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सत्संग से नीच व्यक्ति भी बन सकता है महान

पृथ्वी अपने वक्ष में मनुष्य पशु-पक्षी कीट-पतंग वृक्ष- ता आदि अनेक प्राणी एवं उद्विज को धारण की है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2020 11:37 PM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2020 11:37 PM (IST)
सत्संग से नीच व्यक्ति भी बन सकता है महान
सत्संग से नीच व्यक्ति भी बन सकता है महान

पृथ्वी अपने वक्ष में मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग, वृक्ष- ता आदि अनेक प्राणी एवं उद्विज को धारण की है। प्रत्येक प्राणी एवं उद्विज के बीच आकृति एवं गुणों का अंतर है। पूरी सृष्टि में भगवान की उत्कृष्ट सृष्टि मनुष्य है। पृथ्वी के सभी मानव एक होने बावजूद उनके बीच विभिन्नता एवं वैमनस्यता देखी जाती है। लंबे-नाटे, काला-गोरा, धनी- निर्धन, मूर्ख-पंडित, दयालू-निर्दयी, स्वार्थी- निस्वार्थी, महात्मा- दुरात्मा आदि भिन्न् आकृति एवं चरित्र वाले मनुष्य समाज में हैं। यही पृथ्वी की विचित्रता है। समय के अनुसार नीच व्यक्ति भी सत्संग में रहकर महान बनता है।

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संसार में पुष्प की आकृति काफी छोटी होने के बावजूद अपनी सुगंध एवं सुंदरता के कारण वह पृथ्वी में आदर प्राप्त करता है। सद्गुण का अधिकारी होने के कारण पुष्प एवं पुष्प का हार देवताओं के मस्तक में एवं महान लोगों के गले में शोभित होता है। पुष्प की माला तैयार करने के लिए व्यवहृत धागा मूल्यहीन एवं तुच्छ होने के बावजूद महान गुण वाले पुष्प के संपर्क में आकर भगवान एवं महान जनों के गले में शोभित होता है।

कहा गया कि संसर्गता दोष गुण: अर्थात चोर के संपर्क में आने से व्यक्ति चोर बनता है। शराबी के संपर्क में आकर व्यक्ति का शराबी बनना विचित्र नहीं है, अपितु अपने को महान बनाने के लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति के संपर्क में आना उचित है। जीवन कोई खेलघर नहीं है, जीवन का लक्ष्य महान है एवं लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ज्ञानी, गुणी, पंडित, और महान लोगों के आश्रय लेने के लिए हमें नीति उपदेश में कहा गया है। समाज में अनेक प्रकार के, अनेक चरित्र के महान व्यक्ति निवास करते हैं। उनके आदर्श एवं उपदेश हमें अपनाना चाहिए।

यदि समाज दुर्जन, भ्रष्टाचारी व्यक्ति विशेष का क्रीड़ास्थली बन जाए तो समाज में कई प्रकार की विसंगतियां उत्पन्न हो जाएंगी एवं समाज का पतन निश्चित हो जाएगा। इस लिए युगों-युगों से दोष युक्त समाज को सुधारने के लिए साधु, संत, ज्ञानी, गुणी और महापुरुषों का आविर्भाव होता है। उनके आदर्श से पथभ्रष्ट एवं नीति स्खलित जनमानस उचित मार्ग पर प्रशस्त होते हैं। इस लिए भागवत गीता में कहा गया है महान व्यक्ति जो आचरण करते हैं नीच एवं खल प्रवृत्ति के लोग उसका अनुशरण करते हैं। वास्तविक क्षेत्र में महान व्यक्ति के आश्रय के बिना नीच जनों की म़ुक्ति संभव नहीं है। महान लोगों की शरण में जाकर उनके ज्ञान चक्षु खुलते हैं। नीतिकार विष्णु शर्मा इस संबंध में एक सुंदर नीति श्लोक की रचना की है। काच: कांचन संगर्गता धत्ते-- मारतकी द्यूतिम, तथा सत संन्निधाने मूर्खो याति प्रवीणाता। अर्थात कांच भी सोने के संसंर्ग में आकर वह उज्जवल दिखाई देता है। उसी तरह सत्संग में आकर मूर्ख भी पंडित बन सकता है।

