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समय पर उठाते कदम तो घर बनता न बसतीं बस्तियां

रेल विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण रेलवे की सैकड़ों एकड़ जमीन पर लोग घर बनाने के साथ पूरी बस्ती बसा लिए हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 12:43 AM (IST)Updated: Sun, 13 Sep 2020 12:43 AM (IST)
समय पर उठाते कदम तो घर बनता न बसतीं बस्तियां
समय पर उठाते कदम तो घर बनता न बसतीं बस्तियां

राजेश साहू, राउरकेला

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रेल विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण रेलवे की सैकड़ों एकड़ जमीन पर लोग घर बनाने के साथ पूरी बस्ती बसा लिए हैं। रेलवे जमीन पर लोगों द्वारा घर बनाने के दौरान विभागीय अधिकारियों द्वारा समय पर कार्रवाई किए जाने से रेलवे की जमीन पर न घर बनता और ना ही बस्ती बसती। रेल जमीन पर विभागीय अधिकारियों को लोगों द्वारा अतिक्रमण कर घर बनाने की जानकारी होने के बावजूद अतिक्रमणकारियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई नही किए जाने का नतीजा है कि आज रेलवे की हजारों एकड़ जमीन पर दर्जनों बस्तियां बस चुकी हैं। रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर घर बनाने वाले लोगों की माने तो विभागीय अधिकारियों के साथ साठ-गांठ करने के साथ उन अधिकारियों की मुटठी गरम कर देने पर वे घर निर्माण कार्य को नजर अंदाज कर देते है। इससे रेलवे की जमीन पर घर बनाने में आसानी होती है।

सड़क, नाली, ड्रेन तक की सुविधा :

रेलवे की जमीन पर बसी बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए राउरकेला महानगर निगम (आरएमसी) एवं राजनीतिक दलों के प्रयास से यातायात के लिए सड़क, नाली, ड्रेन, बिजली की सुविधा के लिए हर साल कार्य किया जाता है। राज्य और केंद्र सरकार से मिलने वाली सरकारी सुविधाएं भी इनतक पहुंच रही हैं। वोटर आईडी, आधार कार्ड, राशन कार्ड, लेबर कार्ड, गैस कनेक्शन, स्वास्थ्य सुविधा के लिए छोटे स्वास्थ्य केंद्र आदि सुविधा इनके लिए मुहैया है। ्र

वोट की खातिर सबकुछ जायज : रेलवे की जमीन पर काबिज लोगों तक सरकारी सुविधाएं पहुंचाने में सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर कानून बनाने वाले तक शामिल हैं। नगर निगम के पार्षद से लेकर विधायक और सांसद ही नहीं मंत्री तक वोट के लिए इन बस्तियों में रह रहे लोगों की एक आवाज पर उनके साथ खड़े नजर आते हैं।

जमीन खाली कराने की बात आए तो आगे दिखते नेता : रेल विभाग की ओर से विभिन्न कार्य के लिए अपनी जमीन को खाली कराने के लिए समय-समय पर नोटिस आदि जारी करने के साथ अभियान चलाया जाता है। लेकिन हर बार इन बस्तीवासियों को वोट का पिटारा की तरह सहेजने वाले राजनीतिक दल के नेता आगे खड़े दिखाई देते हैं। इतना ही नहीं इन बस्तियों को बचाने के लिए ये नेता साम-दाम, दंड-भेद का इस्तेमाल कर सरकारी जमीन खाली कराने की मुहिम को कुंद कर देते हैं। यही वजह है कि स्टेशनव रेल लाइनों के किनारे खाली पड़ी रेलवे की जमीन पर एक-एक कर आज दर्जनों बस्तियां बस चुकी हैं। इनमें से कई एक बस्तियों में सरकार प्रदत्त सभी सुविधाओं का लोग उपभोग कर रहे हैं।

शुरू नहीं हो पा रहीं दर्जनों बड़ी परियोजनाएं : रेलवे की जमीन पर बस चुकी बस्तियों के कारण दर्जनों परियोजनाओं से वर्षो से लंबित हैं। इनमें से कुछेक तो शुरू ही नहीं हो सकी हैं, कुछ शुरू किए जाने के बाद जमीन के पेच में फंसकर अधर में लटकी हुई हैं। इसका जीता जागता उदाहरण राउरकेला में अतिक्रमण नही हटाए जाने के कारण वॉशिंग लाइन परियोजना अधर में लटकी हुई है। इसके नहीं होने के कारण रेलवे द्वारा राउरकेला से प्रस्तावित दर्जनों ट्रेनों का विस्तार और नई ट्रेन सेवा से स्मार्ट सिटी के लोगों को वंचित होना पड़ रहा है। टाटा-झारसुगुड़ा थर्ड लाइन का काम भी रेलवे की जमीन पर बसी बस्तियों के कारण अधर में अटका हुआ है।


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