नेताजी सुभाष के यूथ ब्रिगेड के साथी थे बिरेन सरकार
पराक्रम दिवस के इस मौके पर संबलपुर के जानेमाने कांग्रेस नेता स्वर्गीय बिरेन सरकार की बरबस याद आ जाती है। वे अपने किशोरावस्था में ना केवल महात्मा गांधी बल्कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ भी संपर्क में रहे और आजादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल रहकर गांधीजी और नेताजी के आंदोलनों को सफल बनाया।
संवाद सूत्र, संबलपुर : ओडिशा के महान माटी पुत्र व गुलाम भारत के आजाद फौजी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती को केंद्र सरकार ने पराक्रम दिवस के रूप में मनाए जाने का निर्णय लेकर राष्ट्रभक्तों को खुश कर दिया है। पराक्रम दिवस के इस मौके पर संबलपुर के जानेमाने कांग्रेस नेता स्वर्गीय बिरेन सरकार की बरबस याद आ जाती है। वे अपने किशोरावस्था में ना केवल महात्मा गांधी बल्कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ भी संपर्क में रहे और आजादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल रहकर गांधीजी और नेताजी के आंदोलनों को सफल बनाया। बिरेन सरकार का निधन 24 दिसंबर 2003 को संबलपुर के नयापाड़ा स्थित पैतृक आवास पर हुआ था।
केंद्र सरकार द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती को प्रति वर्ष पराक्रम दिवस के रुप में मनाए जाने की खबर के बाद बिरेन सरकार के परिवार में भी खुशी है। उनके भतीजे शुभाशीष सरकार ने केंद्र सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए बताया कि चाचा बिरेन सरकार जीवित होते तो उन्हें इसकी खुशी होती।
शुभाशीष के अनुसार संबलपुर में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद बिरेन सरकार आगे की पढाई के लिए कोलकाता चले गए थे। जहां नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में जानकर काफी प्रभावित हुए और बाद में कई बार उनसे मुलाकातें भी की। नेताजी के कई आंदोलन में भी वह सक्रिय रूप से शामिल रहे और नेताजी के यूथ ब्रिगेड में शामिल होकर जुलाई 1940 में कोलकाता में स्थापित हालवेट स्तंभ को तोड़कर अंग्रेजी हुकूमत का घमंड भी चूरचूर करने में शामिल रहे। देशवासियों पर अंग्रेजों के अमानवीय अत्याचार और इसके लिए फोर्ट विलियम में बनाए गए ब्लैक होल के खिलाफ नेताजी सुभाषचंद्र के जन आंदोलन में भी बिरेन शामिल रहे।
संबलपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे बिरेन सरकार का महात्मा गांधी समेत कई अन्य नेताओं के साथ भी संपर्क रहा। कांग्रेस के नरमपंथी और चरमपंथी नेताओं के बीच उन्होंने अपना तालमेल बनाए रखते हुए कार्य किया। गांधीजी के संबलपुर प्रवास के दौरान बिरेन अन्य नेताओं के साथ उनके साथ रहे और असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन को भी संबलपुर में सफल बनाया। देश की आजादी के बाद वह सक्रिय राजनीति से दूर रहे और आजीवन अविवाहित रहकर अपने बड़े भाई के परिवार का पोषण करने समेत खुद को सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से जोड़े रखा।