सुहागिनों के लिए कच्चे धागे से सावित्री व्रत बनाने में जुटे भास्कर
80 साल के भास्कर साहू वट सावित्री की पूजा करने वाली सुहागिनों के लिए कच्चे धागे का व्रत बनाने में जुटे हैं। इस व्रत में इस धागे का खास महत्व होता है।
राउरकेला, जेएनएन। सावित्री ने अपने पति सत्यवान को पुनर्जीवित करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उसने यमराज को भी हार मान कर अपने पति के प्राण, सास ससुर की दृष्टि तथा राजपाट वापस करने को विवश कर दिया था। इस पूजा में कच्चे धागे से बने व्रत (बांह में बांधा जाने वाला धागा) का खास महत्व है। टिंबर कॉलोनी में 80 साल के भास्कर साहू भी इस युग में वट सावित्री की पूजा करने वाली सुहागिनों के लिए कच्चे धागे का व्रत बनाने में जुटे हैं।
सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु और परिवार की सुख शांति के लिए जेष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री की पूजा करती है। वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का खास महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है।
सुहागिन बरगद के पेड़ पर व्रत बांधने के बाद कच्चे धागे का व्रत अपनी बांह में बांध कर सुहाग के अटूट रहने की कामना करती हैं। देश के अन्य राज्यों की तरह ओडिशा में भी वट सावित्री व्रत का खास महत्व है। इस वर्ष 2 जुलाई को वट सावित्री का पूजा है। इससे पहले ही कारीगर इस पूजा में खास महत्व की चीज कच्चे धागे से बनने वाले व्रत की तैयारियां करने लगे हैं। गंजाम जिले से राउरकेला के टिंबर कॉलोनी निवासी भास्कर साहू बताते हैं कि अब व्रत मिल में भी बन रहे हैं।
ये दुकानों में उपलब्ध हैं पर तकली से काते गए कच्चे धागे से बने व्रत का खास महत्व है। भास्कर पिछले 50 साल से वट सावित्री पूजा के पहले ही व्रत तैयार करने में जुट जाते हैं। इसके लिए शहर में उनकी खास पहचान है। जो लोग उन्हें जानते हैं वे उनके घर में आकर व्रत ले जाते हैं। जिन दुकानों में इन धागों की मांग होती है वे वहां भी व्रत पहुंचाते हैं। उन्होंने बताया कि आरंभ में वे सूत से कपड़ा बनाया करते थे पर राउरकेला आने के बाद व्रत बनाने का ही काम करते हैं। एक दिन में अकेले ही साठ से सत्तर व्रत तैयार कर लेते हैं। एक व्रत का दाम पांच रुपये रखा है। उनके व्रत धागों की मांग राउरकेला ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी है। साल में एक बार यह मौका आता है और इससे आमदनी भी हो जाती है।
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