सत्संग प्राप्त कर जीवन में उच्च स्थान प्राप्त करने उदाहरण हमारे समाज मे कम नहीं हैं। हमारे प्रिय धर्मग्रंथ रामायण में हम पाते हैं हनुमान, सुग्रीव, विभीषण, गूह, गिलहरी प्रभु श्री रामचंद्र जी के सानिध्य में आकर आज भी जन मानस में जीवित हैं। रामायण श्रष्टा आदि कवि बाल्मीकि का उदाहरण इसमें लिया जा सकता है। बाल्मीकि जी अतीत के दस्यु रत्नाकर थे। ब्राह्मणकुल में जन्म लेने के बावजूद अपने मौलिक कर्म का परित्याग कर चोरी, हत्या व लूट को अपना कर पतीत हो गई थे। अकस्मात जंगल पथ में सप्त ऋषियों के साथ साक्षात एवं उनके उपदेश अनुसार कुकर्म त्याग पूर्ण तपस्या में निमग्न हुए थे। बाल्मीकि के अंदर से उनका पुनर्जन्म होने के कारण वे महान ऋषि बाल्मीकि बने। तमसा नदी के तट पर उनके कंठ से करुण रागिनी का सृजन हुआ। मा निषाद प्रतिष्ठात्वगमम शाश्वती सम:। यत क्रौंच मिथुना देक मबधि काम मोहितम।

पक्षीराज गरुढ़ पक्षी होते हुए भी भगवान विष्णु जी के वाहन हैं। केवल भगवान का आश्रय पाकर वे भी देवताओं का आसन प्राप्त किए हैं। आज के युग में हमारे समाज में भी इस तरह के वास्तविक सत्य देखने को मिलते हैं। गांधीजी, गोपबंधुदास आदि जन सेवक के संपर्क में आकर अनेक व्यक्ति उच्च सम्मान प्राप्त किया है। महानता के साथ-साथ महानता के मिलन में मणि कंचन का संयोग होता है। रमा देवी, सारला देवी आदि समाजसेवी उत्कल के प्रख्यात नेत्री व जन सेविका सज्जन संगति प्राप्त कर प्रसिद्धि हासिल की है। निर्मला योग में दूषित पंकयुक्त जल निर्मल होता है। इसी तरह सत्संग लाभ प्राप्त कर कलुषित चरित्र निर्मल होता है। महापुरुषों के स्वच्छ चरित्र का प्रभाव एवं उपदेश व्यक्ति को कई रूपों में सहायता करता है। संसार में महान बनने के लिए महान व्यक्तियों का आश्रय लेना उचित है।

- गोविद चंद्र मिश्र, प्रधानाचार्य, सरस्वती शिशु विद्यामंदिर, राउरकेला टाउन।

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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह अपना जीवन अकेले नहीं बिता सकता। उसे मित्रों एवं समाज की आवश्यकता होती है। उसका जीवन आसपास के वातावरण से प्रभावित होता है यदि उसे अच्छा वातावरण मिलता है तो वह कल्याण के मार्ग पर चलता है, यदि उसे दूषित वातावरण मिलता है तो उससे उसके कार्य भी प्रभावित होते हैं। अच्छी संगति अर्थात सत्संगति दो शब्दों से मिलकर बना है, सत और संगति अर्थात अच्छी संगति। अच्छी संगति का अर्थ है -ऐसे सत्पुरुषों के साथ निवास करना जिनके विचार अच्छी दिशा की ओर ले जाए। अच्छी संगति मनुष्य को सदैव धर्म-कर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं और बुराइयों से बचाव के दिशा-निर्देश देती है। सत्संगति से मनुष्य का मानवीय गुण उत्पन्न होता है और उसका जीवन सार्थक बनता है। सत्संगति में ज्ञानहीन मनुष्य को भी विद्वान बनाने का साम‌र्थ्य होता है। सत्संगति मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने का कार्य करती है और उसमें सद्गुणों का संचार करती हैं। इसके प्रभाव से मन सदा प्रसन्न रहता है, मनुष्य सदा प्रफुल्लित रहता है। इसलिए महात्मा कबीर ने कहा है- कबिरा संगत साधु की हरै और की व्याधि। संगत बुरी असाधु की आठो पहर उपाधि।। सत्संगति के प्रभाव से मनुष्य में ऐसे चरित्र का विकास होता है कि वह अपना और संसार का कल्याण कर सकता है। सत्संगति व्यक्ति की जीवन दिशा बदल देती है, सत्संगति बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करने की शक्ति प्रदान करती है और सबसे बढ़कर व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती हैं। विद्यार्थी काल बहुत नाजुक दौर होता है, इस समय विद्यार्थी अच्छे बुरे का भेद नहीं जानता इसलिए हर विद्यार्थी को निष्ठावान, प्रतिभाशाली, सच्चे और अच्छे विद्यार्थी से ही मित्रता करनी चाहिए। झूठ बोलने वाले, समय पर कार्य न करने वाले, धूम्रपान करने वाले लड़कों से मित्रता ना करें। मित्र बनाते समय उसकी आदतों और पूर्व आचरण पर विचार करना चाहिए। स्वयं परिश्रमी बने तथा परिश्रमी व्यक्ति को ही मित्र बनाए। इससे भावी जीवन में सहायता मिलेगी एवं जीवन उज्जवल बनेगा। व्यक्ति को अपनी सत्संगति की ओर विशेष सावधान रहना चाहिए। वास्तव में सत्संगति वह पारस है जो जीवन रूपी लोहे को कंचन बना देती है। इसके माध्यम से हम अपना लाभ कर सकेंगे एवं साथ-साथ अपने देश के लिए उत्तरदायी तथा निष्ठावान नागरिक बन सकेंगे।

