दाने-दाने को मोहताज कारगिल शहीद की मां
मातृभूमि की रक्षा करते हुए कारगिल में शहीद हुए सुंदरगढ़ के वीर सपूत ब्लासियस एलेक्जेंडर कुजूर को जन्म देने वाली मां अब बेसहारा हो गई है।
जागरण संवाददाता, राउरकेला : मातृभूमि की रक्षा करते हुए कारगिल में शहीद हुए सुंदरगढ़ के वीर सपूत ब्लासियस एलेक्जेंडर कुजूर को जन्म देने वाली मां अब बेसहारा हो गई है। शहीद की पत्नी रजत को अनुकंपा सरकारी नौकरी, भुवनेश्वर चंद्रशेखरपुर में जमीन तथा मुआवजा व पेंशन का लाभ मिला। लेकिन पूरे परिवार को छोड़ कर अब उसने दूसरे युवक से शादी कर ली। पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी की भी संदिग्ध मौत हो गई। बूढ़ी मां अब दूसरों के भरोसे जीवन यापन कर रही है। बेटे को मिली राशि में से फूटी कौड़ी नहीं मिलने पर उन्होंने प्रशासनिक अधिकारी से लेकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया पर लाभ नहीं मिला।
सुंदरगढ़ जिले के नुआगांव ब्लाक के उल्हानी गांव निवासी ब्लासियस एलेक्जेंडर कुजूर कारगिल में पाकिस्तान के साथ युद्ध में शहीद हो गए थे। तब उनके परिवार में मां तेरेसा कुजूर, पत्नी रजत कुजूर एवं आठ महीने की बेटी प्रीति अलीसा कुजूर थे। सेना में नौकरी के नियमानुसार रजत को बीरमित्रपुर तहसील कार्यालय में अनुकंपा नियुक्ति के साथ भुवनेश्वर के चंद्रशेखर पुर में जमीन, मुआवजा के साथ पेंशन का लाभ मिला।
शहीद ब्लासियस की 61 वर्षीय मां तेरेसा ने बताया कि जब से रजत को नौकरी मिली तब से ही वह बीरमित्रपुर में रहने लगी। उसने सरकार की ओर से मिली मुआवजा राशि व पेंशन की राशि भी रख ली। बहू के साथ ही पोती प्रीति रहती थी एवं कुमझरिया कन्याआश्रम में पढ़ाई कर रही थी। 13 वर्षीय प्रीति की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई पर पुलिस द्वारा उसे खुदकुशी का मामला बता दिया गया। प्रीति ने क्यों व किस परिस्थिति में खुदकुशी की, यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। परिवार वालों को किसी तरह की जानकारी दिए बगैर रजत ने कालोसीरिया के सरपंच झाड़ेश्वर खाखा से शादी कर ली एवं उनके छह साल व दो साल के दो बेटे हैं। बीरमित्रपुर तहसील कार्यालय से पदोन्नति पाकर अब वह बणई तहसील कार्यालय में रिकार्ड कीपर के पद पर काम कर रही है। शहीद की बूढ़ी मां तेरेसा ने बताया कि बेटे के शहीद होने पर सरकार की ओर से लाखों रुपये मिले, पेंशन की राशि भी मिल रही है पर एक रुपये भी उनके हिस्से में नहीं आया। राज्य सरकार की ओर से भुवनेश्वर के चंद्रशेखरपुर में 40 गुणा 60 फीट की जमीन भी मिली है। वह भी उसी के नाम पर है। तेरेसा बताती हैं कि परिवार में कमाने वाला व प्रिय पुत्र था एलेक्जेंडर। उसके शहीद होने के बाद वह बेसहारा हो गई है। आर्थिक तंगी में दिन कट रहे हैं। शहीद की मां होने के नाते सुविधा पाने के लिए सुंदरगढ़ जिलापाल तथा सेना के अधिकारियों से भी कई बार मिली पर कोई लाभ नहीं हुआ। न्याय के लिए अदालत का भी दरवाजा खटखटाया। चार साल से मामला अदालत में लंबित है। वकील को फीस देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। नियमानुसार शहीद जवान के आश्रितों को मिलने वाली रकम पर पत्नी के साथ साथ मां का भी अधिकार है पर यहां शहीद की मां को न्याय नहीं मिल सका है।