाबघर वाले इस शहर में बीते महीने महानगर निगम की ओर से सार्वजनिक स्थानों पर पेशाब करने पर 100 रुपये जुर्माना का प्राविधान किया गया, लेकिन इस प्राविधान से पहले यह भी नहीं सोचा गया कि पेशाबघर नहीं होने से लोग जाएं तो आखिर जाएं कहां?।