शहीद जवान के बुजुर्ग माता-पिता को 20 साल बाद भी नहीं मिली जमीन
सुंदरगढ़ जिले के टांगरपल्ली ब्लॉक के मुंडागांव के शहीद जवान अशोक माझी के बुजुर्ग माता-पिता को 20 साल बाद भी जमीन नहीं मिली है। 30 जनवरी 1995 को यह वीर जवान आतंकवादी से लड़ते हुए वह शहीद हुआ था।
राउरकेला, जागरण संवाददाता। गांव के चौक पर शहीद जवान की प्रतिमा लगाई गई है। हर साल शहीद दिवस पर, ग्रामीण मूर्ति को श्रद्धांजलि देते हैं और गर्व से अपनी मिट्टी के उस बहादुर बच्चे को याद करते हैं। लेकिन सरकार और प्रशासन ने देश के लिए अपनी जान देने वाले शहीद जवान के परिवार को भुला दिया है। शहीद के माता-पिता के लिए अनुमोदित भूमि के एक भूखंड के लिए उन्हें 20 वर्षों से एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय का चक्कर लगवा रहे है।
यह मामला सुंदरगढ़ जिले के टांगरपल्ली ब्लॉक के मुंडागांव के शहीद जवान अशोक माझी के परिवार की कहानी है। अशोक का जन्म 21 मार्च 1973 को मुंडागांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। पिता धनु मांझी और माता बसंती के इकलौते पुत्र के रूप में, उनकी आशा उनमें थी। कमियों के बावजूद, अशोक ने 12वीं तक की पढ़ाई की थी। पारिवारिक कठिनाइयों के कारण वह आगे पढ़ नहीं सकता था। फरवरी 1992 को, केंद्रीय सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) की 73वीं बटालियन में शामिल हो गए और इंफाल, मणिपुर में योगदान दिए थे।
आतंकवादी से लड़ते हुए शहीद हुआ था जवान
30 जनवरी, 1995 को यह वीर जवान आतंकवादी से लड़ते हुए वह शहीद हो गया। उसके बाद सीआरपीएफ के अधिकारियों ने राष्ट्रीय मर्यादा के साथ उसके अस्थि कलश को गांव लेकर आए थे और उसके माता-पिता को सौंप दिया। उस समय, शहीद के परिवार को मिलने वाली सभी सहायता तत्काल प्रदान करने का वादा किया गया था। माता-पिता, जो अपने इकलौते बेटे के मौत से टूट चुके थे। उन्होंने अपने बेटे को दी जाने वाली 5 एकड़ जमीन के लिए लेफ्रीपाड़ा तहसील कार्यालय में आवेदन किया। यहां तक की सुंदरगढ़ के जिलापाल के राजस्व विभाग ने 7 मई 1997 को तहसीलदार को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्हें तुरंत जमीन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था। लेकिन ऊपर से आदेश आने के बाद भी तहसीलदार से लेकर राजस्व निरीक्षक और लिपिक तक सभी मामले को टालते रहे।
उत्तराधिकारी को जमीन उपलब्ध कराने संबंधी असिस्टेंट कमांडेंट का पत्र गायब
ग्रामीणों द्वारा सीआरपीएफ बटालियन को इस बारे में सूचित करने के बाद, बटालियन असिस्टेंट कमांडेंट ने अशोक के उत्तराधिकारी धनु माझी को जमीन उपलब्ध कराने के लिए 13 अगस्त 2006 को एक पत्र लिखे। लेकिन वह चिट्ठी गायब होने की बात कहकर तहसील प्रबंधन अब तक जमीन उपलब्ध नहीं कराई है तथा टाल मटोल की नीति अपनाई हुई है।
विभाजन के बाद भी नहीं भेजी गई फाइल
हैरानी की बात है कि लेफ्रीपाड़ा तहसील के विभाजन और नई तहसील के रूप में टांगरपाली के घोषणा के बाद, लेफ्रीपाड़ा तहसील द्वारा सौंपे गए रिकॉर्ड में अशोक मांझी की फाइल शामिल नहीं थी। उधर, फाइल नहीं होने के कारण टांगरपाली तहसील भूमि उपलब्ध नहीं कराने की बात कह रही है। लेफ्रीपाड़ा तहसील कार्यालय द्वारा एनटीपीसी जमीन घोटाले के साथ-साथ सैकड़ों एकड़ सरकारी भूमि के घोटाले चर्चा का विषय बना हुआ है। इस तरह के कई भ्रष्टाचार में सरकारी अधिकारी सीधे तौर पर शामिल होने का संदेह किया जा रहा है। कई मामले तो कोर्ट में विचाराधीन है।
क्या संदेश देना चाहता है प्रशासन
ऐसी स्थित में शहीद के परिवार को पांच एकड़ जमीन देने के मामले में तहसील की ओर से किए जा रहे नाटक को लेकर लोगों में रोष है। शाहिद के गांव वालों सवाल कर रहे है कि सुंदरगढ़ जिला प्रशासन उन माता-पिता को क्या संदेश भेजना चाहती है जो अपने बेटे को छाती में पत्थर रखकर सीमा पर लड़ने के लिए भेज रहे हैं।