आदिवासी महिलाओं की मार्गदर्शक बनीं शमीमा
सुंदरगढ़ की शमीमा बेगम मुस्लिम परिवार की बेटी होने के साथ-साथ एक ब्राह्मण परिवार की बहू है। ब्राह्मण परिवार के बेटे का हाथ पकड़ने के बाद धार्मिक असहिष्णुता ने उसे दो राहे पर खड़ा कर दिया।
जागरण संवाददाता, राउरकेला : सुंदरगढ़ की शमीमा बेगम मुस्लिम परिवार की बेटी होने के साथ-साथ एक ब्राह्मण परिवार की बहू है। ब्राह्मण परिवार के बेटे का हाथ पकड़ने के बाद धार्मिक असहिष्णुता ने उसे दो राहे पर खड़ा कर दिया। उसके परिवार ने उसका त्याग कर दिया, क्योंकि उसकी शादी एक अलग धर्म के लड़के से हुई थी। दूसरी और एक रूढि़वादी ब्राह्मण परिवार में, उनके लिए बहू के रूप में पहचान बनाना आसान नहीं था। लेकिन वे नहीं हारी, बल्कि संघर्ष किया और आज वे महिलाओं को स्वावलंबी होने का मार्ग दिखा रही है।
रोजगार की लालच में दलालों द्वारा सुंदरगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों की कई नाबालिगों और लड़कियों को राज्य से बाहर ले जाया जा रहा था। युवतियों की तस्करी की घटना ने शमीमा को झकझोर दिया। उन्होंने कई युवा महिलाओं को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन वह जानती थी कि तस्करी को रोकने के लिए, आदिवासी युवतियों को जीविकोपार्जन उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनके परिवारों को आर्थिक रूप से मजबूत करना जरूरी था। शमीमा ने आदिवासी महिलाओं को बचत के बारे में सिखाया। बताया कि जरूरत पड़ने पर बचत कैसे काम करती है।
पहले तो, आदिवासियों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। इसीलिए शमीमा को काफी मशक्कत करनी पड़ी। शमीमा उनके घर व परिवार के पास गई। उनके पर्व, त्योहारों के साथ सामाजिक कार्यों में शामिल हुई। यहां तक कि शमीमा ने उनके साथ खेतों में भी काम किया। उन पर विश्वास करने के बाद महिलाओं ने उनकी बात सुनी। शमीमा का कार्यस्थल अब जिले के बालिशंकरा, लेफ्रीपाड़ा, सुबडेगा, राजगांगपुर, सुंदरगढ़ ब्लॉक क्षेत्रों तक फैला हुआ है। उपेक्षित आदिवासी किसानों, महिला किसानों, एकल महिलाओं, अविवाहित महिलाओं के आर्थिक विकास का मार्ग उन्होंने प्रशस्त किया है। उन्होंने लगभग 500 किसान परिवारों का मार्गदर्शन किया है।
उन्होंने खाद्य पदार्थों के उत्पादन और बिक्री के लिए जिले में एक लोकप्रिय अभियान शुरू किया है, जिसमें तहत मंडुआ, गुलजी, बाजरा, जौ, कदो जैसे छोटे अनाज का उत्पादन शुरू कराया। इन छोटे अनाजों की खेती और बिक्री में 200 से अधिक महिला किसान शामिल हुए हैं, वहीं अब जिला प्रशासन ने इस योजना को अपना लिया है। उन्होंने स्थानीय महिलाओं के हस्तशिल्प को बढ़ावा देने और बाजार के अवसर प्रदान करने के लिए मजबूत कदम उठाए हैं। इसके अलावा, उन्होंने नाबालिगों और महिलाओं के लिए एक सफल काउंसलर के रूप में सभी का विश्वास जीता है।
धार्मिक रूप से रूढि़वादी परिवार की बेटी और बहू होने के बावजूद, योजनाबद्ध तरीके से पुरुष-केंद्रित व्यवस्था के खिलाफ लड़ने वाली शमीमा अब सुंदरगढ़ में महिला सशक्तीकरण का एक मजबूत चेहरा बन गई हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सुरू मिश्रा के प्यार में पड़ने व उनसे शादी करने के बाद 2010 में सुंदरगढ़ आई थी। जबकि उनका जन्मस्थान ओडिशा का सोनपुर है।