- नम्रता शर्मा, आचार्य सरस्वती शिशु विद्यामंदिर।

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मनुष्य के चरित्र निर्माण में संगति का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। कहते हैं कि व्यक्ति योगियों के साथ योगी एवं भोगियों के साथ भोगी बन जाता है। व्यक्ति को जीवन के अंतिम क्षणों की गति भी उनकी संगति के अनुसार ही मिलती है। संगति का जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। संगति से ही मनुष्य जग में महान बनता है और वहीं बुरी संगति उसका पतन करती है। सत्संगति से अनेक लाभ हैं। सत्संगति मनुष्य को सनमार्ग की ओर अग्रसर करती है। सत्संगति व्यक्ति को उच्च सामाजिक स्तर प्रदान करती है। बड़ी बड़ी कठिनाइयों का सफलता पूर्वक सामना करने की शक्ति प्रदान करती है और सबसे बढ़कर व्यक्ति को स्वाभिमान प्रदान करती है। मनुष्य को संगति सोच समझ कर करनी चाहिए। मनुष्य का मन जल जैसे स्वभाव का होता है एवं दोनों तेजी से नीचे गिरते हैं लेकिन उठाना हो तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। कुसंगति काम, क्रोध, मद, लोभ, ईष्र्या, वैरभाव पैदा करती है। अत: उन्नति की एकमात्र सीढ़ी सत्संगति है।

- नीता श्रीवास्तव, आचार्य, सरस्वती शिशु विद्यामंदिर।

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अच्छी संगति एक प्राण चक्षु है। जिसके संसर्ग मात्र से ही मनुष्य सदारण का पालक बन जाता है। सुधरहि सत्संगति पाई, पासर परस कुधातु सुहाई। इस दोहे में कहा गया है कि सठ को भी सुधरते पाया गया है, जैसे पारस के स्पर्श से काला लोहा भी स्वर्ण बन जाता है। लेकिन कभी- कभी अच्छी संगति से लाभ नहीं होता है जैसे- रहीम के इस दोहे में कहा गया है। रहिमन जो तुम कहत ते संगति हीं गुणा होय, बीच इखारी रस भरा रस काहै ना होय। रहीम कवि कहते हैं कि संगति से गुण होता है पर कभी संगति से भी लाभ नहीं होता है। जैसे ईख के खेत में कड़वा पौधा अपना गुण नहीं छोड़ता। दुष्ट कभी अपना जहर नहीं त्यागता है। अच्छी संगति हमारे जीवन को दिशा प्रदान करती है। यह एक पारस जैसे कार्य करती है। जिसके द्वारा हमारा लोहा रूपी जीवन स्वर्ण बन जाता है। इसके माध्यम से हम अपने देश का एक उत्तरदायी तथा निष्ठावान नागरिक बनते हैं।

- सीमा सिंह, आचार्य, सरस्वती शिशु विद्यामंदिर।

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सत्संगति शब्द सत और संगति दो शब्दों के योग से बना है। जिसका अर्थ होता है अच्छी संगति। अर्थात सत्पुरुषों के साथ निवास करना जिसके विचार अच्छी दिशा की ओर ले जाएं। उत्तम प्रकृति के मनुष्य के साथ उठना-बैठना ही सत्संगति है। जिससे मानव समाज उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है और मनुष्य को कुछ न कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है। मनुष्य के चरित्र निर्माण में संगति का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार, सचरित्र व्यक्ति के संपर्क में रहकर साधारण व्यक्ति भी महान व महत्वपूर्ण बन जाता है। जैसे पारस के संपर्क में लोहा भी सोना बन जाता है। सत्संगति के द्वारा मनुष्य हमेशा धर्म-कर्म के मार्ग में चलने के लिए प्रेरित होता है और बुराइयों से बचता है। मनुष्य में मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं और ज्ञान हीन मनुष्य भी विद्वान बन जाते हैं। इसमें मानव के सद्गुणों का संचार होता है। क्योंकि पृथ्वी पर जन्म लेने वाला प्रत्येक मानव अबोध होता है। उस पर सर्वप्रथम परिवर की संगति का प्रभाव पड़ता है। बड़ा होकर घर से बाहर स्कूल जाता है। यहां शिक्षक व मित्रों की संगति में आता है। उम्र बढ़ने के साथ ही जीवन का अर्थ समझने लगता है। संगत के अनुसार उसके जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बनता है। उसके अंदर भावना का जन्म होता है और समाज में उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है। सद्संगति से ही वह महान बन सकता है।

नीलिमा सिंह, आचार्य सरस्वती शिशु विद्यामंदिर।


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