Move to Jagran APP

अब दोना-पत्तल बनाने वालों की होगी चांदी, सरकार की नजर-ए-इनायत का इंतजार

Plastic free india भारत में प्‍लास्टिक को पूरी तरह बैन किए जाने के बाद अब दोना-पत्तल बनाकर जीवन यापन करने वालों को अपने अच्‍छे दिन आने की उम्‍मीद है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 12:47 PM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 12:47 PM (IST)
अब दोना-पत्तल बनाने वालों की होगी चांदी, सरकार की नजर-ए-इनायत का इंतजार
अब दोना-पत्तल बनाने वालों की होगी चांदी, सरकार की नजर-ए-इनायत का इंतजार

राउरकेला, राजेश साहू। Plastic free india प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान के तहत महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती, दो अक्तूबर से राज्य में प्लास्टिक को पूरी तरह बैन कर दिया गया है। इससे दोना-पत्तल बनाकर जीवन यापन करने वालों के दिन बहुरने की उम्मीद है। शहर में भी सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूरी तरह से बैन होने से जंगल पर निर्भर ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार की उम्मीद जा रही है। बता दें कि झारखंड के मनोहरपुर के टुंगरीटोला गांव के अधिकांश लोग दोना-पत्तल बनाकर लोकल ट्रेन (डीएमयू) पकड़ राउरकेला बिक्री करने आते हैं।

loksabha election banner

हालांकि अभी तक इन्हें अपनी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल रहा। इस काम में खासकर आदिवासी महिलाएं जुड़ी हुई हैं। इनका मानना है कि अगर शासन-प्रशासन आदिवासी महिलाओं के लिए पत्ता का कुटीर उद्योग बना दे तो इनके आजीविका के साधन बेहतर होने के साथ इनका मेहनताना भी बढ़ जाएगा।

राउरकेला में पत्ता बेचने वाली कुछ महिलाओं ने बताया कि मनोहरपुर के टुंगरीटोला गांव की अधिकांश महिलाएं जंगल से पत्ता लाकर राउरकेला के साथ अन्य जगहों पर बिक्री करने के लिए जाती है। सरकार राशन कार्ड तो दी है लेकिन घर में बच्चे बड़े होने के कारण अन्य खर्च पूरे नहीं पड़ रहे।

लिहाजा इसके जरिये उन्हें कमाना पड़ता है। प्लास्टिक बंद से अंजान इन महिलाओं ने बताया कि 80 पीस दोना वे 30 रुपये में बेचती हैं। लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि वही पत्ता 10 रुपये में भी कोई लेने वाला नहीं मिलता। सरकार भी इस दिशा में ध्यान देने पर उनकी यह व्यवसाय अधिक चलेगा।

दोना-पत्तल का काम पिछले 40 साल से कर रही हैं। प्लास्टिक बंद होने से उनको फायदा कैसे मिलेगा यह पता नही। हां सरकार कुछ मदद करे तो हम लोगों की आर्थिक स्थिति सुधर सकती है। जंगल से पत्ता लाकर दोना बनाने के बावजूद कभी-कभी इन्हें कौड़ी के भाव बेचना पड़ता है।

- शुकुमुनी लुगून, टुंगरीटोला गांव

गुजरात: दो महिलाओं ने 13 घंटे तक उल्टा दौड़ बनाया ये खास रिकॉर्ड, पीएम मोदी से मिली प्रेरणा

सरकार के राशन कार्ड से पूरा काम नहीं चलता। खर्च पूरा करने 20-22 साल से अन्य महिलाओं की तरह जंगल से पत्ता लाकर यह कारोबार कर रही है। मेहनत के बावजूद जितना मेहनताना मिलना चाहिए उतना नहीं मिलता है। मजबूरन इस काम से जुड़ी है। सरकार और अधिकारी प्लास्टिक पूरी तरह से बंद कराएं तो उन्हें कुछ लाभ होगा। 

- सुमारी पूर्ति, टुंगरीटोला गांव

निजी स्कूलों को मात दे रहा है ये सरकारी स्कूल, हर क्षेत्र में है अव्वल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.